समाज को तोड़ने वालों की साजिश को समझना होगा

भारत जैसे लोकतंत्र में नेता बनना बेहद आसान है, केवल आपको समाज को तोड़ने में महारत हासिल होनी चाहिए। यदि आपको विवादों और वादों को पैदा करना आता है तो कोई आपको नेता बनने से नहीं रोक सकता। समाज में कोई भी वाद उछाल कर विवाद खड़ा कीजिए और लोगों को उकसा कर झगड़ा खड़ा करवा दीजिए तो आप एक सफल नेता माने जाएंगे।

विश्र्व के सबसे बड़े लोकतंत्रों में गिना जाने वाला भारत का लोकतंत्र बाहर से जितना विशाल और भव्य दिखाई देता है, वह अन्दर से उतना ही डरावना और खोखला हो चुका है। हमारे लोकतंत्र में हर प्रकार के व्यक्ति को फलने-फूलने की पूरी आ़जादी है। केवल समझदार, शरीफ और ईमानदार व्यक्ति के लिए ही आगे बढ़ने की आ़जादी नहीं है। कम से कम राजनीति के क्षेत्र में तो यह फार्मूला शत-प्रतिशत लागू होता है।

क्षेत्रवाद का नारा देकर आप मोहल्ले के साथ मोहल्ला लड़ा सकते हैं। एक गॉंव को दूसरे गॉंव से भिड़ा सकते हैं, जिलों को आपस में बैरी बना सकते हैं और राज्यों में मार-काट करवा सकते हैं। धर्म के नाम पर आतंकवाद फैलाना बेहद आसान है और इसी नाम पर नफरत के बीज बहुत जल्दी उगाए जा सकते हैं। धार्मिक भावना वह भावना है जिसमें इष्ट के नाम पर कितने ही अनिष्ट किए जा सकते हैं। पूरी दुनिया में धर्म ही एक ऐसा मंत्र है जिसकी आड़ में हर प्रकार का अधर्म करना जायज है।

भारत में जाति भी धर्म की तरह एक ऐसा वाद है जो भयंकरतम विवाद पैदा करने में बारूद में चिंगारी की तरह काम करता है। जाति एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा है जो धर्म पर भी भारी पड़ता है। जाति के लिए जान देना शान समझी जाती है। जातियों के नेता ही आगे चलकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनते हैं। मंत्रिमंडल में शामिल करने का आधार भी जातियां ही होती हैं। जाति के नाम पर आरक्षण देने की होड़ से भी जातिवाद फल-फूल रहा है। जो आरक्षण केवल कुछ जातियों तक ही सीमित था, अब वह हर जाति की मांग बन गया है। नेता भी इस मांग को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

जातिवाद के नाम पर आरक्षण मांगना लोकतंत्र का फैशन बन गया है। क्षेत्रीयता और जातीयता के नाम पर दंगे करवाना और देश व समाज को तोड़ने वाली उग्र बयानबाजी करना नेताओं का आसान हथियार बन गया है। हमारे देश की राजनीति अन्दर से इतनी खोखली और कमजोर हो चुकी है कि ऐसे नेताओं को रोकना तो दूर बल्कि सत्ता के लिए उनकी मौजूदगी आवश्यक हो गई है। समाज को तोड़ने वाले जिन नेताओं को देशद्रोह के मामले में मृत्युदण्ड मिलना चाहिए, वही नेता हमारे ऊपर शासन कर रहे हैं।

आ़जादी के बाद नेता बनने का आधार अब गुण न होकर अवगुण हो गए हैं। कौन-सा नेता समाज में जहर फैलाने के लिए कौन-सा नया पैंतरा इस्तेमाल कर सकता है, यही उसकी खूबी है। जातिवाद और धर्म के विवादों में से एक नया वाद भी कारगर हथियार बन गया है, जिसे अल्पसंख्यकवाद कहते हैं। इसके नाम पर भी ओछी राजनीति को चमकाया जा सकता है।

जिस प्रकार से समाज विभिन्न वादों के चक्कर में टूटता जा रहा है और हर व्यक्ति अपने आप में सम्पूर्ण इकाई बनता जा रहा है, ऐसे में हर कोई अल्पसंख्यक है। हर व्यक्ति चाहता है कि सरकार उसे विशेष समझ कर पाले-पोसे। ऐसे अनेक आधार हैं जिनका तर्क देकर हर कोई अपने आपको कमजोर, अल्पसंख्यक और बेचारा प्रमाणित कर सकता है। हर किसी को सरकारी खैरात और बिना योग्यता के सरकारी नौकरियां चाहिएं। न लौटाने के लिए कर्जे चाहिएं, काम न करने के लिए नौकरी चाहिए और बिना पढ़ाई किये डिग्रियां चाहिएं। जातिवाद, क्षेत्रवाद, अल्पसंख्यकवाद और धर्म के नाम पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है।

हमारा लोकतंत्र इस कदर अपाहिज हो चुका है कि उसमें समाज की एक भी बुराई दूर करने की ताकत नहीं बची है। इस लोकतंत्र में हर गलत आदमी सुरक्षित और आरक्षित है एवं हर ठीक आदमी लाचार और मजबूर है। हर क्षेत्र में अयोग्यता ही जिंदाबाद है और योग्यता का मुंह काला है। आजादी के 61 सालों में हमारा लोकतंत्र परिपक्व होने की अपेक्षा बड़ी आयु के मंदबुद्घि व्यक्ति की तरह दिशाहीन और सोच-विचार से बाहर हो गया है।

लोकतंत्र का अर्थ है कि विचारवान और अच्छे लोग चुनकर आगे आएं और बिना किसी विवाद में फंसे नेता का धर्म निभाते हुए देश व समाज को आगे ले जाएं। भारत में ठीक इसके विपरीत हो रहा है जिसका परिणाम यह है कि हम नई से नई समस्याओं में जकड़ते जा रहे हैं और अन्धे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। इससे बाहर निकलने का रास्ता देखने तक की फुरसत किसी को नहीं है। हर कोई पैसा, पद और पावर पाने की होड़ में लगा हुआ है। आज पूरा देश आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मामले में कमजोर हो चुका है। अशिक्षा, महंगाई, बेरोजगारी, आतंकवाद और अराजकता के चंगुल में पूरी तरह जकड़ा जा चुका है।

लोकतंत्र के मौजूदा स्वरूप को बदलने की बेहद जरूरत है। इस लोकतंत्र में से छंटाई होकर ऐसे नेता आगे आने चाहिएं, जो देश को प्रगति के मार्ग पर ले जाएं। लोकतंत्र इतना मजबूत और त्रुटि रहित होना चाहिए कि गलत व्यक्ति को नेता बनने का मौका ही न मिल सके। भारत के सरकारी तंत्र में भी आमूल परिवर्तन की ़जरूरत है। भ्रष्ट और निकम्मे शासनतंत्र से जनता को मुक्ति मिलनी चाहिए। कानून और न्यायपालिका इतने मजबूत और पारदर्शी होने चाहिएं कि दोषी को दूर से ही अपराधों से डर लगने लगे।

इतनी सारी कार्यवाही के लिए कोई एक सिरा पकड़नेे से काम नहीं चलेगा बल्कि पूर्ण ाांति लानी होगी। इसके लिए चाहे पूरे देश को एक बार कड़वा घूंट भी क्यूं ना पीना पड़े? प्रतिदिन मर-मर कर जीने से अच्छा है कि एक बार कुर्बानी करके सदा के लिए अमरता के साथ जिया जाए।

– वीर विाम आदित्य

You must be logged in to post a comment Login