यातायात बाधक रोड-शो पर प्रतिबंध क्यों न लगे?

अच्छा हुआ आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों के रोड-शो पर प्रतिबंध लगाने का हुक्म सरकार को दे दिया। यह भी अच्छा संकेत रहा कि प्रतिवादियों (चीफ़ सेोटरी, गृह सचिव तथा पुलिस महानिदेशक संयुक्त रूप से) ने रोड-शो पर प्रतिबंध के आदेश का विरोध नहीं किया। लेकिन विचारणीय मुद्दा सिर्फ रोड-शो ही नहीं है जिसकी वजह से टैफिक जाम होता है और जनता पीड़ा पाती है। और भी शो होते हैं जिनका संज्ञान यदि सरकारें न लें तो अदालतों को लेना चाहिए और “अभिप्राय’ जैसी संस्थाओं को ऐसे मामले अदालतों तक ले भी जाना चाहिए। हमने ऐसे जलसों, जुलूसों, रैलियों पर पहले भी प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया था, जिनकी वजह से शहर का सामान्य जन-जीवन दरहम-बरहम होता है।

फ़ैसले से एक दिन पहले आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एल. आर. दवे ने राजनीतिक पार्टियों द्वारा आयोजित होने वाले रोड-शो के दर्मियान हुई मौतों पर गम्भीर चिंता व्यक्त की थी। यही नहीं, रोड-शो आयोजित करने की अनुमति देने के लिए सरकार को फटकार भी लगाई थी और उससे “रोड-शो पॉलिसी’ स्पष्ट करने को भी कहा था। हमारा ख्याल है कि हर अमनपसंद शहरी को माननीय अदालत के इस रु़ख का स्वागत करना चाहिए। रोड-शो के दौरान पॉंच लोगों के मारे जाने की ़खबरों का उल्लेख लेकर एक स्वयंसेवी संस्था “अभिप्राय’ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। जिस तरह से राजनीतिक रैलियां, रोड-शो और नुक्कड़ सभाएं आजकल आयोजित हो रही हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि आम नागिरक के ह़क की सांस रोक कर, सड़क पर छा जाने वाले ऐसे सभी प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।

आम तौर पर देखा जाता है कि चुनाव-प्रचार, पार्टी-प्रचार, विरोध-प्रदर्शन आदि के लिए राजनीतिक पार्टियां सड़क पर उतर आती हैं। कई बार तो ऐसा होता है कि आम राहगीर को इनके प्रदर्शनों से कोई लेना-देना तक नहीं होता, किन्तु उसे इन अवरोधों का दंड भोगना पड़ता है। सवाल उठता है कि आम राहगीर को तकलीफ़ पहुँचा कर राजनीतिक दलों, टेड यूनियनों को मिलता क्या है? माननीय हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर आधारित खंडपीठ ने तो अभी सिर्फ रोड-शो के दौरान हुई मौतों पर ही नारा़जगी जताई है, जबकि ़जरूरत पूरी सड़क घेर लेने वाले हर उस आयोजन पर रोक की महसूस होती रही है जिनसे सामान्य यातायात बाधित होता है। हॉं, पुलिस द्वारा पुख्ता बंदोबस्त हो और यातायात आसानी से “रेगुलेट’ होता रहे तो छोटे-मोटे प्रदर्शनों को, रैलियों को इ़जा़जत दी जा सकती है।

इन दिनों प्रायः हर पार्टी अपनी ता़कत दिखाने के लिए भीड़ जुटाने में जुटी है। प्रजा राज्यम पार्टी के सर्वेसर्वा चिरंजीवी जिधर से गु़जरते हैं, वहॉं के लगभग सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। जिन दिनों “टीआरएस’ प्रदर्शन करती थी, जिलों से आने-जाने वाली बसें, वाहन सब घंटों जाम का शिकार हो जाते थे। पिछले दिनों को याद किया जाए तो कभी इस तरह के प्रदर्शन जो मनोरंजक लगा करते थे, अब मन को खिन्न करने लगे हैं। मरी़ज समय पर अस्पताल नहीं पहुँच पाते, बच्चे वक्त पर स्कूल या घर नहीं पहुँच पाते, कार्यालयों तक कर्मचारी को पहुँचने में पहाड़ लांघने जैसा धैर्य और साहस सिद्घ करना पड़ता है।

कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में प्रदर्शन, रैली, रोड-शो आदि अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों के हिस्से हैं। हॉं, हम भी मानते हैं कि अकारण किसी को रोका नहीं जा सकता। लेकिन किसी अधिकार के इस्तेमाल से पहले परिस्थितियों का तो जाय़जा लिया ही जाना चाहिए। सन् 47 में आजादी मिली। तब से अब तक आबादी ब़ढ़ी, शहर-गांव फैले, फूले, सड़कें चौड़ी तो हुईं लेकिन जितनी चौड़ाई बढ़ाई गई, मशीनी वाहनों ने उस पर कब्जा कर लिया। फ़ैलते शहरीकरण और गगनचुम्बी इमारतों की वजह से हालत यह हो चुकी है कि सामान्य सड़क यातायात ही अवरुद्घ होने लगा है। हैदराबाद के तमाम भीड़भरे पॉश इलाकों तक पहुँचने में घंटों की देरी होने लगी है। ऐसे में अगर रैली, रेला और रोड-शो तथा जलसे-जुलूसों को भी इजा़जत मिल जाती है तो सड़क पर चलना कोढ़ में खाज जैसा हो जाता है। ठीक है, ऐसे में गाजे-बाजे और ताम-झाम के साथ राजनेता भी निकलना चाहते हैं, लोगों से मिलना चाहते हैं और यह उनका मौलिक अधिकार भी है। लेकिन रैली या रेला निकालने से पहले क्या इन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि उनके निकलने पर, जिनके लिए वे निकल रहे हैं, उनकी क्या हालत होगी?

पूछा जा सकता है कि फिर क्या उपाय हो सकता है? अब इसका जवाब तो “टाउन प्लानिंग’ और पुलिस विभाग को ही मिलकर तलाशना होगा। अच्छा हो कि जिस तरह मनोरंजन के लिए तमाम पार्क बने हैं, राजनीतिक रैलियों, रेलों के लिए भी ऐसी अलग जगह हो जहॉं-सारे दल अलग-अलग दिनों में अपना प्रदर्शन कर लिया करें। आज ़जमाना संचार-ाांति का है। जनता से मिलने के लिए रोड जाम करना ़जरूरी नहीं है। जनता अपने लीडरों से सीन पर भी मिल सकती है और नेता उन तक अपनी बात दूर-माध्यमों से पहुँचा सकते हैं। मंत्रियों का काफ़िला निकलता है तब भी रास्ते रोके जाते हैं, टैफिक बाधित होता है, रोड जाम होते हैं।

 

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