पृथु

पृथु एक सूर्यवंशी राजा थे, जो वेन के पुत्र थे। वाल्मीकि रामायण में इन्हें अनरण्य का पुत्र तथा त्रिशंकु का पिता कहा गया है। ये भगवान विष्णु के अंशावतार थे। स्वयंभुव मनु के वंशज अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसी पुत्री सुनीथा से हुआ था। वेन उनका पुत्र हुआ। सिंहासन पर बैठते ही […]

तेन व्यक्तेन भुंजीथा

दुर्बुद्धि मनुष्य के पास धन-संग्रह न होने पावे। इससे वह अपने साथियों का हित नहीं करता। जो इस प्रकार अकेला भोग भोगता है, वह निश्र्चय ही चोर है, पाप भोगता है। मोघमन्नं विन्दते अप्रचेताः सत्यं ब्रवीमि वध इत्स तस्य। नार्यमणं पुष्यति नो सखायं केवलाघो भवति केवलादि।। (ऋग्वेद 10/117/6) धन से मन में लोभ, मोह, मद […]

याचना नहीं अब रण होगा – इस हुंकार में छिपे सियासी अर्थ

जिस समय ये पंक्तियां लिखी जा रही हैं तब तक करीब-करीब यह तय हो चुका है कि यूपीए सरकार एटमी डील के मामले में वामपंथी पार्टियों की परवाह न करके आगे बढ़ेगी। बदले में वामपंथी पार्टियां यूपीए सरकार को दिया जा रहा अपना समर्थन वापस ले लेंगी जिसकी उन्होंने औपचारिक रूप से घोषणा भी कर […]

परिपक्वता में निहित दुःखों का निवारण

हम सभी इस सत्य को नकार नहीं सकते कि संसार दुःखों की खान है, अगर प्रभु में हमारा ध्यान है, तब वह सुखों की खान है। अक्सर देखने को मिलता है कि निर्धन हों या धनी, हर कोई दुःखी ही प्रतीत होता है। इसका मुख्य कारण है अज्ञानता। इसी कारण मानव दुःख-सुख के पहलुओं को […]

परमधाम, ब्रह्मलोक, परलोक या निर्वाणधाम कहॉं है

सूक्ष्म देवलोक के भी पार एक अन्य लोक है। उस लोक को परमधाम, ब्रह्मलोक अथवा परलोक भी कहा जाता है। यहॉं न स्थूल शरीर होता है, न सूक्ष्म, न संकल्प होता है, न वचन और न कर्म। इसलिए, वहॉं न सुख होता है न दुःख, न जन्म और न मरण। बल्कि वहॉं शान्ति ही शान्ति […]

उधेड़-बुन

ज्ञानवान मनुष्य अपने मन में सोचता है कि अब मैं निरंतर योग का अभ्यास करूंगा, अब मैं खूब दिल लगाकर ईश्र्वरीय सेवा करूंगा अर्थात् अन्य मनुष्यों को भी ईश्र्वरीय ज्ञान तथा योग की शिक्षा देकर शान्ति का रास्ता दिखाऊँगा, अब मैं अमुक-अमुक दैवी-गुण धारण करूंगा, बस अब तो मैं बहुत मधुर स्वभाव वाला बनूंगा; परन्तु […]

यमुना

गंगा के पश्चिम, थोड़ी ही दूर हिमालय की यमुनोत्री से मैं निकली हूँ और करीब आठ सौ मील चलकर प्रयाग में गंगा में समा गई हूँ। गंगा के साथ एक ओर तथा सतलुज के साथ दूसरी ओर मैंने दोआब बनाया है, जिसकी भूमि में वीरकर्मा जातियॉं बसती आई हैं और इतिहास सदी-सदी अपनी ईंट जोड़ता […]

रूठे-रूठे मानसून, प्लीज़ कम सून!

इन दिनों हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री जी की निगाहें आकाश की ओर लगी रहती हैं। कारण साफ है, चौमासे का एक माह समाप्त होने पर है, किन्तु इन्द्र देवता कृपा नहीं कर रहे हैं। लगता है बादल रूठ गये हैं। रहीम ने कहा था, बिन पानी सब सून और हम कह रहे हैं, रूठे हुए […]

हिन्दी विश्र्व की नंबर एक भाषा है

यही समझा जाता है कि मंदरिन भाषा जानने वालों की संख्या विश्र्व में सर्वाधिक है। परन्तु यह सच्चाई नहीं है। चीन में 70 अन्य उपभाषाएँ व बोलियॉं हैं जिनको जानने वालों की कुल संख्या 1000 मिलियन है। विश्र्व में हिन्दी व उर्दू जानने वालों की कुल संख्या 1023 मिलियन है। अन्य भाषाओं में प्रयुक्त हिन्दी […]

संविधान की भाषाई अनुसूची का बढ़ता दायरा और सिकुड़ती हिन्दी

इन दिनों शिद्दत से सिर उठाता, हिन्दी परिवार की आंचलिक बोलियों का स्वतंत्र स्थान पाने का मुद्दा (यानी संविधान में प्रदत्त विशेष भाषाई अनुसूची के अन्तर्गत जुड़ने का दुराग्रह) मेरी दृष्टि में एक खतरनाक राष्ट्रघाती कदम है। यह उतना ही खतरनाक है जितना कि देश के भीतर पृथक देश की मांग करते कुछ स्वार्थी तत्व, […]