युग दर्पण – नरेंद्रराय

आतंकवादी देश की नींवें हिला रहे हैं।

हम आतंकवादियों के पुतले जला रहे हैं।।

कीचड़ उछालते हैं दल एक-दूसरे पर।

सब स्वार्थ साधते हैं, कुछ ऐसे अवसरों पर।

जनता को आश्र्वासन की भंग पिला रहे हैं।। हम।।

कोई नहीं सुरक्षित, झूठे हैं सारे वादे

सब जानते हैं नीयत, कितने हैं नेक इरादे।

हाथों में जाम लेकर, वो खिलखिला रहे हैं।। हम।।

पाले हैं इन्होंने गुण्डे चुनाव जीतने को,

बेचा ज़मीर अपना कुर्सी खरीदने को।

गांधी का नाम लेकर चक्कर चला रहे हैं।। हम।।

जनता से कोई रिश्ता, ना देश से है नाता

संबंध है सत्ता से कुर्सी का रूप भाता।

हैं देशभक्त जितने सब तिलमिला रहे हैं।। हम।।

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