आज फिल्मों के बराबर है टीवी – शत्रुघ्न सिन्हा

Shatrughan Sinha Interviewआखिर न न करने, बड़बोले और फिल्मों के बाद राजनीति में धमाल मचाने वाले अभिनेता शत्रुघ्न उर्फ शॉटगन भी टीवी पर आ ही गए। लेकिन वे अपने समकालीन अभिनेता और अपनी ही पार्टी के दूसरे साथी विनोद खन्ना की तरह किसी धारावाहिक में अभिनय नहीं कर रहे हैं बल्कि स्टार वन के लोकप्रिय शो लॉफ्टर चैलेंज के चौथे सीजन में अपने से भी बडबोले िाकेटर, अपनी ही पार्टी के एक और राजनेता और अब अभिनेता के साथ लॉफ्टर में ही जज बने नवजोत सिंह सिद्धू के साथ जज की भूमिका में हैं।

आजकल आप अपनी बयानबाजी और खासकर बिग बी से विवादों के लिए खासे चर्चा में हैं?

मैं हमेशा अपने मन की साफ बात कहता हूँ। मैंने कभी किसी को नीचा दिखाने के लिए कोई बात नहीं कही और न ही ऐसा काम किया। जहॉं तक बच्चन जी की बात है तो वे मुझसे उम्र में बड़े हैं और हमारे मिलेनियम सितारे हैं। मैं उनका सम्मान करता हूँ।

बच्चन जी ने अपने ब्लाग में आपके बारे में जो कुछ कहा आप उससे सहमत हैं?

हर आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार है। हमारे देश में प्रजातंत्र है। मैं केवल इतना जानता हूँ कि वे एक बड़े कलाकार हैं। उन्हें अपना रुतबा बनाए रखना चाहिए।

लेकिन आप मानते हैं कि यदि आप और विनोद खन्ना फिल्मों से दूर नहीं हुए होते तो उन्हें यह रुतबा कभी नहीं मिलता। वे उन्हीं फिल्मों से एंग्री यंगमैन बने जो आपने छोड़ीं?

मुझे ऐसा नहीं लगता। हर वह फिल्म जो कोई कलाकार छोड़ता है तो वह कोई तो करता ही है। “जंजीर’ और “दीवार’ ऐसी ही फिल्में थीं, लेकिन यह संयोग और किस्मत की बात है। इसे मैं बदल नहीं सकता। इसे आप ऐसे भी कह सकते हैं कि जब सुभाष घई ने “विश्र्वनाथ’ और “कालीचरण’ जैसी फिल्में बनायीं तो उन्हें कोई करने के लिए तैयार नहीं था। मैंने कीं और वे सुपरहिट बन गयीं और सुभाष शोमैन।

यानी टीवी पर आना भी एक संयोग है और वह भी कॉमेडी शो में जज बनकर?

टीवी पर आना संयोग नहीं है। आज बड़े सितारे भी टीवी पर काम कर रहे हैं। टीवी आज फिल्मों के मुकाबले बराबरी पर है। जहॉं तक कॉमेडी शो की बात है तो मैंने फिल्मों में भी नरमगरम, दोस्त और मेरा दिल लेके देखो जैसी फिल्में की हैं। वे मेरे लिए एक चुनौती की तरह थीं और यह शो भी मेरे लिए एक चुनौती है।

जैसे खलनायक से नायक बनने की चुनौती थी?

कह सकते हैं। मैंने अपनी शुरुआत मोहन सहगल की “साजन’ से की थी और उसमें पहली बार मैंने परदे पर खुद को देखा था। उसके बाद मिलाप और एक नारी दो रूप ऐसी फिल्में थीं, जिसमें मैं पहली बार नायक बनकर आया? लेकिन आज भी लोगों को, मेरे अपने का छेनू जैसा चरित्र ज्यादा याद है। जबकि वह फिल्म पहले भी बंगला में तपन सिन्हा बना चुके थे। हिन्दी में वह गुलजार की पहली फिल्म थी।

आपने इतना लंबा सफर तय किया करीब चालीस साल फिल्मों में रहे, क्या लगता है अब?

लगता है जैसे कल की ही बात हो। मैं जब खलनायक बनता था तो लोग कांप जाते थे। मुझे लगता था कि मैंने अच्छा काम किया, लोगों को डरा दिया। सही मायने में देखें तो वह गाली खाने वाला काम था। (हंसते हैं) हॉं नायक बनकर जब विश्र्वनाथ, कालीचरण और दूसरी फिल्में कीं तो भी लोगों ने उतना ही प्यार दिया।

अब सभी अपने प्रोडक्शन हाउस लेकर मैदान में हैं?

मैंने तो इसकी शुरुआत बहुत पहले की थी जब मैंने कालका बनायी। हाल ही मैंने पूनम के साथ “मेरा दिल लेके देखो’ बनायी। यह कॉमेडी फिल्म थी। मेरा एक नाटक “मैं, मेरी पत्नी और मैं’ अभी भी खेला जा रहा है। लोग हमेशा विशेष सिनेमा में काम करने की बात करते हैं, पर मैंने तभी कस्बा और बंगला की अंतर्जली जैसी फिल्में की थीं।

अपने परिवार के भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं?

मैं भला सोचने वाला कौन होता हूँ? पूनम की वापसी हो गयी। मेरे दोनों बेटों में से एक कुश राजकंवर की फिल्म से अपनी शुरुआत कर रहा है। लव की रुचि निर्देशन में है। दोनों ने अमेरिका से प्रशिक्षण लिया है। बेटी सोनीक्षी के लिए कई ऑफर्स हैं, पर मैं चाहता हूँ कि उसकी शुरुआत किसी उद्देश्यपूर्ण और सही काम से हो।

राजनीति में अब कितनी हिस्सेदारी रहेगी?

मैं राजनीति छोड़ कर दुबारा काम करने नहीं आया हूँ। पर मैं चाहता हूँ कि अब आऊं तो पूरी तरह अपने चुनाव क्षेत्र से जीतकर आऊं। मैं लोगों की सेवा करने आया हूँ करता रहूँगा।

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