प्लॉप क्यों हो रहे हैं युवा लीडर

21 वर्ष से कम किन्तु 18 वर्ष से अधिक उम्र के युवक-युवतियों से यदि पूछा जाए कि आपका पसंदीदा आदर्श युवा कौन है, तो जवाब में शायद ही किसी नेता का जिा होगा। इसमें मौजूदा युवा पीढ़ी का दोष नहीं। दोषी नेतागण हैं क्योंकि उनकी साफ-सुथरी छवि अब अपवाद बनती जा रही है।

कभी जरूर संजय गांधी और राजीव गांधी ने युवाओं को अपनी और राजनीति की ओर आकर्षित किया था। माधवराव सिन्धिया, राजेश पायलट, प्रमोद महाजन, शरद यादव, रामविलास पासवान और ललित माकन सरीखे नेताओं ने कॉलेज में पढ़ रहे विद्यार्थियों को काफी प्रभावित भी किया था किन्तु आज कोई भी ऐसा नेता नहीं जिसे युवावर्ग अपना आदर्श मान सके। राहुल गांधी से उम्मीदें की जा सकती हैं। फिलहाल वे प्रभावी कम ही ऩजर आ रहे हैं। अच्छा होता यदि प्रियंका गांधी सिायता दिखातीं। मेनका-पुत्र वरुण गांधी ़जरूर अपना जनाधार बढ़ा रहे हैं। वंशवाद को लेकर हल्ला भी मचा था। युवा लीडर राज ठाकरे भी अब अपनी लोकप्रियता खोते जा रहे हैं। दिग्गज नेताओं के पुत्र-पुत्रियां ही नहीं, दामाद-बहुएं भी फिल्मी हस्तियों की तरह अपनी चमक खोते जा रहे हैं।

मंत्रीपद भी युवा लीडरों की लोकप्रियता बढ़ाने में असमर्थ नजर आ रहा है। चौधरी देवीलाल के प्रपौत्र, चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह, मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश भी पिता की तुलना में अत्यंत ही कमजोर नजर आ रहे हैं। अर्जुन सिंह, शीला दीक्षित, शरद पवार और देवेगौड़ा भी अपनी-अपनी संतानों के भविष्य को लेकर चिन्तित ही हैं।

युवा लीडरों के फ्लॉप होने की एक वजह यह है कि न तो उन्हें महंगाई की फिा है और न ही बढ़ते हुए पिछड़ेपन की। जनसंपर्क के दौरान भी युवा नेताओं के अंदाज “बॉलीवुड’ वाले ही नजर आते हैं। भले ही किसी ने इस हेतु विशेष कार्याम तक आयोजित नहीं किया किन्तु मीडिया से दोस्ती कर ांट पेज पर ़जरूर राज किया।

युवा लीडरों की हरकतें भी एक हद तक इसके लिए जिम्मेदार हैं। बड़े बाप की बिगड़ैल औलाद सीधे लाल बत्ती की गाड़ी में बैठना चाहती है। कुछ को गाड़ी भी नसीब हुई किन्तु लोकप्रियता नहीं मिली। इनकी तुलना में युवा खिलाड़ियों ने बड़ी जबरदस्त सफलता प्राप्त की। सानिया मिर्जा, इरफान खान, इशांत शर्मा ़जरूर हिट नजर आ रहे हैं। अर्थात युवाओं को लुभाने में युवा लीडर एकदम फ्लॉप नजर आ रहे हैं। दरअसल युवाओं की समस्याओं को समझने की किसी को फुर्सत कहॉं?

निम्न वर्ग में युवा वर्ग पढ़ाई से विमुख हो रहा है। वजह है महंगी शिक्षा पद्घति। मध्यम आय वर्ग के युवाओं को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर मिल रहे हैं किन्तु वे अवसर का लाभ उठाने में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। मौज-मस्ती को प्राथमिकता देने वाली युवा पीढ़ी कॅरियर के प्रति सजग नहीं, जागरूक नहीं। प्रतिस्पर्धा के युग के बावजूद दिशाहीन मार्ग से युवाओं को सही मार्ग पर लाने का प्रयास करने वाले नेतृत्व की अत्यंत ही आवश्यकता है।

युवा लीडरों के पास न तो कोई ठोस कार्याम हैं और न ही कोई ऐसी योजना है जिसके द्वारा वे युवावर्ग का रुझान अपनी ओर कर सकें। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, अटल बिहारी वाजपेयी को जरूर स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों ने अपना आदर्श माना और सफलता प्राप्त करने हेतु कठोर परिश्रम किया।

आज युवा लीडर वही हैं जिनके मॉं-बाप लीडर हैं अथवा लीडर थे। नेतागिरी युवा लीडरों को विरासत में मिली है। गोल्डन स्पून लेकर पैदा हुए ये नेता बगैर योग्यता के उच्च पदों पर बड़ी आसानी से आसीन हो रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री परिषद में महत्वूपर्ण पदों पर आसीन युवा मंत्री जन-आकांक्षाओं पर कितने खरे साबित हो रहे हैं, आने वाला वक्त तय करेगा।

बहरहाल, एक भी युवा नेता इतना प्रभावी और चुम्बकीय व्यक्ति वाला नजर नहीं आ रहा है जिसे हम राजनेता के रूप में सामने लाएं और जिससे यह उम्मीद लगाएं कि वह एक दिन प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो, देश को कुशल नेतृत्व प्रदान करेगा।

ऐसी स्थिति में यह कहना कदाचित गलत नहीं कि मौजूदा दौर के युवा लीडर फ्लॉप सिद्घ हो रहे हैं। अगर इन्हें आगे आना है तो अपने दमखम का लोहा मनवाने के लिए जुझारूपन और कर्मठता का परिचय देना होगा। जन समस्याओं के निराकरण हेतु इनमें उत्साह, उमंग और संघर्ष नजर आना चाहिए।

– राजेन्द्र मिश्र “राज’

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