अंत न होई कोई अपना

यह संसार भी विचित्र है। मनुष्य जन्म लेता है, तरह-तरह के संबंध जोड़ता है, फिर उनमें रम जाता है। जन्म-जन्मांतरों की स्मृति को बिसार कर सुख-दुःख से भरे इस जीवन को सत्य मानते हुए, वह मात्र इसी जन्म को सब कुछ मान बैठता है। घर-परिवार, समाज की भूल-भुलैया में उलझता प्राणी जीवन के सवेरे से […]

गुरु-शिष्य संबंध

गुरु समष्टि रूप से सचेतन होता है और यही कारण है कि वह एक गुरु है। गुरु समस्त प्रज्ञा और अनुभव के साथ समष्टि रूप से सचेतन होता है। शिष्य का मन व्यष्टि मन होता है, जो देश एवं काल से आबद्घ होता है। शिष्य अपने मन को गुरु के मन के अनुकूल बनाने का […]

पूर्व-कर्म और पूर्व-जन्म के प्रमाण

हम कैसे मानें कि हमारे पूर्व-जन्मों के कर्मों का हिसाब रहता है और हमारे पहले भी जन्म हो चुके हैं? एक व्यक्ति के और दूसरे व्यक्ति के जन्म, परिस्थितियों और घराने आदि में अन्तर का होना यह सिद्घ करता है कि पूर्व-जन्म का लेखा-जोखा हमेशा कायम रहता है। दूसरे, आप देखते हैं कि किसी में […]

जीवन गीता

मनुष्य जन्म लेने के साथ ही रिश्तों के बंधन में बंध जाता है। उसी परिवेश में बंधु-बांधव, इष्ट मित्र तथा पूरा परिवार उससे जुड़ जाता है। उस नियति के जुड़ाव को स्वीकार कर वह सहयोग, सहायता एवं अपनापन ढूंढता हुआ सदा के लिए निश्र्चिंत हो जाना चाहता है। उसे हमेशा इंतजार रहता है कि मेरे […]

सच्चा सुख

जब हम कोई इच्छित वस्तु को प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो दुःखी व खिन्न हो जाते हैं। हमारा गुस्सा बढ़ जाता है और बिना बात के ही अन्य लोगों पर अपनी झल्लाहट उतारने लगते हैं। कभी-कभी हम किसी से कोई चीज चाहते हैं और वह देने से इंकार कर देता है, तब भी हमारी […]

सोया हुआ गांव

बहुत पहले सच्ची घटना पर आधारित एक कहानी पढ़ी थी जिसमें बताया गया था कि एक जापानी पति-पत्नी भारत भ्रमण पर आए और यहॉं के गांवों को देखने निकल पड़े। उन्होंने देखा कि खेत में पेड़ के नीचे एक नौजवान खाट पर सोया हुआ था। उसके निकट जाकर जापानी दम्पत्ति ने पूछा, “क्या आप बीमार […]

चिंता पश्चिम की नकल के नतीजों की

आज जब भारत की उन्नति की चर्चा होती है तो बर्टेंड रसेल की याद आ जाती है। उन्होंने कहा था कि आने वाले समय में पूरब और पश्र्चिम की सभ्यताओं में एक ही अंतर रह जाएगा कि पूरब और भी अधिक पश्र्चिमी सभ्यता की तरह दिखेगा। आज भारत की प्रगति की चर्चा किन बातों में […]

विषय-वासना विष भरी है कटारी

मनुष्य के अनेक निषेधात्मक गुणों में से एक विषय-वासना अत्यंत बलवती और हठीली है। आदमी के पतन-पराभव का केवल यही एक ऐसा कारक है, जिससे सर्वथा बच निकलना बड़े-बड़े तपस्वियों, ज्ञानी-ध्यानियों के लिए भी मुश्किल पड़ जाता है। इसीलिए ऋषि-मनीषियों ने कहा है कि इससे यदि पूर्णतः मुक्ति संभव न जान पड़े, तो इसकी अति […]

चरित्र गिर गया है

आजकल कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया चल रही है। छात्राएं अपने प्रवेश पत्र लेकर प्रवेश समिति में पहुँचती हैं तो हम प्राध्यापक साथी उनके डाक्यूमेंट चेक करते हैं। किसी भी कक्षा में प्रवेश हेतु चरित्र प्रमाणपत्र लगाना जरूरी है। एक लड़की चरित्र प्रमाणपत्र नहीं लाई थी। मैंने उससेे पूछा कि “कहॉं है तुम्हारा चरित्र प्रमाणपत्र?’ लड़की […]

संभव है ईश्वर को प्राप्त करना

यह बात जीवन में सदैव याद रखने की है कि जीवन का लक्ष्य भगवद-प्राप्ति ही होना चाहिए। अब सवाल यह है कि भगवद प्राप्ति किस तरह होगी? इससे पहले यह जानना चाहिए कि भगवान दुर्लभ नहीं हैं, भगवान तो सुलभ हैं। हम ऐसे भ्रम में जी रहे हैं कि भगवान को पाना मुश्किल है। यदि […]