साधना व तपस्या में डूबने का आनंद

साधना व तपस्या में डूबने का आनंद

तप एवं साधना का संबंध मन से होता है। मन में यदि इनके प्रति तीव्र अभीप्सा उठे, तो ही साधना सधती है, तपस्या प्रारंभ होती है। शरीर तो इन सबका एक माध्यम है, शेष सारी चीजें तो मन से होती हैं। शरीर इस पावन-कार्य में बाधा न बने, इसलिए उसे स्वस्थ और सबल बनाए रखना […]

जीवन की कसौटी का नाम है विपत्ति

जीवन की कसौटी का नाम है विपत्ति

मुफलिसी मेरी मुसीबत की कसौटी हो गई । हिम्मते अरबा़ज के जौहर नुमायां हो गए ।। “कसौटी’ एक पत्थर को कहते हैं, जिस पर सोने को घिसकर स्वर्णकार असली, नकली या मिलावटी सोने की पहचान करता है अर्थात् सोने की शुद्घता कसौटी पर कस कर ही ज्ञात की जाती है। इसी प्रकार मनुष्य की मित्रता, […]

पुरुषार्थ चतुष्टय है आध्यात्मिक आरोहण

पुरुषार्थ चतुष्टय है आध्यात्मिक आरोहण

मनुष्य का जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण जरूरी है। मनुष्य जीवन के प्रति जब तक दृष्टिकोण नहीं बदलेगा, पदार्थों के प्रति आसक्त भाव नहीं छूटेगा। जिजीविषा की मूर्च्छा से वह अलग नहीं होगा तब तक जीवन में विपदाएँ आती रहेंगी। जीवन में सबकी रुचियां, उद्देश्य, आकर्षण, सोच, क्रिया बहुत कुछ भिन्न-भिन्न होती हैं। इसलिए उम्र […]

संसार को बदलना है तो स्वयं को बदलिए

यह अमृत-वाणी हमारे प्राचीन ऋषियों और संतों की है। इस विचार-सूत्र के पीछे क्या मर्म छुपा है, आइए थोड़ा समझने का प्रयास करें। इसकी व्याख्या कई ढंग से की जा सकती है। व्यक्ति-व्यक्ति से मिलकर समाज, देश और विश्र्व का निर्माण होता है। यदि व्यक्ति बुरा है तो समाज, संगठन और विश्र्व निश्र्चय ही बुरा […]

गुस्से का दफ्तरी समाजशास्त्र

सत्तर के दशक में सलीम-जावेद ने अमिताभ बच्चन को एंग्री यंग मैन के रूप में फिल्मी पर्दे पर पेश किया और उनका जादू सिर चढ़कर बोला। इस सफलता के पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण यह था कि युवा मर्द आाामक ही अच्छा लगता है। दिलचस्प बात यह है कि एंग्री यंग मैन का बिल्ला वास्तव में […]

अभिलाषा दुःखों का मूल है

नैतिकता उपदेश नहीं है और न ही दूसरों से की जाने वाली कामना या अभिलाषा है। अन्तर्मन नैतिकता की उर्वरा स्थली है। विचारों और आचरण की जैसी खाद आप उसमें डालेंगे, फलों का स्वाद वैसा ही होगा। महा-पुरुषों ने नैतिकता युक्त आचरण को सीढ़ी की संज्ञा दी है। लेकिन सांप-सीढ़ी के इस खेल में जगह-जगह […]

आज का काम आज ही करें

एक प्रसिद्घ लोकोक्ति है – आषाढ़ का चूका किसान और डाल का चूका बंदर कहीं का नहीं रहता। हमारे महापुरुष सदा से चेतावनी देते आ रहे हैं कि काल करै, सो आज कर। समय की बर्बादी सबसे बड़ी बर्बादी है। एक विद्वान थॉमस मोये का मत है- समय एक प्रकार का अमूल्य धन है। नष्ट […]

जीवन के चार प्रकार के आश्रम

गृहस्थ के बिना संन्यास नहीं होता और संन्यास न हो, तो गृहस्थ का महत्व नहीं रहता उसमें शुद्घि और पवित्रता नहीं रहती। गृह-वास एवं गृह-त्याग, दोनों का अपना-अपना महत्व है। ब्राह्मण परम्परा में चार प्रकार के आश्रम माने गए हैं। इन चार आश्रमों में ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम आते हैं। […]

गांधीजी के एकादश व्रत

गांधी जी सच्चे मानवतावादी थे। उन्होंने दीन-हीन भारत को ऊँचा उठाने के लिए अद्वितीय कार्य किये। वे ऐसे योद्घा थे, जिनके पास न तोप थी न बम थे, फिर भी वे सदा विजयी होते रहे। वे पहले स्वयं आचरण करते थे फिर दूसरों को उपदेश देते थे। उनके एकादश व्रत उनके जीवन का निचोड़ है। […]

अध्यात्म है सुख का मार्ग

महापुरुषों का कथन है कि मनुष्य-जन्म श्र्वास लेने, भोजन करने, आहार पचाने, चिन्तन करने, अनुभव करने, जानने, इच्छा करने और ऐसे ही अन्य अनेक तथाविध कार्यों की प्रिाया मात्र नहीं है। जीवन पूर्णतया इन्हीं सब कार्यों के लिए तथा अन्त में बिना कुछ वास्तविक प्राप्त किये ही काल-कवलित होने के लिए नहीं मिला है। मानव-जन्म […]

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