साप्ताहिक धारावाहिक

चौदहवें दिन भव्य समारोह का आयोजन किया गया। काजी ने कुरान देखने के बाद सुल्तान से बच्ची का नाम रखने को कहा। कुली ने उसका नाम रखा हयात ब़क्शी यानि जीवन देने वाली। इस नाम का मतलब ईश्र्वर या अल्लाह नहीं बल्कि इसका मतलब है कि वह जो अपने सम्पर्क में आने वाले हर इंसान में जोश और उत्साह भर दे। अपने नाम के अनुसार उस नन्हीं-सी जान ने पूरे महल में जान डाल दी थी।

बच्ची की जन्म कुंडली में लम्बी उम्र के साथ-साथ उसके नामचीन होने की भी भविष्यवाणी की गई थी। कई सालों पहले लिखी गई अपनी जन्म-पत्री, जो उसने सन्दूक में बंद करके रखी थी, भागमति ने निकाल कर कुली को दिखाई। कुली दोनों कुंडलियों में बच्चे के बारे में एक जैसी बात को लिखा देखकर हैरान रह गया। हयात की कुंडली में यह भी लिखा था कि उसका कोई भाई या बहन नहीं होगा।

मोहम्मद ने इस बात पर कोई खास ध्यान नहीं दिया, बल्कि उसने अपना पूरा प्यार और ध्यान इस बच्ची के लालन-पालन और पढ़ाई-लिखाई पर लगा दिया। वह लड़की थी तो क्या हुआ!

जवानी में ़कदम रखने तक हयात बक्शी काफी खूबसूरत हो चुकी थी। एक दिन अन्य दिनों से ़ज्यादा आइने के सामने रुककर वह अपने-आपको निहारती रही। ़खुद को देखकर उसने अपने पिता की ऩज्म से दो पंक्तियॉं, जो प्रेमी के लिए कहीं गईं थीं, गुनगुनाई-

तुज बिन रहा न जावे अन नीर कुछ न भावे

बिरह कित्ता सतावे मन सीती मन मिला दे

(मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती, न ही मैं कुछ और देख सकती हूँ। जुदाई मुझे सता रही है, चलो एक हो जाएँ।)

इधर हयात बक्शी ने जवानी में कदम रखा और उधर भागमति ने बिस्तर पकड़ लिया। उसे बीमार हुए लगभग दो हफ्ते हो चले थे। चूंकि हकीम बीमारी नहीं पकड़ पा रहे थे, सो उन्होंने सुल्तान से कहा कि डरने वाली कोई बात नहीं है, शायद रानी साहिबा के मन में किसी प्रकार का कोई बोझ है, जो उन्हें तंग कर रहा है।

एक शाम कुली ने भाग से पूछ ही लिया कि ऐसी क्या बात है, जो उसने इस तरह बिस्तर पकड़ लिया है। कुली की बात सुनते ही भाग की आँखों से आँसू निकल पड़े और उसने कहा, “”आप जानते हैं कि मैं वैसी नहीं हूं।”

“”वैसी कैसी?” कुली ने परेशान होकर पूछा।

“”जैसा फैजी मेरे बारे में कह रहा था।”

“”ओह वह कमीना! पर तुम्हें कैसे पता चला कि वह तुम्हारे बारे में क्या कह रहा था? और फिर तुम्हें इस बात से क्या फर्क पड़ता है? तुम जानती हो कि मैं जानता हूं, सब जानते हैं कि तुम क्या हो?”

फैजी मुगल बादशाह अकबर (शासक 1556 से 1605 तक) का खास और विश्र्वसनीय दरबारी था। दक्कन में मुगलों के अचानक हमले शुरु होने पर अकबर ने उसे प्रतिशासक बनाकर अहमदनगर भेजा था। हर रोज की खास और गोपनीय खबरों को अकबर तक पहुंचाने में एक बार उसने सरसरी तौर पर मुहम्मद कुली का जिा किया था। यहां तक कि उसने कुली को गोलकोन्डा का शासक भी नहीं कहा था। मुगलों के अनुसार दक्कन के सुल्तान प्रादेशिक क्षतरप हो सकते थे, लेकिन शासक नहीं। फैजी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि गोलकोन्डा का महान अधिपति एक बदनाम औरत पर मोहित है। गोलकोन्डा दरबार के कुछ विरोधी दरबारियों ने जानबूझकर इस गोपनीय खबर को कुली और भाग को तंग करने के लिए चारों तरफ फैला दिया।

“”..आप जानते हैं तो मेरे लिए ये काफी है। लेकिन मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से आप परेशान हों।” भाग ने बड़ी कमजोर आवाज में कहा।

“”लेकिन मैंने कभी कोई परेशानी महसूस नहीं की, उल्टा मुझे तो तुम पर नाज है। ये सब अफवाहें इसलिए तो फैलाईं जा रहीं हैं ताकि अकबर को मुझसे जलन हो।” यह कहते व़क्त कुली के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान फैल गयी। आँसुओं से भीगे भाग के चेहरे पर भी मुस्कुराहट की झलक आकर चली गयी।

“”अगर वह अलाउ-द्दीन-खिलजी होता तो तुम्हें पाने के लिए उसने अब तक युद्घ छेड़ दिया होता, जैसा कि उसने राजपूत रानी पद्मिनी के लिए किया था। लेकिन अकबर समझदार है।” कुली हर कीमत पर भाग के चेहरे पर पहले जैसे गरिमा देखना चाहता था।

वह भाग की आखिरी रात थी। उस समय वो चालीस साल की थी और हयात बक्शी चौदह साल की।

भागमति की मौत से दरबारियों के उस गुट ने चैन की सांस ली, जो भागमति से चिढ़ते थे। कुछ समय बाद उन्होंने सुल्तान पर शहर का नाम बदलने के लिए ़जोर डालना शुरु कर दिया। उनके अनुसार भागनगर नाम गैर मुसलमानी था। इस तरह की दबी आवा़जें काफी समय से उठ रही थीं। उनका कहना था कि शिया शासक के राज्य की राजधानी का नाम हैदर, जो कि अली के नामों में से एक है, के नाम पर होना चाहिए। अली पैगम्बर का दामाद और शिया समुदाय का प्रमुख था। लेकिन ये सिर्फ कहने को था, असलियत में भागनगर नाम भागमति के नाम से जुड़ा था, जो उन्हें हमेशा इस बात की याद दिलाता था कि उनके राजसी पाक शिया शासक का संबंध एक आम मूर्तिपूजक औरत के साथ था। लेकिन मोहम्मद कुली ने नाम बदलने की बात टाल दी।

पर आखिरकार वो लोग अपनी मुहिम में सफल हो ही गए और शहर का नाम आधिकारिक तौर पर बदल कर हैदराबाद रख दिया गया। लेकिन मोहम्मद कुली और लोगों के लिए ये हमेशा ही भागनगर रहा। और फिर नए नाम का संबंध भी भागमति से ही रहा, क्योंकि कुली ने उसे हैदर महल का खिताब दिया था।

कुतुब शाहियों ने ईरान के शाह के आधिपत्य को अपनी इच्छानुसार सैद्घान्तिक तरीके से स्वीकार कर लिया था। ईरान के शासक शाह अब्बास प्रथम के नाम से शुावार को मस्जिद में “खुतबा’ पढ़ा जाता था। इस्लाम में खुतबा सत्ता के एक प्रतीक के रूप में माना जाता है। गोलकोंडा शासन की ओर शाह अब्बास का सकारात्मक रुख था। सन् 1604 में उसने मोहम्मद कुली को रत्नज़डित ताज भेंट स्वरूप भेजा। उगजुलु खान इस तोहफे के साथ शाह अब्बास की तरफ से कुली के लिए खास ़खत भी लाया था। इस ़खत में हयात बक्शी की शादी ईरान के राजकुमार से करने का प्रस्ताव था। जब हयात बक्शी को इस रिश्ते के बारे में पता चला तो उसने अपने पिता से उसे अपने से दूर न भेजने का अनुरोध किया। मोहम्मद कुली खुद भी अपनी इकलौती बेटी, जिसे उसने इतने नाज-नखरे से पाला था, से दूर नहीं होना चाहता था। उसे हयात की जन्मकुंडली की बात, कि हयात का जीवन लम्बा और यशशाली होगा, अच्छी तरह याद थी। उसे लगा कि अगर उसे ईरान भेज दिया तो उसके भविष्य के बारे में सब कुछ अनिश्र्चित ही होगा। उसे तो इस बात का भी पता नहीं था कि ईरान के किस राजकुमार से उसकी बेटी की शादी होगी। और शाह की मौैत के बाद सत्ता की लड़ाई में उसकी बेटी और उसके भावी पति के साथ न जाने क्या हो जाए। और अगर वो यहीं रहती है तो कुली के बाद वह ही उसकी वारिस होगी। उसे अगर किसी से खतरा होगा तो सिर्फ कुली के छोटे भाई मोहम्मद अमीन के बेटे सुल्तान मिर्जा से। अगर कुली के जाने के बाद ये मांग उठी कि उसकी गद्दी पर केवल कोई पुरुष ही बैठ सकता है, तो भी सुल्तान का ही नाम आएगा। हालांकि हयात समझदार थी और आम जनता द्वारा पसंद की जाती थी, लेकिन कईयों की आँखों की किरकिरी भी थी।

 

गतांक से आगे-

You must be logged in to post a comment Login