खेवनहार विभीषण

यह तय है कि विभीषणों के बिना राज नहीं किया जा सकता। कितने काम की ची़ज हैं विभीषण! इन लुढ़कन लोटों के बिना मुक्ति नहीं है। जियें तो जियें कैसे बिन आपके…। विभीषण हर युग में होते हैं। राज चाहे राम का हो या रावण का, विभीषण के बिना चल ही नहीं सकता। उनकी प्रशस्ति में इतिहास भले ही मौन हो, पर यह राम सरीखों को भी पता है कि नैया पार विभीषण के सहारे ही होती है। सरकारें बनती हैं तो विभीषणों की मदद से और गिरती हैं तो विभीषणों की मदद से। डूबते हुए को तिनके का सहारा हो सकता है, पर डूबती हुई सरकार को सिर्फ विभीषण का सहारा होता है। भंवर में फंसी सरकार को विभीषण ही किनारे लगा सकते हैं।

बरसों पुरानी कहावत है कि घर का भेदी लंका ढाए। अब जो लंका ढहाने का ठेका लेगा तो वह अपनी मजदूरी तो हासिल करेगा ही। राम-युग की ही तरह विभीषण आज के युग की भी मजबूरी बन चुके हैं। वह हर युग में बिकाऊ रहा है, मौकापरस्त रहा है, कुर्सी का पाया पकड़ना उसका स्वभाव है। वह सत्ता के लिये कुछ भी दांव पर लगा सकता है क्योंकि बिकने के सिवा उसने और कुछ सीखा ही नहीं है। इतिहास साक्षी है कि लंका पर राज करने के लालच में विभीषण ने अपने भाई रावण को ही मरवा दिया था। तब बात तीर मारने की थी, अब तो केवल ठप्पा मारने की ही है। विभीषण वहां ठप्पा क्यों नहीं मारेगा जहॉं उसे मुकुट मिलेगा। दल बदलना उसके लिये चुटकी का काम है। बागी और दागी होना उसकी विशेषताएं हैं। वह किसी भी किले में सेंध मार सकता है, काले को सफेद कर सकता है और सफेद को काला। कोयलों की दलाली करते हुए भी वह स्वयं साफ-पाक होने का स्वांग रच सकता है।

संसद में जो नोटों के बंडल लहराये गए थे, वह विभीषणों की ही करतूत थी। विश्र्वास मत का तो बहाना था। दरअसल यह विश्र्वासघातियों की गणना थी। जो नोटों को देख कर इधर से उधर लुढ़क रहे थे, आज इस पाले, कल उस पाले की नौटंकी कर रहे थे। विभीषण किसी व्हिप को नहीं मानते। वे अपनी मर्जी की रस्साकशी करते हैं। आंकड़ों के खेल की तो पूरी बागडोर ही विभीषणों के हाथों में होती है। स्ंिटग ऑपरेशन चाहे जो मर्जी दिखाये कि किसने किस को रुपये दिये या नहीं दिये पर असली विभीषण जानते हैं कि उन्होंने रातोंरात कितने थैले भर लिए हैं। जब तक विभीषण पूजनीय रहेंगे तब तक इनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती जायेगी। कोई है माई का लाल जो किसी विभीषण का मुंह काला कर सके?

एक बार की बात है कि नत्थू बस अड्डे पर खड़ा बस की बाट देख रहा था। इतने में दो बने-ठने छोरे मोटर साइकिल पर कसूत्ती स्पीड छोड़ते हुये वहॉं से निकले अर उन्होंने गंाव में घुसने के बाद भी स्पीड कती कम नहीं करी। आगेे स्पीड ब्रेकर पर जाकर उनका बैलेंस बिगड़ गया। मोटर साइकिल का पहिया घूम गया अर वे धड़ाम से पड़े। मुंह-मात्था कती फूट गया और पैंट फट गई। गोड्डे लहूलुहान हो गए। लोगों ने उनका हाल-चाल पूछा तो उनमें से एक बोला, “तुम के तमास्सा देखो हो, ये तो थारे फूफ्फे के उतरने का स्टाइल है।’

 

– शमीम शर्मा

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