मनुष्य की भूख

जागतिक वस्तुएँ सीमित हैं, असीमित नहीं हैं, किन्तु मनुष्य की भूख, उसकी प्यास असीमित है। मनुष्य की भूख, उसकी प्यास बुझाने के लिए असीमित वस्तुएँ चाहिए। इसलिए जागतिक वस्तुओं से यह प्यास नहीं बुझ सकती है, इस क्षुधा की निवृत्ति नहीं हो सकती है। असीमित सत्ता एक ही है – परम पुरुष। इसलिए असीम की चाह जिसमें है और असीम को पाकर जो आनन्दित होना चाहते हैं, उनके सामने सिर्फ एक ही रास्ता रह जाता है- परम पुरुष को पाना और अपनी भूख मिटाना, प्यास बुझाना।

बुद्घिमान व्यक्ति का काम यही है कि वह परमपुरुष को पाने का प्रयास करे। प्रयास करने से मनुष्य सब कुछ कर सकता है, सब कुछ पा सकता है। परम पुरुष को पाना कोई बड़ी बात नहीं है। परमपुरुष ने जब तुम्हारे मन में असीमित भूख दी है तो इसका स्वयं में तात्पर्य यही है कि वे उसकी निवृत्ति भी करेंगे, तुम्हारी प्यास को वे बुझाएँगे। परमपुरुष चाहते हैं कि मनुष्य परमपुरुष को पाने की कोशिश करे और उन्हें पाये। अतः मनुष्य प्रयास करे, तो अवश्य ही उन्हें पायेगा, पाकर रहेगा। यह कोई बड़ी बात नहीं है, कोई असंभव बात नहीं है। अतीत में जिन्होंने कोशिश नहीं की, आज से करें। अवश्य ही वे सार्थकता उपलब्ध करेंगे और इस शुभ कार्य में सफल होंगे।

 

सच्चा है धर्म पथ

धर्म साधना है, स्वभाव का अनुवर्त्तन है। प्रकृति जिस धारा के अनुसार, जिस नियमानुसार कार्य करती है, उसे ही स्वभाव कहते हैं। इसलिये धर्मसाधना है एक स्वाभाविक कर्म। इसे जो नहीं करता है, वह अस्वाभाविक कर्म कर रहा है। इसके लिये प्रकृति उसे क्षमा नहीं करेगी। धर्म के पथ पर मनुष्य को रहना ही होगा, क्योंकि धर्म ही मनुष्य का एकमात्र सुहृद है, अन्य कोई नहीं।

इस विश्र्व में एकमात्र धर्म ही मनुष्य का यथार्थ मित्र है, क्योंकि उसकी मृत्यु के बाद भी वह साथ में रहता है। मृत्यु के बाद इस पृथ्वी का और कोई साथ नहीं रहता, सभी और सब कुछ यहीं पर रह जाते हैं। इसी से धर्म के पथ पर चलना ही मनुष्य की बुद्घिमत्ता का यथार्थ परिचय है। धर्म का पथ ही मनुष्य का सच्चा पथ है।

 

-श्री श्री आनन्दमूर्ति

 

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