वापस – अरुण कमल

घूमते रहोगे भीड़ भरे बा़जार में

एक गली से दूसरी गली एक घर से दूसरे घर

बेव़क्त दरवा़जा खटखटाते कुछ देर रुक फिर बाहर भागते

घूमते रहोगे बस यूं ही

लगेगा भूल चुके हो लगेगा अंधेरे में सब दब चुका है

पर अचानक करवट बदलते कुछ चुभेगा

और फिर वो हवा कॉंख में दबाए तुम्हें बाहर ले जाएगी

दूर तारे हैं ऐसा प्रकाश अंधकार से भरा हुआ

कहीं कोई उल्का पिंड गिर रहा है

ऐसी कौंध कि देख न सको कुछ भी

दूर तक चलते चले जाओगे पेड़ों के नीचे लंबी सड़क पर

पेड़ तुम पर झुकते आते

चांद दिखेगा और खो जाएगा

और तुम लौटोगे वापस थक कर

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