पुनर्जन्म में विश्वाास

पुनर्जन्म को माने बिना आप भी यह नहीं जान सकोगे कि आत्मा अपवित्रता, दुःख और अशान्ति की वर्तमान स्थिति को कैसे पहुँची। आत्मा अपने वास्तविक स्वभाव में पवित्र और शांत है, तभी उसे पुनः शान्ति की इच्छा रहती है। स्पष्ट है किन्हीं कारणों से वह पूर्वजन्मों में पवित्रता और शान्ति की स्थिति से गिर कर वर्तमान स्थिति को पहुंची है। उसके पतन का कारण बने हैं- काम, ाोधादि पाँच-विकार। उन विकारों का भी मूल कारण है- देह अभिमान। इन विकारों के कारण ही आत्मा दुःखी हुई है। अतः आपको चाहिए कि अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान कर उस पहले वाली पवित्र और शान्त स्थिति को प्राप्त करने का अभ्यास करो।

अब अपने को ‘आत्मा’ निश्‍चय करो और पवित्र बनो। यह सब कुछ बताने का हमारा भाव यह है कि अब अपने को आत्मा निश्‍चय करो और देह का भान छोड़ो। आज इसी देह-अभिमान के कारण ही मनुष्य में काम, ाोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि सभी विकार हैं। मनुष्य कहते हैं कि हम इन विकारों को छोड़ना तो चाहते हैं, परन्तु ये विकार छूटते नहीं हैं। भला वे इन विकारों को छोड़ कैसे सकते हैं? इनका जो मूल ‘देह-अभिमान’ है, इसको जब तक मनुष्य नहीं छोड़ेगा अर्थात् जब तक स्वयं को देह की बजाय ‘आत्मा’ निश्‍चय नहीं करेगा, तब तक विकार छूट ही नहीं सकते। आप देखिए, जब मनुष्य किसी की देह को देखता है अर्थात् यह देखता है कि यह सुन्दर देह है, स्त्री रूप है, आदि-आदि, तभी उसमें काम-विकार की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार, जब मनुष्य यह देखता है कि मैं देह की आयु के विचार से बड़ा हूँ और दूसरा व्यक्ति मुझसे छोटा है, परन्तु फिर भी वह मेरी बात नहीं मानता, तो देह-अभिमान के कारण उसे ाोध आता है। फिर देह के जो संबंधी हैं, उनके दैहिक संबंध का भान बना रहने से वह मोह करता है और उनके लिए लोभ भी करता है। अतः इन विकारों ने मनुष्य को दुःखी कर रखा है, परन्तु फिर भी मनुष्य इनसे छुटकारा इस कारण नहीं पा सकता कि वह स्वयं को ‘आत्मा’ निश्‍चय नहीं करता।

इसलिए किसी को भी आप देखो, उनकी भृकुटी की ओर देखो और मन में यह विचार करो कि मैं आत्मा अपने मुख से बोल रही हूँ और वह आत्मा अपने कानों द्वारा मेरी बात को सुन रही है। इसी प्रकार कोई भी कर्त्तव्य करो तो यह याद करो कि देह द्वारा मैं आत्मा यह कार्य कर रही हूँ। इस स्मृति में यह लाभ होगा कि जो विकार अथवा बुरे संस्कार आपको तंग किया करते थे, वे अब उठेंगे ही नहीं अथवा बदलते जायेंगे और आत्मा पावन होती जाएगी।

 

 

 

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