वोट-बैंक एवं विदेशी निवेश का मोह ले डूबेगा विकास को

महंगाई के मुद्दे पर सरकार लगातार समन्दर में गोते लगा रही है। विश्र्व बा़जार में तेल के मूल्य में वृद्घि होने पर सरकार ने उपभोक्ता का बोझ बढ़ाने की बजाए सरकारी तेल कंपनियों को आदेश दिया कि वे तेल के मूल्य को पूर्ववत् बनाये रखें। तेल कंपनियों को विश्र्व बा़जार से महंगा तेल खरीद कर घरेलू बा़जार में सस्ता बेचना पड़ा। उन्हें भारी घाटा लगा। इस घाटे की पूर्ति उन्होंने बांड जारी करके की। मान लीजिए, इंडियन ऑयल ने विश्र्व बाजार से 100 रु. में एक लीटर पेटोल खरीदा और इसे भारतीय उपभोक्ता को 50 रु. में बेच दिया। साथ-साथ बांड जारी किये और 50 रु. बाजार से उठा लिये। इन बांडों की अवधि पूरी होने पर इंडियन ऑयल को बांड धारक को 50 रु. अदा करने होंेगे। उस समय यह रकम सरकार को इंडियन ऑयल को उपलब्ध करानी होगी। इस प्रकार वर्तमान में तेल का मूल्य न्यून बनाये रखने का खामिया़जा सरकार को भविष्य में उठाना पड़ेगा। तब सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ेगा। सरकार की सोच थी कि मतदाता को बढ़ती महंगाई से तत्काल राहत मिल जायेगी जो वोट की राजनीति के लिए लाभदायक होगी।

फिर भी महंगाई बढ़ती ही गयी। कारण यह कि विश्र्व बाजार में तेल की मूल्य वृद्घि का कारण भारत एवं चीन में आर्थिक विकास की तीव्र दर है। हमारी बढ़ती खपत की पूर्ति के लिए तेल के साथ-साथ खाद्यान्न एवं खनिजों के मूल्य भी बढ़ रहे हैं। हमारी कंपनियों द्वारा नई फैक्टियां लगायी जा रही हैं। फलस्वरूप स्टील एवं सीमेंट की मांग एवं दाम बढ़ रहे हैं। हमारी कंपनियों के बढ़ते आत्मविश्र्वास एवं सुनहरे भविष्य से लाभ उठाने के लिए विदेशी निवेशकों ने हमारे शेयर बाजार में भारी मात्रा में निवेश किया था। परिणामस्वरूप सेन्सेक्स 21000 के स्तर पर पहुँच गया था। घरेलू निवेश से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में गर्मी अधिक थी। विदेशी पूंजी के आगमन से यह और बढ़ गयी, जैसे लौंग चबाकर ठंडे पानी से नहाने से शरीर का तापमान बढ़ा ही रहता है।

अर्थव्यवस्था में गर्मी के दो स्रोत थे- घरेलू निवेश एवं विदेशी निवेश, तदनुसार गर्मी शांत करने के सरकार के पास दो उपाय थे- घरेलू निवेश को ठंडा करना अथवा विदेशी निवेश को। सरकार का विशेष मोह विदेशी निवेशक पर है। उनके हित सरकार के लिए सर्वोपरि हैं। इसलिए सरकार ने विदेशी पूंजी के आगमन के दरवाजे न केवल खुले रखे बल्कि उन्हें चौड़ा किया। साथ ही घरेलू निवेश को ठंडा करने के लिये रिजर्व बैंक ने ब्या़ज दरों में वृद्घि की। इन कदमों का प्रभाव पड़ा। हमारी आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत पर आ गयी। महंगाई जो 15 प्रतिशत की दर से बढ़ने को थी वह 11 प्रतिशत की दर से ही बढ़ी। ब्याज दरों में और वृद्घि किये जाने के संकेत मिल रहे हैं चूंकि सरकार महंगाई पर शीघ्र नियंत्रण करना चाहती है। सरकार एक ओर विदेशी पूंजी को निवेश ब़ढ़ाने के लिए आकर्षित कर रही है और दूसरी तरफ ब्याज दर बढ़ा कर घरेलू पूंजी को निवेश करने से हतोत्साहित कर रही है।

तथापि विदेशी पूंजी को लाभ पहुँचाने का सरकार का यह संकल्प पूरा नहीं हो रहा है। कारण यह कि तेल बांड का भार बढ़ता जा रहा है जो भविष्य में सरकार के वित्तीय घाटे में वृद्घि का कारण बनेगा। ऱिजर्व बैंक ने हाल में प्रतिदिन तेल बांड की बिाी की सीमा 1000 करोड़ से बढ़ाकर 1500 करोड़ कर दी जो इस बढ़ते भार को इंगित करता है। भविष्य में सरकार पर पड़ने वाले इस भार से देश की अर्थव्यवस्था के चरमराने के आसार हैं। अतः चतुर विदेशी निवेशकों ने अपनेे हाथ खींच लिये हैं। फलस्वरूप सेंसेक्स 14000 से नीचे मंडरा रहा है और इसके धराशायी होने की प्रबल संभावना है।

सरकार की नीति पूर्णतया विफल दिखती है। तेल पर भारी सब्सिडी देने के बावजूद महंगाई बढ़ती जा रही है चूंकि सीमेंट, खनिज, स्टील और गेहूं की मांग एवं दाम बढ़ रहे हैं। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के बावजूद विदेशी पूंजी मुंह फेर रही है चूंकि भविष्य में तेल बांड के भार के कारण सरकार की वित्तीय स्थिति बिगड़ने को है। सरकार के पास विकल्प था कि वह तेल के बढ़ते मूल्य को उपभोक्ता का बोझ समझ उपभोक्ता को उठाने देती। महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए दूसरे घरेलू उत्पाद पर टैक्स कम किया जा सकता था, जैसे कपड़े, साइकिल, माचिस, सीमेंट इत्यादि पर। तेल महंगा हो जाता परन्तु कुल महंगाई नहीं बढ़ती। थोक मूल्य सूचकांक में तेल का हिस्सा 7 प्रतिशत है जबकि उत्पादित माल का 63 प्रतिशत। अतः तेल के मूल्य दुगुने हो जाने का जितना प्रभाव पड़ेगा उतना ही प्रभाव मैन्युफैक्चर्ड माल के मूल्यों में 12 प्रतिशत की गिरावट से पड़ेगा। महंगाई रोकने के लिए सरकार दूसरे उत्पादित माल पर टैक्स घटा सकती थी। ऐसा करने से दो लाभ होते। तेल की मूल्य वृद्घि से तेल की खपत कम होती, तेल की खरीद के लिए डॉलर की मांग कम होती, रुपये का मूल्य सुदृढ़ बना रहता और आयातित माल के घरेलू दाम न्यून रहते और महंगाई नियंत्रण में आती। दूसरी तरफ उत्पादित माल के दाम घटने से मांग बढ़ती, निवेश बढ़ता, घरेलू उपभोक्ता एवं निवेशक दोनों सुखी होते।

सरकार के समक्ष इस सीधे फार्मूले को लागू करने में समस्या थी। घरेलू निवेश बढ़ता और विदेशी निवेश भी आता तो घरेलू अर्थव्यवस्था का तापमान बढ़ जाता। महंगाई पुनः सिर उठा लेती। सरकार के पास इसका विकल्प भी था। सरकार विदेशी निवेशकों पर किसी भी रूप में ऐंटी टैक्स लगाकर विदेशी पूंजी के आगमन पर रोक लगा सकती थी। ऐसे में अर्थव्यवस्था का तापमान गिर जाता। परन्तु सरकार ने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसके लिए विदेशी निवेशकों का हित सर्वोपरि है। सरकार विदेशी निवेशकों पर एंटी टैक्स आरोपित करने से कतराती है। फिर भी अर्थव्यवस्था का तापमान डाउन करना ही है इसलिए ब्याज दर बढ़ाकर सरकार घरेलू निवेश का गला घोंट रही है ताकि विदेशी निवेशक फल-फूल सकें। दुर्भाग्य है कि वित्तीय घाटे की वृद्घि देख कर विदेशी निवेशक अपने आप भाग गये हैं। अन्त में सरकार के हाथ में कुछ नहीं आया। महंगाई बढ़ रही है चूंकि घरेलू निवेश दबकर भी मांग ब़ढ़ाये हुए है। घरेलू निवेश दब रहा है। विदेशी निवेशक भाग खड़े हुए हैं। सरकार खड़ी तमाशा देख रही है।

सरकार को तत्काल अपनी नीति बदलनी चाहिए। तेल की मूल्य वृद्घि के बोझ को पूर्णतया उपभोक्ता पर डालना चाहिए। उत्पादित माल पर टैक्स घटाना चाहिए। ब्याज दर न्यून बनाये रखना चाहिए। घरेलू निवेश को बढ़ाये रखना चाहिए। विदेशी निवेशकों पर एंटी टैक्स लगाना चाहिए। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को विदेशियों का मोह छोड़ कर देशहित में इस फार्मूले को लागू करना चाहिए।

 

– डॉ. भरत झुनझुनवाला

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