डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू. रिश्वत.कॉम

अभी भी बड़े-बड़े तीसमारखाओं को किसी दफ्तर में काम करवाने जाने का नाम सुनते ही दादी-नानी याद आ जाती है, क्योंकि “दफ्तर’ है ही ऐसा शब्द। यमराज के बाद किसी से जनता डरती है तो बस दफ्तर से। बेचारी जनता, निरीह जनता! इस लोक में भी डर, उस लोक में भी डर। दफ्तर की परिभाषा- […]

दे मत देना

आजकल गॉंवों में एक ही मुहावरा चल रहा है कि “दे मत देना’। जिन्होंने दिया वे पागल थे। जिन्होंने दिया वे लुट गये और जिन्होंने नहीं दिया वे बच गए। गॉंवों में आजकल एक नया नारा भी प्रचलन में है। लिये जाओ, लिये जाओ। बीज, ट्यूबवेल, औजार, खाद, स्ंिप्रंकलर आदि सब चीजों के लिये बैंकों […]

तुझे सूरज कहूँ या पलीता

समय बड़ी तेज़ी से बदल रहा है। बदलना भी चाहिये। ठहराव प्रकृति को बर्दाश्त नहीं। विचार बदल रहे हैं। मान्यतायें बदल रही हैं। रिश्ते-नाते भी बदल रहे हैं। बाप बदल रहे हैं तो बेटे भी बदल रहे हैं। मतलब यह कि दुनिया का नक्शा बड़ी तेज़ी से बदलता जा रहा है। समृद्धि आ रही है […]

आओ कमेटी बनाएँ

आपको खुशी है या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन मुझे इस बात की अपार खुशी है कि मुझे एक समिति का सदस्य बनाया गया है। लोग अपने व्यक्तित्व निर्माण के लिए समिति का सदस्य बनने के लिए बड़ी-बड़ी तिकड़में लड़ाते हैं। मैं बिना तिकड़म के ही कमेटी में आ गया हूँ। हमारे यहॉं […]

पेट पर बात मारना

हम भारतीय प्रमाण-पत्रों के पुराने शौकीन हैं। राजा लोग खुद को ही प्रमाणित करने के लिए अपने जनहित के कार्यों के शिलालेख जगह-जगह लगवाते रहे हैं, ताम्रपत्र जारी करते रहे हैं। दूसरों की तरह हम भी बचपन में इनके लिए लालायित रहते थे। पहला और आखिरी प्रमाण-पत्र हमें मैट्रिक का मिला था। हमने कोई विशेष […]

मुँह-भरी गालियॉं

ऐसा कम ही होता है कि आप किसी के विवाह में जाएँ और आपका मुँह गालियों से भर जाए। पर आजकल मेरे साथ यही हो रहा है। एक तो आजकल शादियों का सीजन है और लोग थोक के भाव कार्ड छपवा कर बांटने लगे हैं। किसी भी शादी की दावत में चले जाओ, पार्किंग से […]

कहानी की मांग पर

वो चाहे मल्लिका शेरावत हों, बिपाशा बसु हों या राखी सावंत, ये सब नये जमाने की रूपसियां हैं। उनका व्यक्तित्व अलग-अलग होते हुये भी इन सबमें एक चीज कॉमन है, वो यह कि जब भी इन बदन दिखाऊ अभिनेत्रियों से अंगप्रदर्शन के बारे में बात की जाती है तो उन सबका यही उत्तर होता है […]

युग दर्पण – नरेंद्रराय

आतंकवादी देश की नींवें हिला रहे हैं। हम आतंकवादियों के पुतले जला रहे हैं।। कीचड़ उछालते हैं दल एक-दूसरे पर। सब स्वार्थ साधते हैं, कुछ ऐसे अवसरों पर। जनता को आश्र्वासन की भंग पिला रहे हैं।। हम।। कोई नहीं सुरक्षित, झूठे हैं सारे वादे सब जानते हैं नीयत, कितने हैं नेक इरादे। हाथों में जाम […]

आखिर कहॉं खो गए हमारे नायक

आखिर कहॉं खो गए हमारे नायक

हमारे लिए कार्लाइल की इस उक्ति को शिद्दत से याद करने का समय आ गया है कि वह देश अभिशप्त है जिसे नायकों की ज़रूरत पड़ती है और वह देश उससे भी ज्यादा अभिशप्त है जिसके पास नायक नहीं हैं। हमारा दुर्भाग्य यह है कि हम इन दोनों ही अभिशप्त कोटियों में आते हैं। नायकों […]

ईमानदारी का बन्ध्याकरण

ईमानदारी का बन्ध्याकरण

अकारण कुछ भी नहीं होता। इस बात का पता मुझे कुछ दिन पहले तब चला, जब मच्छरों को मारते-मारते हलकान होकर मैं स्वास्थ्य कर्मियों के बीच जा पहुंचा। मेरे आश्र्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, मैंने देखा कि वे मच्छरों को छोड़कर मक्खियों को मारने में व्यस्त हैं। मैंने सोचा, ये लोग मक्खियॉं मारने के मुहावरे […]