अरब में अट्टालिकाओं का नशा

uae-intoxication-for-mansionsपिछले कई सालों से ऊंची इमारतों के जि पर दुबई के अल बुर्ज होटल का ही जि होता था, जिसे दुबई टॉवर भी कहते हैं। लेकिन लगता है अब अरब में सबसे ऊंची इमारत बनाने की होड़ लग गयी है। अब दुबई टॉवर से दो गुनी ऊंची लगभग एक मील की ऊंची इमारत बनाने की तैयारी हो रही है। यह जेद्दाह में बनने जा रही है, जिसकी ऊंचाई 5250 फीट होगी। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के सूत्रधार शहजादा अल वालिद बिन तलाल हैं। याद करिए, यह वही अल वालिद बिन तलाल हैं, जिन्होंने 2005 में लंदन के सेवाय होटल को 125 बिलियन पौंड में खरीदा था और पूरी दुनिया की मीडिया की सुर्खियों में आ गये थे।

अट्टालिकाएं या गगनचुंबी इमारतें 19वीं सदी में बननी शुरू हुईं, जब जेम्स बुगाड्र्स ने न्यूयार्क में सन् 1848 में एक इमारत खड़ी की। इसका ढांचा फौलाद का था और उसी फौलाद में कंक्रीट से छतें, दीवारें और फर्श बनायी गयी थीं। इसके लिए हल्के और मजबूत स्टील का इस्तेमाल हुआ था। यह इमारत शिकागो की होम इंश्योरेंस कंपनी के लिए बनायी गयी थी। इसके वास्तुकार विलियम ले बरोन जेनी थे। यह पहली इमारत थी, जिसने इंसान को रहने के लिए पेड़ों के बाद एक वर्टिकल स्पेस मुहैया कराया था। लम्बे समय तक हम सामान्य ज्ञान की किताबों में दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों के नाम शीयर्स टॉवर या एम्पायर एस्टेट पढ़ते रहे हैं। लेकिन लगता है, अब ऊंची इमारतों के मामले में यूरोप और अमेरिका का दबदबा बीते इतिहास की बात हो गयी है। इस समय दुनिया की आधी से ज्यादा बल्कि दो-तिहाई के आसपास सर्वाधिक ऊंची इमारतें यूरोप और अमेरिका में नहीं बल्कि एशिया में हैं। चीन, ताईवान, हांगकांग, सिंगापुर, मलेशिया जैसे देश ऊंची इमारतों के बड़े गढ़ हैं।

लेकिन पिछले एक दशक से लगता है मध्य-पूर्व बड़ी बेचैनी से ऊंची इमारतों के स्टेटस सिंबल का मालिक बनना चाहता है। इसीलिए पहले अल बुर्ज या दुबई टॉवर नाम से 2300 फीट ऊंची इमारत बनी, तो अब जेद्दाह का प्रस्तावित जेद्दाह टॉवर 5250 फीट ऊंचा बनने जा रहा है। इसकी ऊंचाई एक जमाने में दुनिया की बहुत ऊंची इमारतों में गिने जाने वाले लंदन के केनेरी वार्फ टॉवर से 700 प्रतिशत ज्यादा होगी। जेद्दाह के लाल सागर के तट पर बसाये जा रहे एक नये शहर में इस इमारत का निर्माण होना है। लोगों को उम्मीद है कि यह सन् 2015 तक तैयार हो जायेगी और इसकी लागत 5 बिलियन पौंड से भी ज्यादा आयेगी। जब दुबई और यह प्रस्तावित जेद्दाह टॉवर ऊंची इमारतों की सूची में शामिल नहीं थे, उन दिनों काफी लम्बे समय तक क्वालालम्पुर के पेट्रोनस टॉवर दुनिया में सबसे ऊंचे ट्विन टॉवर के रूप में मशहूर रहे हैं। यह 1486 फीट ऊंचे हैं, जो कि एफिल टॉवर से 502 फीट ज्यादा ऊंचे हैं। एफिल टॉवर 984 फीट है और सीएन टॉवर, टोरंटो 1815 फीट है। जब सीएन टॉवर बन रहा था तो लोगों को लगता था कि शायद यह हमेशा के लिए दुनिया का सबसे ऊंचा टॉवर होगा, लेकिन अब लगता है कि इंसान की फितरत का, उसकी कल्पना और इरादे का कोई अंत नहीं है।

स्काई ौपर्स या गगनचुंबी अट्टालिकाएं कोई बुरा विचार नहीं हैं, लेकिन जब धरती पर पहले से ही बहुत ज्यादा बोझ हो तो कंक्रीट का यह नया अतिरिक्त बोझ डालने का क्या औचित्य है? खासकर उन देशों को, जिनके पास जगह की कमी नहीं है। गौरतलब है कि आसमान चूमती इमारतें सिर्फ धरती के सीने पर कंक्रीट का पहाड़ ही नहीं खड़ा करतीं, बल्कि इनकी एक दिशा ऊपर के ठीक विपरीत नीचे भी होती है। कोई भी इमारत जितनी ऊंची होगी, उसका नीचे जाने वाला नींव का आधार भी उतना ही गहरा होगा। क्योंकि इसी गहराई पर खड़ी की गयी अधिसंरचना की बदौलत ही गगनचुंबी अट्टालिकाएं निर्मित हो पाती हैं। कहने का मतलब एक कंक्रीट का जंगल धरती के पेट में भी घुसता है।

1868 के आसपास न्यूयार्क में ऊंची-ऊंची इमारतों का चलन शुरू हुआ। लेकिन उसके पीछे असली कारण वैभव का प्रदर्शन नहीं बल्कि श्रेष्ठ इंजीनियरिंग का प्रदर्शन और जगह की कमी का विकल्प खोजना था। न्यूयार्क में जमीन के रेट बहुत ही बढ़ गये थे। तभी यह तकनीक विकसित की गयी कि क्या आदमी जमीन के अलावा जमीन के ऊपर निर्मित किए गये कृत्रिम आधार पर भी सहजता से रह सकता है? जवाब मिला-हां। बशर्ते कि आपके पास ऊंचे उठने की तकनीक हो। अमेरिका इस तरह की गगनचुंबी इमारतों की तकनीक को विकसित करने में सबसे आगे रहा है। यही कारण है कि सबसे पहले अट्टालिकाओं के झुरमुट अमेरिका में ही नजर आये। उन दिनों अरब उजाड़ रेगिस्तान से ज्यादा कुछ नहीं था। बीसवीं सदी के आधे समय तक भी अरब में कुछ नहीं था, लेकिन जब पेट्रोल मिला तो कायाकल्प होने लगा। चूंकि अरब का समूचा प्राकृतिक संसाधन मुट्ठी भर शेखों के हाथ में है, इसलिए वह अपनी प्रजा यानी आम लोगों के तमाम कष्टों की परवाह किए बिना जब-तब अपने वैभव का प्रदर्शन करते रहते हैं।

कुछ दशकों पहले तक शेखों के वैभव का सबसे आसान प्रदर्शन होता था, सोने का अधिकाधिक उपयोग। कहा जाता है कि उनके टॉयलेट तक सोने के बने होते थे। लेकिन सोना अब अपनी तमाम कीमत के बावजूद एक आउटडेटेड चीज बन चुका है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बाजार में सोने की कीमतें बढ़ रही हैं, लेकिन सोने के जरिए वैभव के प्रदर्शन का दौर, लगता है खत्म हो चुका है। फिर एक और बात है। बदलती हुई दुनिया की नब्ज आखिर शेख भी पहचानते हैं। उन्हें यह बात बहुत अच्छे ढंग से पता है कि अगले कुछ दशकों तक ही तेल का बहुमूल्य खजाना उनके पास रह पायेगा। जिस रफ्तार से तेल का दोहन हो रहा है, उस रफ्तार से तो वह बहुत दिनों तक नहीं चलने वाला। सवाल है, जब तेल खत्म हो जायेगा तब क्या होगा? शेखों में अब यह सवाल बड़ी शिद्दत से कुलबुलाने लगा है। जिसका वह अपने तईं जवाब देने की कोशिश भी कर रहे हैं। पिछले एक दशक से मध्यपूर्व के देश बड़ी तेजी से अपनी अर्थव्यवस्था को कुछ वैकल्पिक आधारों से सहारा दे रहे हैं। दुबई, अबूधाबी और जेद्दाह बहुत तेजी से सैलानियों के पसंदीदा डेस्टिनेशन बनकर उभर रहे हैं। हालांकि प्राकृतिक रूप से यहां आकर्षित करने की एक ही चीज है। यहां दूर-दूर तक फैला गर्म उजाड़ रेत। लेकिन शेखों ने इस रेगिस्तान को भी पैसे के बल पर अपनी तरह के नखलिस्तान में बदलने की मुहिम शुरू की है। दुबई, अबूधाबी और जेद्दाह तेजी से विश्र्व के पर्यटन मानचित्र पर अपनी जगह बना रहे हैं। बड़े-बड़े शॉपिंग माल, गगनचुंबी होटल, कृत्रिम विश्र्व विरासतों के मॉडल और पर्यटन के लिहाज से लोकप्रियता हासिल कर रहे थीम पार्क, जिनमें कई तो सिर्फ प्लास्टिक के हैं। मध्यपूर्व के शासक जानते हैं कि जब तेल नहीं होगा तो इस वैभव को बरकरार रखना असंभव होगा। इसलिए इसके रहते ही क्यों न ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था का पता लगाया जाए, जिससे तेल खत्म होने के बाद भी जीवन चलता रहे। गगनचुंबी इमारतों का मौजूदा नशा एक व्यवस्थित भविष्य योजना का भी हिस्सा है। मध्यपूर्व के शासक जानते हैं कि ऊंची इमारतों का आकर्षण न सिर्फ एशिया बल्कि यूरोप और अमेरिका में भी अभी तक है। इसलिए ये भव्य गगनचुंबी इमारतें बनाकर बड़े पैमाने पर इनका व्यापारिक दोहन करने की योजना बना रहे हैं। यह एक अच्छा ख्याल है, लेकिन इस बात को भी समझना जरूरी है कि प्रकृति सिर्फ आपके फायदों का ही ध्यान रहीं रखती। प्रकृति के लिए धरती का संतुलन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अरब की दुनिया में जिस तरह से गगनचुंबी इमारतों का नशा बढ़ रहा है, उसे देखते हुए दुनिया के पर्यावरणविद काफी चिंतित हो उठे हैं। क्योंकि समुद्र के किनारे भुरभुरी जमीन पर गगनचुंबी कंक्रीट के जंगल खड़े करने का नतीजा पर्यावरण के गहरे खतरे तक भी जा सकते हैं। इसलिए वैभव और भविष्य की योजना को मूर्तरूप देने के साथ-साथ हमें यह भी सोचना होगा कि क्या इस तरह के गगनचुंबी कंक्रीट के जंगल मानवता के हित में हैं?

– डॉ. एम.सी. छाबड़ा

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