ओबामा की राह में रोड़े

इस बार अमेरिकी राष्टपति चुनाव में इतिहास तो रचा ही जायेगा, राष्टपति चाहे कोई भी बने। मेक्केन यदि राष्टपति बनते हैं तो वह अमेरिकी इतिहास के सबसे बुजुर्ग राष्टपति होंगे। अमेरिका में मूल्य वृद्घि और इराक युद्घ के कारण बुश प्रशासन के विरुद्घ वातावरण है।

इसके बावजूद यदि मेक्केन राष्टपति चुने जाते हैं तो यह एक सीमा तक, उनके उपराष्टपति पद पर साराह के नामांकन के कारण भी होगा। उनको उपराष्टपति पद का उम्मीदवार बनाने की घोषणा के बाद रिपब्लिकन उम्मीदवार की लोकप्रियता में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। तटस्थ मतदाता उनकी तरफ झुक रहे हैं। एक हाल के सर्वेक्षण में ओबामा को छियालीस प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला और मेक्केन को करीब पचास प्रतिशत। पहले सर्वेक्षणों में ओबामा आगे चल रहे थे।

सर्वेक्षणों में ओबामा आगे चलें तो भी उनकी राह आसान नहीं है। विगत 14 मई से 6 अगस्त तक मुझे अमेरिका में रहने का अवसर मिला तो जहॉं तक मेरा आकलन है, ओबामा की राह ज्यादा कंटीली है। वैसे ओबामा का डेमोोटिक पार्टी के उम्मीदवार के रूप में नामांकन भी एक करिश्मा है। हिलेरी क्ंिलटन के विरुद्घ नामांकन प्राप्त करना न तो आसान था, न प्रारंभ में संभावित लगता था।

सीनेटर क्ंिलटन ने ओबामा को पूरा समर्थन देने का वादा किया है और उनके पूरे सिाय समर्थन के बिना ओबामा का जीतना बहुत मुश्किल है। हिलेरी क्ंिलटन को महिलाओं का बड़ा समर्थन प्राप्त था। उनकी समर्थक महिलाएँ अभी भी ओबामा के पक्ष में आने से इन्कार कर रही हैं। दूसरी तरफ मेक्केन ने एक युवा प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली महिला को उपराष्टपति के लिए चुनकर ओबामा की मुश्किलों को ब़ढ़ा दिया है।

ओबामा की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। अमेरिका में हर उम्मीदवार की सार्वजनिक रूप से छानबीन की जाती है, उम्मीदवार की सार्वजनिक जिन्दगी की भी और निजी जिन्दगी की भी। यह खोजबीन जीवन के हर पहलू पर होती है। यह छिद्रान्वेषण से कम नहीं होती। उम्मीदवार व उसके परिवार के व्यक्तिगत चरित्र को हर कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है।

ओबामा अश्र्वेत हैं और वह अमेरिका के आज तक के राष्टपतियों से अलग नजर आते हैं। रंगभेद ओबामा के लिए कोई कड़ी बाधा नहीं है क्योंकि रंगभेद से ज्यादा से ज्यादा दो-तीन प्रतिशत का फर्क पड़ता है। वहॉं पर रंगभेद न केवल गैर कानूनी है बल्कि अमेरिकी जनता हर ऐसे उम्मीदवार को धराशायी करती है जो रंगभेद की दृष्टि रखता हो।

कोई भी ओबामा विरोधी रंगभेद की बात नहीं करता इसलिए भी रंग कोई मुद्दा नहीं है, पर धर्म एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। ईसाई के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बी को यह जनता राष्टपति चुनेगी, यह वर्तमान में संभव नहीं लगता है, इसलिए बार-बार बराक हुसैन ओबामा को यह कहना पड़ता है कि वह मुसलमान नहीं हैं, वह ईसाई हैं और वह ईसाई धर्म का पालन करते हैं।

अनेक बार ओबामा का अपने आपको ईसाई बताना इस तथ्य का द्योतक है कि इस विषय में ओबामा को रक्षात्मक स्थिति लेनी पड़ती है। यह रक्षात्मक भंगिमा ओबामा के लिए ़जरूरी है क्योंकि उनके पिता एक कीनियाई मुसलमान थे और मॉं ईसाई थी। परिवार अधिकांशतः पुरुष प्रधान होते हैं और उनकी संरचना पुरुष सत्तात्मक होती है इसलिए साधारणतः पुत्र का धर्म पिता का ही धर्म होता है।

ओबामा की माता ने अपनी दूसरी शादी भी एक मुसलमान से की और ओबामा उसके साथ इंडोनेशिया में रहे। ओबामा कहते हैं कि मुझे मेरी नानी ने पाला है और मैं नियमित रूप से चर्च जाता हूँ तथा ईसाई धर्म का पालन करता हूँ। उनकी पत्नी भी ईसाई है और कैथोलिक है। उनकी पत्नी ने भी इस बात को बार-बार दोहराया है कि वह तथा उसके माता-पिता ईसाई हैं तथा ओबामा भी ईसाई हैं।

ओबामा से उनकी आर्थिक नीतियों को लेकर काफी प्रश्र्न्न पूछे जाते हैं। अमेरिका की आयल लॉबी उन्हें बिल्कुल पसन्द नहीं करती। यह स्वाभाविक है क्योंकि वे धनी लोगों पर कर लगाने का प्रस्ताव करते हैं और साधारण अमेरिकन के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तथा शिक्षा सेवाओं में अधिक धन लगाना चाहते हैं। अमेरिका की पत्र-पत्रिकाओं में यहूदी लॉबी का बड़ा असर है। यह लॉबी भी ओबामा के खिलाफ है। इनके टी.वी. चैनल भी हैं। ये सभी ओबामा को रक्षात्मक ही रखना चाहते हैं। फॉक्स न्यूज के बिल ओ’ रेवी ने “इम्पैक्ट’ सेगमैंट में ओबामा से पहली बार जो सवाल पूछे, उनमें इराक, ईरान, पाकिस्तान, शिया-सुन्नी मसलों को लेकर बहुत सवाल थे।

मेक्केन से इस प्रकार से प्रश्र्न्न नहीं पूछे जाते, न उन्हें कोई सफाई देनी पड़ती है। उन्हें सैनिकों को भी कोई सफाई नहीं देनी पड़ती। ओबामा को भूतपूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के वोट प्राप्त करने के पीछे भी काफी मेहनत करनी पड़ेगी।

मेरे इस विश्र्लेषण का कतई यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि ओबामा चुनाव में नहीं जीत सकते। उनके जीतने की संभावना मेक्केन के बराबर ही है। अभी कई परिवर्तन होंगे, कई राय-शुमारियॉं आयेंगी और कई मुद्दों पर बहस चलेगी। किसी भी बहस या संवाद में ओबामा कहीं कमजोर नहीं पड़ते। अमेरिका की आर्थिक कठिनाइयॉं यदि ब़ढ़ेंगी तो ओबामा के जीतने की संभावना भी बढ़ेगी।

ओबामा का नारा है “परिवर्तन’। इस नारे में बड़ा दम है। अमेरिका की विदेश नीति की विफलता भी ओबामा का हथियार है यद्यपि विदेश नीति के प्रश्न पर कोई राष्टपति का चुनाव नहीं जीत सकता। राष्टपति चुनाव में महंगाई, तेल की कीमतें और भविष्य की तेल नीति ज्यादा महत्वपूर्ण रहेगी। ओबामा की शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी नीतियॉं भी सकारात्मक रंग दिखा सकती हैं।

ओबामा आम आदमी के दिल को छूते हैं पर अमेरिका का आम आदमी ऐसे धड़ों में बंटा हुआ है जहॉं उसके लिए अपने हितों को पहचानने में धुंधलापन हावी हो सकता है। युवा वर्ग पर तो ओबामा का चमत्कार चल रहा है पर कन्जरवेटिव ग्रामीणों और महिलाओं पर कितना जादू वह कर सकते हैं, यह अभी अनिश्र्चित है।

 

– उपध्यान चन्द्र कोचर

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