बच्चों का मानसिक उत्पीड़न करने वाले माँ-बाप

parents-teasing-childrenभारतीय समाज में भी ज्यों-ज्यों विवाह-विच्छेद की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, त्यों-त्यों ऐसे हतभाग्य बच्चों की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो या तो मां के या बाप के या दोनों के वात्सल्य एवं लाड़-प्यार से वंचित रह जाते हैं और इस कारण अकथनीय मानसिक व्यथा के शिकार हो जाते हैं। हर बच्चा यही चाहता है कि मां-बाप दोनों मिलकर उसे पालें-पोसें और बड़ा करें, पर जब किसी छोटी-मोटी बात को लेकर मां-बाप में अनबन शुरू हो जाती है और शीघ्र ही यह अनबन इतना तूल पकड़ती है कि दोनों में से कोई विवाह-विच्छेद की अर्जी लेकर फैमिली कोर्ट का द्वार खटखटाता है तो दूसरा पक्ष यह मांग लेकर प्रस्तुत होता है कि यदि विवाह का विच्छेद करना ही है तो बच्चों को मैं अपने पास ही रखना चाहूंगा।

आए दिन केरल जैसे राज्यों में जहां महिलाएं भी प्रायः शिक्षित हैं और कामकाजी भी, यही देखा जाता है कि विवाह-विच्छेद की मांग पहले पत्नी की ओर से ही प्रस्तुत की जाती है। यदि विवाह के दो-तीन महीने के बाद ही ऐसी मांग उठे तो उसके दुष्परिणामों का बोझ केवल पति-पत्नी को ही ढोना पड़ेगा, पर यदि एक या दो बच्चों की पैदाईश के बाद यह मांग उठती है, तब मां-बाप के पारस्परिक विद्वेष का दुष्परिणाम निरपराध बच्चों को भी जीवनभर ढोना पड़ता है। किसी-किसी प्रकरण में पिता सोचते हैं- “”चलो, बला टल गई। अब यदि पत्नी मेरे साथ नहीं रहना चाहे तो उसके बच्चों का बोझ मैं क्यों वहन करूं? बच्चों को वही अपने पास रखे। विवाह-विच्छेद का निर्णय आते ही मैं किसी ऐसी लड़की से शादी कर लूंगा, जो ज्यादा कमाती हो, ज्यादा शिक्षित हो और ज्यादा सुंदर हो।” किसी-किसी प्रकरण में पत्नी सोचती है- “”विवाह के समय मैं अकेली ही थी। विवाह के कारण ही मेरे बच्चे उत्पन्न हुए। इसकी जिम्मेदारी स्त्री की कम और पुरुष की ज्यादा है। इसलिए बच्चों को संभालने का भार पुरुष को वहन करना है। मैं अकेली आई और अकेली चली जाऊंगी। विवाह-विच्छेद के पहले ही मैं किसी ऐसे पुरुष को ढूंढ़ निकालूंगी, जो ज्यादा कमाता हो, ज्यादा सुन्दर हो, ज्यादा बलिष्ठ और ज्यादा बुद्घिमान हो। विवाह-विच्छेद का निर्णय आने के तुरंत बाद मैं उससे शादी कर लूंगी और आराम की जिंदगी बसर करूंगी।”

कुछ प्रकरणों में बच्चों का भार वहन करने से मां-बाप दोनों कतराते हैं। ऐसी दशा में कहीं-कहीं नाना-नानी या दादा-दादी इन अनाथों पर दया करके इन्हें अपने पास रखते हैं। कोई बच्चा घर से ही निकल भागता है और लापता हो जाता है। कोई किसी अनाथालय में पहुंच जाता है। कुछ धनी-मानी मां या बाप ऐसे भी हैं, जो अपनी छवि बनाए रखने के लिए ही सही, बच्चों को किसी होस्टल में रखते हैं। जहां भी रहें, मां या बाप या मां-बाप द्वारा उपेक्षित ये मासूम बच्चे किस-किस प्रकार के मानसिक उत्पीड़न से होकर गुजरते हैं, इसके संबंध में क्या इनके मां-बाप कभी सोचते हैं? यदि सोचते तो विवाह-विच्छेद के लिए इतनी तीव्रता से लड़ते? लगता है कि विवाह के पूर्व हर युवक और युवती को विशेषज्ञों द्वारा ऐसी काउंसिलिंग दी जाना लाजिमी बनाना होगा, जो उन्हें विवाह की जिम्मेदारियां सफलतापूर्वक निभाने में सक्षम बना सकें।

-के. जी. बालकृष्ण पिल्लै

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