श्रावणी पुर्णिमा (रक्षाबंधन)

श्रावण सुदी पुर्णिमा को श्रावणी पुर्णिमा आती है, इसमें सबसे पहले जनेऊ पुजन होता है, जो-जो आदमी जनेऊ धारण करते है वो सुबह न्हा धो कर पूजा करने जाते है। पुजा की सामग्री का पन्ना पण्डितजी देतेहै उस हिसाब से तैयारी कर देते है+ पंचाममृत बना देते है। पिला पिताम्बर पहनकर पूजा में जाते है 15-20 जनेउ साथ में ले जाते है,उनकी पूजा करवा लेते है, ताकि साल भर वो जनेऊ चलती रहे। पूजा केबाद ही अन्न ग्रहण करते है।

इन पुनम को हम राखी पुनम भी कहते है। भाई बहिन के इस रिश्ते के लिए तो क्या कहें? जितना कहें,उतना ही कम है, उस प्यार व अपनत्व को बताने के लिए तो शब्द ही कम पड जाते है।

मन की वेदना क्या कहे वो भाई नहीं है जिसके बहना,
उस भाई की है सूनी कलाई उस बहन की नहीं थमती है रुलाई
जिस बहन के नहीं है भाई,
भाई बहिन के प्यार का प्रतिक हे ये बन्धन,
आर्शिवाद उपहारों का त्यौहार हे रक्षा बन्धन।
पहले तो इस पुनम की सिर्फ ब्राह्मण ही अपने यजमानों को राखी बान्धथे थे,आज कल प्राय सभी राखी पुर्णिमा को ही बान्धने लग गयेहै। वैसे हम लोगों काराखी का त्यौहार भादवा सुदी पांचम यानि ऋषि पंचमी है।

पंचामृत बनाने की विधि :- दूध कच्चा, दही, उसमें हलका सा घी, हलका सा शहद व शक्कर डालकर उसे मिक्स कर लेते है, केशर, इलायची डाल देते है।

श्रावण की पुर्णिमा को हम सुणा पुन्यु भी कहते है, उस दिन हम सूण जिमाते है, पांच दरवाजों पर सुण यानि (राम-राम) लिखते है, फिर उसकी पूजा करते है, कुंकु-चावल मोली व चावल का सीरा। हम लोगसुण जीमाने के लिए चावल का सीरा ही बनाते है।

चावल का सीरा बनाने की विधि :- चावल धो के पिसवा लेते है, चावल के आटे को घी में सेककर उसमें पानी डालकर शक्कर डालने का।

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