दे मत देना

आजकल गॉंवों में एक ही मुहावरा चल रहा है कि “दे मत देना’। जिन्होंने दिया वे पागल थे। जिन्होंने दिया वे लुट गये और जिन्होंने नहीं दिया वे बच गए। गॉंवों में आजकल एक नया नारा भी प्रचलन में है। लिये जाओ, लिये जाओ। बीज, ट्यूबवेल, औजार, खाद, स्ंिप्रंकलर आदि सब चीजों के लिये बैंकों से लोन मिलता है। लोन ले लो और वह चीज खरीदो या ना खरीदो, जिस चीज के लिये लोन लिया हो। लोगों ने लोन की राशि से मस्ती की, दारू पी ली, बेटियॉं ब्याह दी, बहू ले आये, चौबारे बना लिये पर किस्तें वापिस नहीं कीं। जिन्होंने की, वे मारे गये। ऋण माफी योजना में लाखों के वारे-न्यारे हो गये। जिन्होंने ऋण की एकाध किस्त भी चुकता कर रखी थी, उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। जो सारा माल ले उड़े वे फायदे में रहे। क्या सिखा रहे हैं हम अपने देश को? यही ना कि जितना माल खींच सकों खींच लो। लद गया वह ़जमाना जब कहा जाता था कि उधार की पाई-पाई चुकानी चाहिए। अब तो कर्त्तव्य-बोध करवाने वाला ही कोई नहीं रहा। बड़े-बड़े अभिनेताओं के करोड़ों के इन्कम टैक्स अधर में लटके हुए हैं। देना तो दूर वे देने की सोचते तक भी नहीं हैं। अपने दिग्गज नेताओं की कोठियों के दिल्ली में लाखों के बिजली बिल पैंडिंग पड़े हैं तो कहीं हाउस टैक्स बकाया है।

लगता है, ये नेता बिना चुकता किये ही मर जाएँगे और यह बोझ उनकी आने वाली पीढ़ी के कंधों पर आ पड़ेगा। आने वाली पीढ़ी ऐसे बिल पास करवाएँगे कि धेला नहीं देना पड़ेगा। हमारे नेताओं की अपनी तो नीयत खराब थी ही और अब वे दूसरों की नीयत में खोट घोल रहे हैं। घोल क्या रहे हैं, घोल ही दिया है। बेईमानी की इबारत बांचने का अभ्यास करवाया जा रहा है। जो लोग अपने ऋण की अदायगी के लिये अतिरिक्त मेहनत करके धन का जुगाड़ कर रहे थे, वे अब भूलना सीख गये हैं कि उन्हें कुछ चुकता भी करना है। गया वह जमाना जब हमारे बुजुर्ग उधार की रकम उतारने के लिये अपनी जमीन-गहने आदि सब कुछ बेच दिया करते थे। माना कि गरीब किसान के पास बेचने के लिए ना तो जमीन है और ना ही गहने, पर उसे यह घुट्टी तो ना पिलाई जाए कि कर्ज ली हुई राशि को गटक जा और हजम कर जा जबकि मेहनत से भी कर्जे उतारे जा सकते हैं।

एक बार की बात है कि नत्थू नेवी में अफसर भर्ती हो गया और एक दिन अमेरिकी अफसर से उसकी बहस शुरू हो गई। अमेरिकी बोला, “हमारे जवान सबसे ज्यादा ताकतवर अर हिम्मतवाले हैं।’ यूँ कहकर उसने अपने जवान से कहा कि जहाज से कूदकर जहाज के पॉंच चक्कर काटकर आओ। जवान ऑर्डर सुनते ही कूद गया। नत्थू बोल्या, “जी, हमारे जवान तो आप वालों से भी कसूत्ते हिम्मतवाले हैं।’ यूँ कहकर उसने एक जवान को जोर की आवाज दी अर बोल्या, “जा भई, जहाज के सात चक्कर काट कर आ।’ जवान सीना फुलाते हुए बोल्या, “मैं इतने ठंडे पानी में नहीं कूद सकता जी।’ नत्थू बोल्या, “देखा हमारे जवान की हिम्मत, और कोई इस तरह जवाब दे सकता है क्या?’

 

– शमीम शर्मा

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