ऋषि पंचमी

ऋषि पंचमी का त्यौहार भादवा सुदी पांचम को मनाते है, हालांकि आजकल राखी लगभग पुर्णिमा को बान्धने लग गये है, लेकिन हम लोगों का वास्तविक त्यौहार तो पांचम ही है आज के दिन भाई बहिन से राखी बन्धवाते है इसे शामा पांचम भी कहते है, इस दिन जो व्रत करते है वो शामा खाते है, शामा को धोकर दूध में सिजाते है फिरघी शक्कर डालकर खाते है। नमक नहीं खाते है। कपडे से पांच भाई व एक बहन बनातेहै, उन्हें हम शक्कर वचावल बने हुए से जिमाते है। रुई के फोए लगाते है। कुंकु, चावल मोली से पूजा करते है एक चोर बनाते है, भाईयों को सफेद कपडे पहनाते है, बहिन को लाल कपडे पहनाते है। पूजा करने के बाद कहानी कहते है।

राखी पांचम की कहानी

एक सेठ हो बिरे पांच बेटा एक बेटी थी बेटी सासरे मे ही, राखी पांचम को त्यौहार आयो छोटो भाई थोडो गरीब हो बो बोल्यो हर बार सगला भाई जावे, बहिन री बहुत बडाई करे इ बार म्हे जासुं भाई गयो बेन सूत कात रही थी, भाई ने आंवता देखी, जल्दी में सुत बार-बार टुट रहो थो तो केवे-टुटे तार उठणो नहीं तो बहिन उठी कोनी, घणी देरी लागी, पछबीरो सूत पुरो हुयो तो भागी-भागी पाडोसन र गई पाडोसन म्हारो भाई आयो है कांई बनाऊ पाडोसन बोली तेल रो चोको देले घी में चावल सीजाले, बां बियान ही करियो न तो चोको सुके न चावल सीजे पाछी पाडोसन कने गई पाडोसन बोली रामारी मतो मजाक करी,दूध में चाव सीजा पानीरो चोकोदे। अठीने भाई सोच्यो ले आज म्हारे खने रुपिया कोनी तो बेन भी मने कोनी पूछे बेन रसोई बनार भाई न जीमायो भाई ने कियो भाई थोडा दिन रुक भाई केवे म्ह तो सुबह बेगो ही जाउ बा सोची भाई रेसाथ गिरी गुंदरा लाडु करदुं,रात न गुंद गिरी कुटण न बेठी अन्धारे मे ठा नहीं पडियो साथे कालिन्दर कुटीज गयो, भाई रवाना हुग्यो, टाबर उठिया माँ भूख लागी है नाश्तो घाल तो बोली रात मामाणी वास्ते लाडुबनाया पडिया है खालो टाबर देखता ही चिल्लाया माँ-माँ ओ कांई, बातो देखी देखता हीदोडी, दोडती जावे केवंती जावे, बीरा रे नही खोल्यो हे तो खोली मती खोल्यो हे तो खाई मती अठीने भाई ने भूघ लागी तो सोच्यो बेन नाश्तो भेजयो है करलुं नाश्तो खोले तो खुले नहीं तार आडा आवतां जावे क्युंकि बा तार कातथा उठी कोनी थी,भाई सोच्यो घर में भूखो राखियो साथ भी कांई टुणो करियो हे अठीने बेन दौडती-दौडती आई बीरा रे नही खोल्यो है तो खोली मती खोल्यो है तो खाई मती भाई बोल्यो मे तो थारे घर सुं कीलेर कोनी आयो हुं लारे क्युं आई है म्हारे खने तो की भी कोनी थो थने देवण ने दो-टका दिया थारी भोजाई जिका भी रास्ते मेंचोर लूंट लियो बेन बोली भाई भाी रो तो आर्शीवाद ही धणो दूवे, सगली बातबताई, भाई ने घर परलेर गईहै 5-7 दिन राख्यो हे पछ चोखी तरह विदा करियो है भगवान जिसी बिरे भाई री रक्षा करी बियांसबकी करिज्यो। इक वास्ते राखी पर भाई आवे तो कदई छट न सीख नहीं देणी या तो पांचम ने ही भेज देनो या फिर सातम, आठम न और गूंद-गिरी भाई ने नही खिलाळी चहिजे।

विनायक जी की कहानी

दो सासु बहुआ थी सासु बहु न नाश्तो कोनी देती बहु न नाश्तेरी ही धणी मनने आवंती नाश्तो किया खांउ दिन भर ओ ही सोचती रेहती, एक दिन बहु न एक उपाय मिल गयो, सासु बार ने जांवती जणा बहु नाश्तो खा लेती थोडो बिखेरदेती चुहा को नाम लगा देती एक दिन गणेशजी सोच्यो आ रोज-रोज खुद खा लेवे, चुहा के नाम लगा देवे, इने थोडो खुदकलो दिखाणो पडसी एक दिन बा काम सलटा कर सोई दुसरे दिन बिके धणी बार गांव सुं आणे वालो हो बा सोची सुबह बेगी उठकर जल्दी जल्दी काम सलटा लेवुं बा आपरी साडी खुंटी टांग कर सोगी सुबह साजी कठई कोनी मिली सासु बारे सुं हेला करे बहु दरवाजो खोल बहु कियो म्हारी साडी कोनी लाघ रही है,सासु और बिको धणी घुस्सा करण न लाग गया, बोल्या बंद कमरे सुं साडी कठे जासी, तुं झूठ बोल रही है बां बोत कियो पर बिरी बात कोई मानी कोनी पछी बिने ध्यान आयो कि मै नाश्तो खाकर चुहा को नामलगा देती कठई गणेशजी चुटकलो तो नहीं दिखायो है। बो सासु न सारी बात बताई गणेश जी सुं माफी मांगी इता म्हे ही सासु ने साडी रो कोर बिल में दिख्यो, सासु साडी बहु न दी। गणेश जी महाराज र सासु सवा मण रो प्रसाद करियो, गणेश जी अन्न धन रा भण्डार भरिया बिसा सब रे भरिज्यो, बिने खुदकलो दिखायो जिसो कोई न भी मति दिखाइज्यो।

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