सहूलियत के लिए

मैं अपनी पत्नी के तानों और रोजाना होने वाली किचकिच से बहुत परेशान था। यह सब पुरानी महरी के काम छोड़ देने और उसकी जगह कोई दूसरी महरी न मिलने की वजह से था। मैंने महरी के लिए अपने मित्रों और परिचितों से कह रखा था। खुद भी काफी कोशिश की। मुंहमांगा मेहनताना देने के लिए तैयार था, फिर भी महरी नहीं मिलनी थी, सो नहीं मिली। इसी वजह से मुझे घर में पत्नी के वाग्बाण सहने पड़ रहे थे।

एक दिन मेरा एक मित्र करीब बारह-तेरह वर्ष की लड़की को लेकर आया और बोला, डॉक्टर, यह लड़की अनाथ है। इसका नाम लक्ष्मी है। अच्छे खानदान की है। इसके माता-पिता एक हादसे में मर गए हैं। यह अपनी बहन के साथ रहती थी। उसे कुछ लोगों ने एक झूठे केस में फंसा दिया है, सो उसे जेल हो गयी। पड़ोसियों ने इसका जीना हराम कर दिया। आप इसे रख लें, तो दोनों की समस्या हल हो जाएगी।

मुझे तो इससे ऐसी राहत मिली, जैसे रेगिस्तान में भटके हुए यात्री को प्यास लगने पर कोई शीतल एवं मधुर जल का स्रोत मिल गया हो, परन्तु मैंने शंका से पूछा, यह सब काम तो करेगी न? जूठे बर्तन धो सकेगी न?

मेरी शंका इसलिए भी थी कि हमारे क्षेत्र में हरिजन और दलित कही जाने वाली जातियों तक ने किसी के जूठे बर्तन धोना बन्द कर दिया था। फिर यह तो ऊंची जाति की थी। हालांकि गरीबी की मार से अब यह पेशा सवर्ण जातियां भी अपनाने लगी थीं।

मेरी बात का लक्ष्मी ने ही जवाब दिया, बाबू जी, आप जो कहेंगे मैं सब काम करूंगी। अपनी बहन के साथ भी घरों में काम करती थी।

मैंने उसे सारे काम समझाते हुए तनख्वाह के सम्बन्ध में पूछा तो उसने अत्यंत दयनीयता से कहा, बाबू जी, मुझे आप सिर्फ खाना-कपड़ा और रहने की जगह दे दें। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मेरी बहन गुण्डों से तंग आकर चाहती थी कि कोई भी आदमी चाहे वह जैसा भी हो, जवान या बूढ़ा, मुझसे शादी कर ले, पर कोई तैयार नहीं हुआ। नहीं तो मुझे क्यों भटकना पड़ता।

मेरी पत्नी उसे रखने या न रखने के सवाल पर पशोपेश में थी, पर मेरी तो मरता क्या न करता वाली बात थी। इसलिए मैंने कहा, बेचारी बेसहारा है। बचा हुआ खाना खा लेगी और एक कोने में पड़ी रहेगी। अगर कुछ गड़बड़ की तो हटा देंगे।

कुछ तर्क-वितर्क के बाद पत्नी ने अपनी सहमति दे दी। इस तरह लक्ष्मी मेरे यहां रहने लगी।

लक्ष्मी के रहने से घर के सभी लोगों को आराम हो गया। शुरू में उससे झाड़ू-पोंछा, बर्तन, कपड़े आदि का काम लिया गया। फिर धीरे-धीरे बेड-टी से लेकर रात का दूध देने तक का सारा काम वह करने लगी। इसी हिसाब से उसका अधिकार क्षेत्र और रहन-सहन का स्तर भी बढ़ता गया। यह एक ऐसी स्वाभाविक परिणति थी कि घर के किसी सदस्य का ध्यान इस तरफ नहीं गया। अच्छा खाना, अच्छे कपड़े, पेस्ट, साबुन, तेल, चाय, कॉफी आदि सब में घर के सदस्य की तरह उसका हिस्सा हो गया। यहां तक कि बिस्तर, रजाई, जाड़ों के गर्म कपड़े भी उसे मिल गए। इस कारण उसके शरीर में भी पहले का रूखा- मटमैलापन नहीं रहा। उसका रंग निखर आया और मुख पर स्निग्धता झलकने लगी। उसके शरीर में किशोरावस्था का एक आकर्षक बदलाव लक्षित होने लगा।

लक्ष्मी खुद अपने इस बदलाव से बेखबर थी, पर वह गाहे-बगाहे सबके साथ टी.वी. पर कई तरह के प्रणय-प्रसंगों, निरोध आदि के विज्ञापनों, पॉप संगीत, फिल्मों आदि के दृश्य देखती-सुनती तो उसके अन्दर भी कई आकांक्षाओं का स्फुरण होने लगता। इन आकांक्षाओं का असली अर्थ वह खुद नहीं समझती थी। बस अन्दर एक सनसनाहट-सी दौड़ जाती थी।

उसे जब मासिक स्राव हुआ, तब वह घबरा उठी और उसने मेरी पत्नी से बदहवासी में कहा, आंटी जी, मेरी पेशाब से खून जा रहा है। कपड़े भी खराब हो गए।

मेरी पत्नी उसकी नासमझी पर हंसते हुए उसे बाथरूम में ले गई और सब समझा दिया।

इसके बाद लक्ष्मी के शरीर में तेजी से बदलाव आने लगा। वह एक किशोरी से युवती बन गई।

अब वह बहुत देर तक आईने के सामने खड़ी रहती। अपने बालों को तरह-तरह से संवारती। मुंह पर पाउडर, क्रीम आदि भी लगा लेती। अपने कपड़ों की सफाई का ध्यान रखती। दूसरे लोगों के कपड़ों और फैशन की चीजों को बड़े हश्र से देखती। उसकी चाल-ढाल और बात करने के लहजे में भी कुछ गम्भीरता और संकोचजन्य स्थिरता आ गई। वह तेजी से चलने के बजाय अपने अंगों को छिपाती हुई धीरे-धीरे कदम रखती। खिलखिलाकर हंसने के बजाय मुस्कुराकर रह जाती। बाहरी लोगों, सम्बंधियों और मुहल्ले-पड़ोस की बातों में ज्यादा दिलचस्पी लेती।

मासिक स्राव के वक्त वह प्रायः असहज और अन्तर्मुखी हो जाती। इससे उसके काम-धाम पर भी असर पड़ता। जैसे बहती हुई धारा के मार्ग में कोई चट्टान आ जाने से वह ठिठक जाय और इसके बाद दुगुने वेग से घबराती हुई बह चले।

लक्ष्मी के सामने पड़ते ही मैं उसके सम्बन्ध में सोचने लगता। लक्ष्मी जवान हो गई। वह बिना विवाह के अपनी जिन्दगी यूं ही नहीं काट सकती, पर मैं घर के काम की गरज से चुप रह जाता। मेरे मन में एक चोर भी था। उसका रहना अच्छा लगता था।

एक दिन लक्ष्मी घर से भाग गई। उसके गायब होने से सारे घर में हड़कम्प-सा मच गया। यह प्रत्याशित था। मैंने उसकी काफी खोजबीन की, पर उसका पता न चला।

फिर लक्ष्मी से मेरा कोई सरोकार न रहा। कुछ दिन चर्चा करने के बाद हम सब उसे भूल गए। संयोग से घर का काम करने के लिए दूसरी महरी भी मिल गई, परन्तु करीब पांच साल बाद लक्ष्मी अप्रत्याशित रूप से मुझे पुनः मिली। वह नारी निकेतन में थी। मनोरोग विशेषज्ञ होने के नाते नारी निकेतन की अधीक्षक श्रीमती शकुन्तला शर्मा ने मुझे कुछ ऐसी लड़कियों की परीक्षा के लिए बुलाया था, जो मानसिक रूप में कमजोर थीं और मासिक स्राव के समय अपना ध्यान नहीं रख पाती थीं। उन लड़कियों में लक्ष्मी भी थी। मेरी निगाह धोखा नहीं दे सकती थी, लक्ष्मी उन लड़कियों में सबसे अलग और सुन्दर लग रही थी। मुझे देखकर वह चौंकी भी। फिर तुरन्त उसने अपने को सहज कर लिया।

मैं जानता था कि उस नारी निकेतन में क्या होता था? वहां रहने वाली महिलाओं को जैसे बन्धक बनाकर रखा जाता था। उन्हें रूखा-सूखा खाने को दिया जाता था और उनसे सब तरह के काम कराये जाते थे। यहां तक कि मंत्रियों और अफसरों को खुश करने के लिए उन्हें भेजा जाता था। उनका यौन-शोषण होता था। मुझे श्रीमती शर्मा ने लड़कियों के परीक्षण के लिए अच्छी रकम दी थी। ताकि मैं उन लड़कियों को मानसिक रूप में कमजोर प्रमाणित कर दूं।

श्रीमती शकुन्तला शर्मा ने मेरी खूब खातिर की और कहा, डॉक्टर साहब, ये लड़कियां पागल नहीं हैं, पर इनमें कुछ ऐसी मानसिक कमजोरी है कि ये मासिक स्राव के समय अपना ध्यान नहीं रख पातीं हैं। इसके अलावा इनमें मां बनने की जिम्मेदारी उठाने की क्षमता नहीं है। ये न तो सेक्स के सम्बन्ध में जानती हैं और न ही मां बनने पर बच्चे की परवरिश कर सकती हैं। ऐसी हालत में इनके साथ कहीं गलत हो गया तो इनकी इज्जत पर भी आंच आ सकती है। इसलिए आप इन्हें सेक्स के लिए मेंटली रिटायर्ड का सर्टिफिकेट दे दें।

श्रीमती शर्मा समाज में प्रबुद्ध महिलाओं के वर्ग में गिनी जाती थीं। उनके कई मंत्रियों और अफसरों से अच्छे रसूख थे। इसलिए उनकी बात टाली नहीं जा सकती थी। दूसरे मैं लक्ष्मी की उन असहज हरकतों से भी वाकिफ था, जो वह पहले अपने मासिक स्राव के वक्त करती थी, पर वह अपने पूरे होश-हवास में रहती थी। इसे मैंने एक स्वाभाविक प्रक्रिया मान कर कोई ध्यान नहीं दिया था। फिर भी मैंने श्रीमती शकुन्तला शर्मा से पूछा, इससे क्या होगा, क्या आप इनका इलाज करायेंगी।

श्रीमती शर्मा ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, अरे डॉक्टर साहब! ऐसे लम्बे इलाज का क्या नतीजा होगा, कौन जानता है? इस बीच कोई घटना भी हो सकती है। इसलिए इनकी बच्चेदानी ऑपरेशन से निकलवा देंगे। इससे सब झंझटें दूर हो जाएंगी। मासिक स्राव का टंटा तो खत्म होगा ही, गर्भ ठहरने के खतरे से भी मुक्ति मिल जाएगी।

इससे तो इन पर सेक्स अत्याचार भी हो सकता है।

सेक्स अत्याचार तो अभी भी हो सकता है। इन्हें इसका होश ही कहां है? कम से कम ये जलालत से तो बच जाएंगी।

क्या सरकार आपको इसकी इजाजत देगी? मैंने पूछा।

इसकी चिन्ता आप मत करें। मैंने सरकार से इजाजत ले ली है। श्रीमती शकुन्तला शर्मा ने हंसकर उत्तर दिया।

– डॉ. परमलाल गुप्त

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