भूमंडलीकरण, विशेष क्षेत्र, विशेष कॅरिअर

career-in-globalizationआजकल लोगों की बातचीत में अखबारों, पत्रिकाओं में छपे महत्वपूर्ण लोगों के लेखों में अक्सर यह जुमला दोहराया जाता है कि यह भूमंडलीकरण का दौर है यानी ग्लोबलाइजेशन का दौर है। इसलिए हर संदर्भ को अंतर्राष्टीय ऩजरिए से देखने की आदत डालनी चाहिए। यह सही होते हुए भी अधूरी बात है। दरअसल, भूमंडलीकरण की शुरुआत अभी नहीं हुई। हकीकत तो यह है कि यूरोप में औद्योगिक ाांति के साथ ही बाजार नियंत्रित भूमंडलीकरण की तीव्र शुरुआत हो चुकी थी। लेकिन प्रथम विश्र्वयुद्घ के बाद तो यह लगभग सुनिश्र्चित हो गया था कि अब बिना दुनिया में एक-दूसरे के सहयोग और साथ लिये अपने आस्तत्व को कायम नहीं रखा जा सकता।

दरअसल, सिर्फ कंप्यूटर और इंटरनेट ने ही एक देश के लोगों के तार दूसरे देश के लोगों से नहीं जोड़े। इसमें बाजार, अंतर्राष्टीय सहयोग, राजनीति, कूटनीति, विश्र्व बैंक, मुद्रा कोष और विभिन्न वैश्र्विक संगठनों और उन प्रिायाओं का भी बहुत बड़ा योगदान है, जो भूमंडलीकरण को ठोस रूप में संभव बनाती हैं। वास्तव में यह अंतर्राष्टीयता का दौर है और दुनिया में एक-दूसरे के सहयोग के बिना आज वाकई किसी भी देश का वजूद कायम ही नहीं रह सकता। यही वह स्थिति है, जिसके कारण अंतर्राष्टीय सम्बंधों की जानकारी और इस क्षेत्र में विशेषज्ञता एक महत्वपूर्ण ठोस कॅरिअर का आधार बनकर उभरी है। अंतर्राष्टीय सम्बंधों के विशेषज्ञ दुनिया को आपस में इस्तेमाल के लिए ज्यादा बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। अंतर्राष्टीय सम्बंधों के विशेषज्ञ विभिन्न देशों के सामाजिक ढांचे, सांस्कृतिक विशेषताओं, धर्म, आर्थिक पहलू, राजनीतिक और वैचारिक रूझानों के जानकार होते हैं। इसीलिए वह उन्हीं सब जानकारियों के आधार पर अपने देश के उस देश के साथ सम्बंधों में तालमेल बिठाने का फॉर्मूला तैयार करते हैं।

वैसे अंतर्राष्टीय सम्बंधों का क्षेत्र बेहद व्यापक है और एक निश्र्चित दायरे को चित्रित नहीं किया जा सकता कि सिर्फ यही वह क्षेत्र है, जिसका सम्बंध अंतर्राष्टीय सम्बंधों से है। कूटनीतिक, आर्थिक, राजनीतिक, वैचारिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक ये तमाम ऐसे क्षेत्र हैं जिनके विभिन्न पहलू और आयाम हैं और वो सब एक शानदार नौकरी का जरिया बन सकते हैं। आमतौर पर अंतर्राष्टीय सम्बंधों को जब चित्रित किया जाता है तब वह राजदूतों, कांसुलेट्स, अंतर्राष्टीय संगठनों में काम करने वाले अधिकारियों और विभिन्न देशों में कार्यरत विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से लगाया जाता है। इन सभी क्षेत्रों में हाल के सालों में जबरदस्त नौकरियां पैदा हुई हैं।

जैसे-जैसे दुनिया बाजार, कारोबार और जीवनशैली की दृष्टि से एक-दूसरे के नजदीक आयी है, भाषाओं में पुल का काम करने वाले विमान कंपनियों एक से दूसरे देश तक यातायात को आसान बनाने वाले क्षेत्र और साधन भी बड़े पैमाने पर नौकरियों का जरिया बने हैं। लेकिन अंतर्राष्टीय सम्बंधों पर विशेषज्ञता हासिल करने के बाद ज्यादातर लोग जिस क्षेत्र में नौकरी करना पसंद करते हैं, वह इंटरनेशनल फॉरेन सर्विसेस का क्षेत्र ही होता है। हमारे यहां आईएफएस आईएएस के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण और सम्मानित सर्विस मानी जाती है। इंटरनेशनल रिलेशंस के छात्रों की बड़े पैमाने पर यहां मांग होती है। लेकिन उन्हें इस सर्विस में जाने के लिए यूपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है।

दिनोंदिन बढ़ते अंतर्राष्टीय लेनदेन के कारण बीमा, बैंक और वित्तीय क्षेत्र की तमाम कंपनियां आजकल पूरी दुनिया में कारोबार करती हैं। भारत में आईटी क्षेत्र एक बहुत बड़े कॅरिअर क्षेत्र के रूप में उभरकर सामने आया है। देश की लगभग सभी महत्वपूर्ण आईटी कंपनियों ने विदेशों में अपने दफ्तर खोल रखे हैं। इन दफ्तरों में सिर्फ आईटी विशेषज्ञों को ही नहीं रखा जाता बल्कि अंतर्राष्टीय सम्बंधों के विशेषज्ञों की भी यहां अच्छी-खासी मांग होती है। मीडिया और एनजीओ के क्षेत्र का भी हाल के दशकों में बहुत तेजी से अंतर्राष्टीय विस्तार हुआ है। यहां भी ऐसे लोगों को तरजीह दी जाती है, जो अंतर्राष्टीय सम्बंधों में व्यापक विशेषज्ञता रखते हों। हाल के सालों में अंतर्राष्टीय टूरिजम भी बहुत तेजी से बढ़ा है। इस इंडस्टी को और पुख्ता बनाने के लिए तथा बड़े पैमाने पर विदेशी टूरिस्ट आकर्षित करने के लिए टैवेल एजेंसियों और विभिन्न देशों के पर्यटन मंत्रालयों ने विभिन्न देशों में अपने दफ्तर खोले हैं। यहां पर भी ऐसे लोगों की बड़े पैमाने पर दरकार रहती है, जो अपने देश के बारे में तो बेहतर जानकारी रखते ही हों, उन देशों के बारे में भी दक्षता के साथ विभिन्न जानकारियों के स्रोत हों, जहां उन्हें नियुक्त किया गया होता है। इसके लिए भी अंतर्राष्टीय सम्बंधों के जानकारों की जरूरत पड़ती है। विश्र्व बैंक, मुद्रा कोष और दूसरे अंतर्राष्टीय व्यापारिक संगठनों का आज की वैश्र्विक अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण रोल हो गया है। यहां पर भी ऐसे लोगों को नौकरियां आसानी से मिल जाती हैं, जो अंतर्राष्टीय सम्बंधों में विशेषज्ञता रखते हों।

कुल मिलाकर अंतर्राष्टीय सम्बंध एक ऐसे विशेष और विशेषज्ञता वाले पाठ्याम के रूप में उभरा है जिसकी हाल के दिनों में खासी मांग पैदा हुई है। इस मांग को पूरा करने के लिए देश के विभिन्न उच्चस्तरीय विश्र्वविद्यालयों और नीति-निर्धारण में भूमिका अदा करने वाले पॉलिसीमेकर संस्थानों में भी इन विषयों को पाठ्याम के रूप में पढ़ाया जाना शुरू हुआ है। कहने का मतलब जहां एक तरफ इस क्षेत्र में नौकरियां बढ़ी हैं, वहीं इस क्षेत्र के विस्तार को संभव बनाने के लिए अध्यापन के रूप में भी कॅरिअर की संभावनाएं व्यापक बनी हैं। जहां तक इस क्षेत्र में हासिल होने वाले वेतन, भत्तों व सुविधाओं की बात है तो आईएफएस, आईएएस के बाद दूसरे नंबर की सबसे महत्वपूर्ण सर्विस है। इसके अलावा विदेशों में नियुक्ति का अतिरिक्त वेतन-भत्ता और सुविधाएं भी होती हैं। इस तरह सरकारी क्षेत्र में शानदार वेतन व सुविधाएं मौजूद हैं। जबकि प्राइवेट क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्धा के कारण सरकारी क्षेत्र से कहीं ज्यादा ही सुविधाएं और वेतन उपलब्ध है। चूंकि सरकारी क्षेत्र का वेतन और दूसरी सुविधाएं सरकारी नियमों के अनुसार ही तय होती हैं और प्राइवेट क्षेत्र के लिए भी देश से बाहर की तमाम व्यवस्थाएं, उनके विशेषाधिकार का हिस्सा होती हैं। इसलिए इस क्षेत्र के लिए एक निश्र्चित नियम नहीं है कि कितना वेतन मिलेगा। फिर भी इस शीर्ष क्षेत्र में कॅरिअर बनाने वालों को शुरुआत से ही न्यूनतम 30 से 35 हजार रुपये मासिक का वेतन और विभिन्न तरह की सुविधाएं हासिल हो जाती हैं।

चूंकि यह उच्चस्तरीय अध्ययन से जुड़ा क्षेत्र है, इसलिए अभी यह देश के महत्वपूर्ण विश्र्वविद्यालयों में ही पाठ्याम मौजूद है। लेकिन हाल के सालों में जिस तरह से इस क्षेत्र की मांग बढ़ी है, उसे देखते हुए विभिन्न विश्र्वविद्यालयों और तमाम दूसरे शैक्षिक संस्थानों में भी इस क्षेत्र में डिग्री और डिप्लोमा देने की शुरुआत की है। अंतर्राष्टीय सम्बंधों में डिग्री पाठ्याम कराने वाले कुछ महत्वपूर्ण संस्थान इस तरह हैं-

– द एकेडमी ऑफ थर्ड वर्ल्ड स्टडी़ज, जामिया मिलिया, दिल्ली

– जाधवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता

– डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल स्टडी़ज, पांडिचेरी यूनिवर्सिटी

– जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली

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