तेवरी

नेताओं की चाल सियासी और नहीं चलने देंगे

छल-फ़रेब की बारहमासी और नहीं चलने देंगे।

 

पहने हुए भक्त का चोला बगुले बैठे हैं साहिल पर

इनकी यारों जीभ टका-सी और नहीं चलने देंगे।

 

देना है तो तू दे हमको भाव कोई ता़जा-ता़जा

तेरी बातें बासी-बासी और नहीं चलने देंगे।

 

कल देखे थे जिन आँखों के मीठे-मीठे कुछ सपने

उन आँखों के बीच उदासी और नहीं चलने देंगे।

 

नाम धर्म का लेकर लाशें “राजकुमार’ न और बिछें

सद्भावों पर छुरी-गड़ासी और नहीं चलने देंगे।

 

–     राजकुमार मिश्र

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