मुनाफाखोर व्यापारियों और आम ज़रूरतमंदों की पहचान का मापदंड हो

आम तौर पर लोगों के पास जब पैसे होते हैं तो वह जमीनों में लगाना पसंद करते हैं। जमीन चाहे शहर-गांव के किसी भी कोने में हो, एक-न-एक दिन उसके भाव तो बढ़ने ही हैं। कुछ लोग यह सोच कर पैसा लगाते हैं तो कुछ लोग अंततः अपने लिए एक अदद आशियाने की चाहत में जमीन का एक टुकड़ा खरीद कर छोड़ देते हैं और जब भी सहूलियत हो, तब मकान बनाने की सोचते हैं। लेकिन अब इन दोनों ही तरह के लोगों पर सरकारी आदेश की चाबुक चल पड़ी है। समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के अनुसार हाल ही में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार जीएचएमसी परिसर में खुली छोड़ दी गई भूमि के मालिकों से निगम कर वसूलेगा।

निःसंदेह राज्य सरकार ने भूमि की दरें बढ़ाकर व्यापार करने वाले मुनाफाखोर व्यापारियों पर शिकंजा कसने की कोशिश की है। लेकिन सरकार के इस कदम से तमाम उन निम्न-मध्यवर्गीय लोगों पर करों की मार पड़ेगी जो किसी तरह कर्ज आदि जुटा कर जमीन का एक टुकड़ा खरीद पाते हैं और जाहिर है, यह उनके जीवन की जमा-पूँजी ही होती है। लेकिन उस जमीन पर एक अदद मकान बनाना तत्काल उनके लिए किसी कीमत पर संभव नहीं होता। फलतः रिटायरमेंट के बाद ग्रेच्युटी, पीएफ आदि के पैसे मिलने पर मकान बनाने की योजना बनाते हैं। ऐसे लोगों की जमीन पर करों का बोझ डालना उचित नहीं। सरकार को चाहिए कि ऐसे कानून बनाते समय मुनाफाखोर व्यापारियों और आम नागरिकों की पहचान का कोई मापदंड बनाये। उसके बाद इन्हें लागू करने का कदम उठाये।

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