संगीत – सुहाना कॅरिअर

एक जमाना था, जब संगीत को सिर्फ आत्मिक आनंद से जोड़कर देखा जाता था। माना जाता था कि संगीत के दीवानों को व्यावहारिक दुनिया और कॅरिअर से कुछ लेना-देना नहीं होता। वह तो बस संगीत के दीवाने होते हैं। संगीत उनका नशा होता है और संगीत से ही अगर कुछ खा-कमा लें, तो उनकी किस्मत है वरना बड़े-बड़े संगीतकारों को भी तो राजा-महाराजाओं की मेहरबानी पर ही जीना पड़ता है।

लेकिन अब ये तमाम धारणाएं सब कुछ पुरानी बातें हो चुकी हैं। संगीत आज भी उतना ही आत्मिक आनंद देता है, जितना पहले देता था। संगीत सुनने वालों को भी और संगीत से जुड़े तथा संगीत से रोजी-रोटी कमाने वालों को भी। लेकिन अब संगीत महज शौक या दीवानगी नहीं है। अब संगीत बाकायदा एक रोजगार है और संगीत के सुरों में सुहाने कॅरिअर का ख्वाब भी देखा जा सकता है। जी हां, क्योंकि संगीत सिर्फ ईश्र्वर की साधना नहीं रहा। यह अरबों डॉलर का उद्योग भी बन चुका है। इसलिए संगीत में कॅरिअर की चाह रखना या कॅरिअर तलाशना किसी भी नजरिए से अगंभीरता नहीं है।

संगीत में बहुत किस्म के रोजगार मौजूद हैं। मसलन- गायक, संगीतकार, गीतकार, कम्पो़जर, प्रोड्यूसर, संगीत समीक्षक, संगीत थैरेपी, साउंड इंजीनियर, म्यु़िजकोलॉजिस्ट, म्युजिक बैंड में कोई इंस्ट्रूमेंट बजाना इस सबके अलावा देश भर में खुले दर्जनों एफएम रेडियो स्टेशन, कई म्युजिक चैनल, होटल और हास्पिटेलिटी, इंटरनेट तथा शोध जैसे अनगिनत क्षेत्र उभरे हैं, जहां संगीत की समझ या संगीत में न्यूनतम योग्यता रखने वालों को रोजगार मिल जाता है। सवाल है, आखिर संगीत के क्षेत्र में कॅरिअर बनाने का उद्योग के लिहाज से क्या भविष्य है? भारत की संगठित संगीत इंडस्टी का 8 अरब रुपये सालाना का टर्नओवर है और इसमें 7 से 8 फीसदी की सालाना वृद्घि पारंपरिक संगीत में और 20 से 25 फीसदी सालाना की वृद्घि डिजिटल संगीत के कारोबार में जारी है। संगीत क्षेत्र में प्रत्यक्ष रूप से 5 लाख से ज्यादा लोग कार्यरत हैं और अप्रत्यक्ष रूप से इससे 3 गुना लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं।

सवाल उठता है कि क्या संगीत के क्षेत्र में नयी प्रतिभाओं की मांग है? क्या इस इंडस्टी का भी दूसरे उद्योगों की तरह मॉडिफिकेशन हो रहा है? और क्या इसके विकास की निरंतर संभावनाएं हैं? इन तमाम सवालों का एक संक्षिप्त जवाब है- हां ऐसा है। संगीत के क्षेत्र में सालाना 5 से 6 हजार लोगों (जो इस क्षेत्र के बारे में तकनीकी रूप से जानकारी रखते हों) की जरूरत है। लेकिन एक व्यावसायिक और आर्थिक उपार्जन के रूप में अपनी छवि न रखने के कारण संगीत क्षेत्र को उतने बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित मैनपॉवर नहीं मिल पाता, जितने की जरूरत होती है। यह इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले और इसी क्षेत्र में अपना कॅरिअर तलाशने वालों के लिए एक तरह से खुशी का विषय है क्योंकि उनके लिए अवसर मौजूद हैं।

सवाल उठता है, संगीत के क्षेत्र में किस तरह के लोग जाकर क्या कर सकते हैं? इस सवाल का सीधा-सा जवाब है कि संगीत क्षेत्र में दर्जनों बल्कि सच कहें तो सैकड़ों किस्म के काम हैं। आपको संगीत क्षेत्र का जो काम सबसे ज्यादा लुभाता हो, सबसे ज्यादा आकर्षित करता हो, उसको चुनें और इस क्षेत्र में अपने कॅरिअर को ठोस आकार दें। संगीत के रचनात्मक क्षेत्र में मुख्य रूप से तीन लोग आते हैं-गीतकार, संगीतकार और गायक। गायक बनने के लिए अच्छी आवाज होनी चाहिए। लगातार सीखने का माद्दा होना चाहिए। प्रकृति के रंगों, उसके लरजते भावों को आत्मसात करने का विह्वल मन होना चाहिए और पुनः एक बार दोहरा लें बढ़िया आवाज, अच्छी रियाज इस क्षेत्र के लिए सबसे जरूरी चीजें हैं। संगीतकार होने के लिए विभिन्न किस्म के वाद्य-यंत्रों को बजा लेने की खूबी होनी चाहिए। किसी स्थिति को देखकर उसे संगीत में ढालने का भाव और मनोविज्ञान होना चाहिए, जबकि गीतकार बनने के लिए भाषा और शब्दों का जबरदस्त ज्ञान होने के साथ-साथ दिल कविताई होना चाहिए। किसी अच्छे गीतकार-संगीतकार और गायक की पहले से कोई कमाई निश्र्चित नहीं की जा सकती, क्योंकि यह एक रचनात्मक क्षेत्र है और रचनात्मकता के पेशेवराना आकलन का कोई ठोस फार्मूला नहीं है। फिर भी संगीतकार को प्रति-प्रदर्शन शुरुआत में ही 3 हजार से लेकर 6 हजार रुपये तक मिल जाते हैं। गायक और गीतकार को इससे थोड़ा कम मिलता है, फिर भी अगर सही जगह और मौका मिल जाये तो शुरुआत में ही किसी गीतकार को प्रति गीत 4 से 5 हजार रुपये और इसी तरह गायक को हरेक परफॉर्मेंस के लिए 5 से 6 हजार रुपये मिल जाते हैं।

अगर आप तकनीक से प्यार करते हैं, साथ ही साथ आपकी संगीत क्षेत्र में भी रुचि और उसमें प्रयोग करने का माद्दा भी है तो ऑनलाइन म्युजिक इंडस्टी में आपका स्वागत है। इस क्षेत्र में जहां पारंपरिक संगीत के कलाकारों की जरूरत पड़ती है, वहीं तमाम टेक्निकल लोगों की भी जरूरत पड़ती है, जो म्युजिक को ऑनलाइन बनाने, खरीदने, बेचने आदि के लायक बनाते हैं। विभिन्न किस्म के म्युजिक फार्मेट जैसे एमपी-3, रियल रेडियो आदि को तैयार करने में भी ऐसे तकनीकी जानकारों की जरूरत पड़ती है, जिनकी संगीत के क्षेत्र में भी रुचि हो। क्योंकि इससे काम आसान हो जाता है। ध्यान रखिए, ऑनलाइन संगीत बहुत तेजी से बढ़ रहा है। एक खुशखबरी यह है कि भारत का ऑनलाइन संगीत उद्योग लगभग विश्र्व में पहले नंबर पर है। हमें इस मामले में सिर्फ कोरिया से ही टक्कर मिल रही है। इसलिए ऑनलाइन के जरिए भी म्युजिक में खूब मलाई है।

कंप्यूटर आजकल संगीत सुनने, बनाने, सुनाने आदि का प्रमुख साधन बन गया है। कंप्यूटर के जरिए स्पेशल साउंड इफेक्ट बनाये जाते हैं, जो कि पारंपरिक संगीत से भी कहीं ज्यादा प्रभावशाली साबित हो रहे हैं। तकनीकी स्तर पर और भी कई काम हैं- मसलन रिकॉर्डिंग, आवाज की आवृत्ति और अंतराल को नियंत्रित व संपादित करना, इनकी मिक्ंिसग में दक्ष होना, साथ ही रेडियो स्टेशन, डबिंग स्टूडियो प्रभारी, डबिंग इंजीनियर, इंटरटेनमेंट विजुअलाइ़जर ये तमाम ऐसे पेशे हैं, जो संगीत के तकनीकी और प्रबंधकीय विशेषज्ञता वालों को हासिल होते हैं। हालांकि इसके प्रबंधन में एक तरह से अभी कलाकारों को इकट्ठा करने तक का ही मामला शामिल रहा है, लेकिन भविष्य में यह कई तरह के उपकरणों, भावनाओं और उद्वेगों के प्रबंधन से भी जुड़ जायेगा।

संगीत के विभिन्न क्षेत्रों में जाने के लिए शुरुआती 10 जमा 2 की शैक्षिक योग्यता की दरकार होती है। जहां तक इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख संस्थानों का सवाल है तो वो इस प्रकार हैं-

  • फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे
  • सेंटर फॉर रिसर्च एंड आर्ट ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन, दिल्ली
  • विश्र्वभारती विद्यालय, शांतिनिकेतन, कोलकाता
  • प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद
  • अजमेर म्युजिक कॉलेज, अजमेर
  • एस.ए.ई. टेक्नोलॉजी कॉलेज, नई दिल्ली, मुंबई, बेंगलूर, चेन्नई, कोयम्बटूर, तिरुअनंतपुरम
  • डिजिटल एकेडमी फिल्म स्कूल, मुंबई
  • सत्यजीत रे इंस्टीट्यूट ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन, कोलकाता
  • एल.वी. प्रसाद फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ तमिलनाडु, चेन्नई
  • संगीत रिसर्च एकेडमी, कोलकाता
  • संगीत महाविद्यालय, लखनऊ

– जी.एस. नंदिनी

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