एन्वायरमेंट इंजीनियरिंग

धरती संकट में है और काफी लम्बे अरसे से यह बात पता होने के बावजूद संकट दिन पर दिन गहराता ही जा रहा है। यह संकट गहराते पर्यावरण प्रदूषण का है, जिसने जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और इस तरह की कई समस्याएं पैदा कर दी हैं। अब अगर समस्याएं पैदा हुई हैं तो उनका निदान भी खोजा जा रहा है। गहराते पर्यावरण संकट से बचने का उपाय बताती है एन्वायरमेंट इंजीनियरिंग। भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में है, जहां लगभग सभी तरह के प्रदूषण की समस्याएं मौजूद हैं। जल-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण वगैरह वगैरह।

इन तमाम तरह के प्रदूषणों से पर्यावरण इंजीनियर ही कुशलता से निपट सकता है। यही वजह है कि देश में एन्वायरमेंट इंजीनियरिंग के लिए स्कोप भी बढ़ रहा है और इसकी तरफ रूझान भी। केन्द्र व राज्य सरकारों में अब पर्यावरण मंत्री सबसे महत्वपूर्ण मंत्रियों में से एक होने लगा है। हर बड़ी औद्योगिक नीति पर्यावरण पर बिना विस्तृत बात किए पूरी हो ही नहीं सकती। क्योंकि हमारी नदियां दिनोंदिन कीचड़ होती जा रही हैं, शहर धुएँ और धूल के गुबार में गुम होते जा रहे हैं और वर्षा मौसम दर मौसम अनियमित और अनियंत्रित होती जा रही है। इन तमाम तरह की चिंताओं के निवारण के लिए लगातार पर्यावरण को बेहतर बनाने की कवायद हो रही है। इस कवायद के केन्द्र में है- पर्यावरण इंजीनियर। पर्यावरण इंजीनियर गंदी और प्रदूषित हो चुकी धरती को साफ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने में अपनी कुशलता का इस्तेमाल करता है।

पर्यावरण इंजीनियरिंग दरअसल, सिविल और केमिकल इंजीनियरिंग का मिश्रण होती है। पर्यावरण इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जाने वाले छात्रों का चयन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ज्वाइंट एंटेंस एग्जामिनेशन के जरिए होता है। चार साल की अकादमिक पढ़ाई के बाद एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग की डिग्री मिलती है, जो बी.ई. यानी बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री होती है। पर्यावरण इंजीनियरिंग

एक इंटर-डिसिप्लिनरी प्रोग्राम है, जिसमें कई विषयों का अध्ययन एक साथ किया जाता है। हवा की गुणवत्ता को जानना, प्रदूषित वायु को बेहतर बनाना, वायु-प्रदूषण में नियंत्रण करना, वाटर सप्लाई, वेस्ट वाटर डिस्पोजल, रेन वाटर मैनेजमेंट, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट तथा हजाड्र्स वेस्ट मैनेजमेंट शामिल हैं। ये विभिन्न तरह के विषय दरअसल पर्यावरण प्रदूषण के हिस्से हैं।

हालांकि बिगड़े पर्यावरण की समस्या पिछले कई दशकों से मौजूद है, लेकिन अभी भी देश में बड़े पैमाने पर ऐसे संस्थानों का अभाव है, जो पर्यावरण इंजीनियरिंग में अंडरग्रेजुएट कोर्स कराते हों। हालांकि बैचलर स्तर पर डिग्री प्रदान करने वाले कई संस्थान हैं। चूंकि पर्यावरण इंजीनियरिंग एक मल्टी डिसिप्लिनरी पाठ्याम है। इसलिए इसमें मास्टर डिग्री से ज्यादा महत्व बैचलर डिग्री का होता है। मास्टर डिग्री और उच्च अध्ययन में विशेषज्ञता के स्तर पर चीजें अलग-अलग हो जाती हैं। मास्टर डिग्री के लिए तीन तरह के मास्टर प्रोग्राम उपलब्ध हैं- एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग, एन्वायरमेंटल मैनेजमेंट और एम.एस.सी. इन एन्वायरमेंटल साइंस।

हालांकि एम.एस.सी. के स्तर पर यह पाठ्याम काफी पहले से मौजूद है, लेकिन शुरू में यह पाठ्याम सिर्फ ठोस और द्रव कचरे के प्रबंधन तक ही सीमित था। लेकिन अब चूंकि वायु की गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। इस वजह से इस पाठ्याम का विस्तार कर दिया गया है और उसमें टॉक्सिक वेस्ट को भी शामिल कर लिया गया है ताकि वायु और जमीन के प्रदूषण को बेहतर ढंग से समझा जा सके और इस चुनौती से निपटा जा सके।

पहले इंजीनियरिंग संस्थान सिर्फ इंजीनियरिंग कुशलता तक ही पाठ्याम को सीमित रखते थे, लेकिन अब एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग के पाठ्याम में प्रबंधकीय पहलुओं को भी तेजी से शामिल किया जा रहा है ताकि इंजीनियर न सिर्फ प्रदूषण निवारण की तकनीक में ही दक्ष हों, बल्कि उसका प्रबंधन करने में भी कुशल हों। एन्वायरमेंटल इंजीनियरों की मांग इतनी तेजी से बढ़ रही है कि ज्यादातर इंजीनियरों का कैंपस प्लेसमेंट ही हो जाता है। ज्यादातर छात्र जब अपने डिग्री पाठ्याम के अंतिम साल में ही होते हैं, तभी विभिन्न कंपनियां उन्हें अपने यहां रख लेती हैं। इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा आकर्षण जिन कंपनियों का है, वो रिसाइकिलिंग और वेस्ट मैनेजमेंट वाली कंपनियां हैं। जिस तेजी से इस क्षेत्र में इंजीनियरों की मांग बढ़ रही है, उसके लिए अध्ययन भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहां नौकरी के लिए छात्र आकर्षित होते हैं।

मीडिया और सरकारी स्तरों पर गहराते पर्यावरण संकट से निपटने के लिए जो जागरुकता का माहौल बनाया गया है, उस कारण भी इस क्षेत्र में कॅरिअर बनाने वालों की संख्या बढ़ी है।

पर्यावरण इंजीनियर के लिए सरकारी, अर्धसरकारी और गैर-सरकारी यानी सभी क्षेत्रों में नौकरी के लिए जबरदस्त स्कोप है। देश में फिलहाल हर साल 4 से 5 हजार पर्यावरण इंजीनियर ही पैदा हो रहे हैं, जबकि हर साल की उनकी मांग का आंकड़ा 10 हजार से ऊपर है यानी इस समय जितने पर्यावरण इंजीनियरों की जरूरत है, उससे आधे ही उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र में अच्छा वेतन मिलता है। शुरुआत से ही सरकारी क्षेत्र में 15 से 20 हजार रुपये प्रतिमाह और प्राइवेट सेक्टर में 35 से 45 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी मिल जाती है। जहां तक इस क्षेत्र में डिग्री हासिल कराने वाले संस्थानों का सवाल है तो देश के कुछ प्रमुख संस्थान इस प्रकार हैं-

  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, लखनऊ
  • अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई
  • एनआईटी, त्रिचुरापल्ली
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू
  • दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, दिल्ली
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली, कानपुर, खड़गपुर

– जी.एस. नंदिनी

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