जीवन गीता

धर्म एकमात्र ऐसी विशेषता है, जिसके कारण मनुष्य संसार के अन्य सभी जीव-जंतुओं से अधिक श्रेष्ठ हो गया है। प्रश्न यह है कि यह कैसे निर्धारित हो कि कोई मनुष्य धार्मिक है अथवा नहीं? यह निर्णय करने के लिए धर्म के दस लक्षण-धैर्य, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इंद्रियानिग्रह, धीः, विद्या, सत्य और आोध बताए गए हैं। ये लक्षण संसार के किसी भी भाग में रहने वाले व्यक्ति में पाए जाने पर हम कह सकते हैं कि वह धार्मिक है और इनके अभाव में वह अधार्मिक है। यद्यपि, धर्म के ये सभी लक्षण मानव मात्र के लिए महत्वपूर्ण हैं तथापि धैर्य का लक्षण न केवल गणना में प्रथम है, वरन् यह धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है। मानव जीवन में असह्य कष्ट, पीड़ा, रोग, प्रियजन-विछोह, आर्थिक या अन्य प्रकार की परेशानियों के कारण विपत्ति से घिरना बहुधा झेलना पड़ता है। विकट परिस्थितियों में मनुष्य का घबराना स्वाभाविक है। अनेक बार मनुष्य घबराहट में विवेक खो देता है और कुछ ऐसे कार्य कर डालता है, जिससे उसकी विपत्ति बढ़ जाती है। यदि संकट के समय धैर्य धारण किया जाए, तो अनेक बार संकट कुछ समय बाद स्वयं समाप्त हो जाता है और शांत चित्त से सोचने पर उसका समुचित हल भी निकल आता है। धैर्य की परीक्षा संकट काल में होती है। यह धैर्य कैसे प्राप्त किया जाए? हमें स्मरण रखना चाहिए कि संसार में ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका हल न हो।

संकट के समय धैर्य के लिए यह आवश्यक है कि हमें उस सर्वशक्तिमान परमेश्र्वर पर विश्र्वास होना चाहिए, जिसके नियमों के अनुसार संसार में सब कुछ घटित हो रहा है। हमें यह भी विश्र्वास होना चाहिए कि जिस परिणाम को हम खराब समझ रहे हैं, उसमें भी परमात्मा ने कुछ अच्छा छिपा रखा होगा, जो हम नहीं देख पा रहे हैं। परमात्मा जो कुछ करता है, वह अच्छा ही होता है। चूँकि होना वही है, जो ईश्र्वर की इच्छा है, तो धैर्यपूर्वक शांत रहना ही उचित है। ईश्र्वर पर ऐसा अटूट विश्र्वास होने पर ही गंभीर संकट में धैर्य संभव है। ईश्र्वर पर आस्था रखने वाला व्यक्ति संकट की घड़ी में भी न तो कोई अनुचित बात सोच सकता है, न अनुचित बात कह सकता है और न कोई अनुचित कार्य कर सकता है। ऐसा व्यक्ति ही धार्मिक होता है और इसीलिए धैर्य धर्म का महत्वपूर्ण लक्षण है।

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