पूर्व-कर्म और पूर्व-जन्म के प्रमाण

हम कैसे मानें कि हमारे पूर्व-जन्मों के कर्मों का हिसाब रहता है और हमारे पहले भी जन्म हो चुके हैं?

एक व्यक्ति के और दूसरे व्यक्ति के जन्म, परिस्थितियों और घराने आदि में अन्तर का होना यह सिद्घ करता है कि पूर्व-जन्म का लेखा-जोखा हमेशा कायम रहता है। दूसरे, आप देखते हैं कि किसी में काम के, किसी में ाोध के संस्कार होने से भी यह सिद्घ होता है कि उसने पूर्व में ऐसे कर्म किये हैं अर्थात् उसके पूर्व-जन्म हुए हैं। फिर किसी को एक मनुष्य से लाभ होता है, परन्तु दूसरे को उसी व्यक्ति से हानि होती है। एक को उससे सुख मिलता है तो दूसरे को उसी से दुःख। इससे भी यही मालूम होता है कि हम कर्मों का कुछ हिसाब लेकर आये हैं। अतः पहले भी हमारे जन्म हुए हैं।

इसके अतिरिक्त, आप देखते हैं कि एक ही माता-पिता के दो बच्चों में भी बहुत-सी बातों में भिन्नता होती है। हालांकि माता-पिता वही हैं, उन्हें खान-पान भी एक-समान ही मिलता है, परन्तु फिर भी दोनों बच्चों के संस्कारों, स्वभाव, भाग्य और पुरुषार्थ में अन्तर होता है। इसका कारण आप पूर्व-जन्म के कर्म और संस्कार नहीं मानोगे तो और क्या मानोगे?

आप यह भी तो देखते हैं कि कोई व्यक्ति छोटी आयु में ही या सहज ही, किसी विद्या या कला में असाधारण योग्यता प्राप्त कर लेता है और कई तो अध्यापकों तथा माता-पिता द्वारा मेहनत करने के बाद भी निठल्ले रहते हैं। कोई उच्च गायक के रूप में प्रसिद्घ हो जाता है। कोई शास्त्र को कण्ठस्थ कर लेते हैं और कोई अनपढ़ ही रह जाते हैं, परन्तु वे कुशल व्यापारी सिद्घ होते हैं। स्पष्ट है कि जिसने पूर्व-जन्म में जिस कार्य का अभ्यास किया होता है, उसे उसकी सहायता इस जन्म में भी मिलती है।

इसके अलावा, मनुष्य में जो मुक्ति की या सुख-शान्ति की इच्छा रहती है या उसे मौत से डर लगता है, उससे भी सिद्घ होता है कि आत्मा ने पहले किसी जन्म में सम्पूर्ण सुख-शांति की अवस्था भोगी है। वह पहले मृत्यु का भी अनुभव कर चुकी है और अनेक बार दुःख भोगने के बाद अब मुक्ति चाहती है। इन सभी बातों से पुनर्जन्म का होना सिद्घ है। शिशु पैदा होने के बाद बिना सिखे ही माता के दूध पीने लगता है, उससे भी स्पष्ट होता है कि वह कई जन्म ले चुका है और यह उसे पूर्वज्ञात है अथवा इसका उसे पूर्वाभ्यास है।

– ब्रह्मकुमारी

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