क्यों होता है आकर्षण

मनुष्य का आकर्षण उसके माता-पिता से होता है, क्योंकि उसने उन्हें जन्म दिया और संस्कार दिये। मनुष्य का आकर्षण कुछ पराये व्यक्तियों से भी होता है, जिन्होंने उसे शिक्षा दी एवं प्रेम किया, यह एक स्वाभाविक क्रिया है।

प्रत्येक मनुष्य को नदी, जल, पहाड़, वृक्ष, जंगल, ऊंची-ऊंची चट्टानें पसंद होती हैं। कोई भी मनुष्य हो, उसे बहती नदी में नहाना पसंद होता है, यदि नदी न भी हो तो अपने बाथरूम में वह गीत गाते हुए स्नान करता है। अंदर से हर्ष व उल्लास से वह भरा होता है। बालक हो, चाहे बूढ़े उन्हें वर्षा में नहाते वृक्ष, नाचते मोर और अठखेलियां करते पशु-पक्षी प्रिय होते हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि वह जो देख रहा है, जो प्रसन्नता अनुभव कर रहा है, उसे अन्य व्यक्ति भी देखें, उसे अनुभव करें, क्योंकि वह बहुत ही अद्भुत है।

यदि हम रंग-बिरंगे पुष्पों को हवा में नृत्य करते देखते हैं तो मन चाहता है कि कुछ समय के लिए ठहर जाएं, आखिर क्यों? यदि छोटे-छोटे बच्चे मस्ती करते हुए हमें दिखलाई दे रहे हैं तो हम एक अजीब-सी खुशी में डूब जाते हैं, आखिर क्यों? हमारी संतानें जब हंसती, किलकारी मारतीं, दौड़तीं, चहचहातीं हैं तो हम खुशी के मारे पूरे संसार को यह घटना बता देना चाहते हैं- आखिर क्यों? वह कौन-सी ऐसी बात है, जो हमें इतना प्रसन्न कर देती है? क्यों यह आकर्षण हमारा इस प्रकृति के प्रति इतना अधिक है?

हमने कभी जानने की चेष्ठा की? क्यों उसके एक अच्छे दौर को जी लेने के पश्र्चात हमें प्रभु की स्मृति सताने लगती है? मन बैरागी की तरह हो उठता है और सब ओर हमें उस ईश्र्वर के प्रतिबिंब दिखलाई देने लगते हैं? ऐसे सैकड़ों प्रश्नों से हमारा प्रतिदिन सामना होता है, लेकिन हम उत्तर खोजते नहीं हैं। केवल उस दृश्य को देखकर, आनंद लेकर या अपने रिश्तेदार-पड़ोसी को बताकर संतुष्टि कर लेते हैं- आखिर इसका उत्तर क्या होगा?

निश्र्चित रूप से पूरा शरीर हवा, पानी, मिट्टी (धातु एवं तत्वों) से बना हुआ है, शरीर में पानी की मात्रा अधिक है तो उसका यह आकर्षण जल के प्रति होना स्वाभाविक है। वैज्ञानिक आधार भी पूर्णिमा पर समुद्र में ज्वार का कारण होता है। चंद्र पृथ्वी के निकट होता है, जो जल को अपनी ओर आकर्षित करता है। पूर्णिमा का चांद या चांदनी रातें किसे प्रिय नहीं होती हैं? उसी तरह मस्त हवा, खुशबू से भरी बयार, तेज चलती वायु जिसमें मन उड़ने को करने लगे, किसे प्रिय नहीं होते? पहाड़, चट्टानें, मैदानी टीले, पहाड़ों के रास्ते क्यों आकर्षित करते हैं? क्योंकि हमारा शरीर भी उसी मिट्टी से निर्मित होता है। इसी कारण हम प्रकृति के प्रत्येक कण से प्रेम करते हैं।

हम ईश्र्वर को क्यों पुकारते हैं? क्यों चाहते हैं? इसका भी यही कारण है कि उसकी कृपा से हम पैदा हुए हैं एवं उसी की कृपा से जीवित हैं। वह सांई सब कुछ है, मां भी, पिता भी। इसी कारण उसके प्रति आकर्षण प्राकृतिक है, कोई बनावटी नहीं है। इस ईश्र्वर को कोई किसी नाम से पुकारे उसे कोई अंतर नहीं पड़ता। वह कहता भी नहीं है कि मुझे स्मरण करो, उसे कोई अंतर नहीं पड़ता, फिर क्यों हृदय उसकी लौ लिए बैठा रहता है? इस आकर्षण का कारण मात्र यही है कि उसी ने हमें बनाया और इतनी संवेदनाएं दीं ताकि देख-सुन कर हम अनुभव कर सकें। उसके प्रति आकर्षण स्वाभाविक िाया है, जैसे अपने माता-पिता के प्रति आकर्षण एक स्वाभाविक स्वभाव होता है।

हमें आकर्षण के उन बिंदुओं को सदैव खोजना चाहिए, जिसके चलते हम एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं, क्योंकि कमोबेश उसी संरचना, प्राकृतिक साधनों से उसका भी निर्माण हुआ है। आकर्षण के और भी कई वैज्ञानिक आधार खोजे जा चुके हैं, लेकिन आध्यात्मिक एवं अंतरंग पहलू यही है, जिसकी डोर से हम प्रकृति से और ईश्र्वर हमसे जुड़ा हुआ है, युगों-युगों से इस जन्म से मृत्यु तक।

-डॉ. गोपाल नारायण आप्टे

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