वर्क को इंज्वाय करें!

enjoy-your-workहो सकता है, तमाम दूसरे लोगों की तरह आपने भी वर्क थैरेपी का नाम न सुना हो, क्योंकि हममें से ज्यादातर लोग हमेशा काम को लेकर शिकायत की ही मुद्रा में रहते हैं। ज्यादातर लोगों की शिकायत ऑफिस में ज्यादा काम की होती है। लेकिन ऐसे ही लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं, जो काम को इंज्वॉय करते हैं। उन्हें काम से कभी शिकायत नहीं होती। शायद ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वह काम के जरिए यह सीखते हैं कि विभिन्न स्थितियों व परिस्थितियों के साथ तालमेल कैसे मिलाया जाता है। शायद काम उनके लिए एक थैरेपी का काम करता है, जिसे वर्क थैरेपी कहते हैं। ऐसा कैसे होता है?

इस सवाल का जवाब शायद काम में ही छुपा होता है। मगर ज्यादातर लोग इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ़ना चाहते। क्योंकि इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना एक काम है और हममें से अधिकतर लोग काम नहीं करना चाहते। यह सचमुच बुरी बात है। ज्यादातर लोग जब अपनी मनचाही जिंदगी की कल्पना करते हैं तो उससे काम को नदारद कर देते हैं। जबकि हकीकत यह है कि अगर हम काम नहीं करते तो हम किसी भी खुशी को इंज्वॉय ही नहीं कर सकते। दरअसल, इंज्वॉय करना भी एक काम है और जब हम काम से इस कदर अपने आपको दूर करने की कोशिश करते हैं तो इंज्वॉय भी ढंग से नहीं कर पाते।

इसमें कोई शक नहीं है कि काम तनावग्रस्त करता है, परेशान करता है और चिंता में डालता है। शायद इसीलिए ज्यादातर लोग जब अपने सपनों की जिंदगी के बारे में कल्पना करते हैं तो उसमें किसी भी तरह के काम को जगह नहीं देते। मतलब सभी तरह की गतिविधियां ठप्प। पर क्या यह स्थिति खुशी दे सकती है? चूंकि हम ज्यादातर समय काम के बोझ में दबे होते हैं, इस वजह से काम को लेकर हमारे मन में नकारात्मक ख्याल होते हैं वरना लहराते समंदर, बलखाती नदियां और विशाल पर्वत यह सब मन बहलाने के लिए एक-दो दिन तो अच्छे लगते हैं। किंतु दिन-रात इन्हें देखना पड़े, दिन-रात इनकी खूबसूरती का आनंद उठाने के लिए कहा जाए तो यह सब एकदम नीरस और उबाऊ हो जाएगा। सच तो यह है कि ऐसे मौके पर हमें अपना काम याद आएगा, क्योंकि यह एक जांचा-परखा तथ्य है कि हमें यानी दुनिया में यदि किसी चीज से सबसे ज्यादा संतुष्टि मिलती है तो वह लक्षित काम के पूरा होने पर मिलती है। काम खत्म होने पर हम जितने संतुष्ट और रोमांचित होते हैं, उतना और कभी भी नहीं होते। अगर एक महीने के लिए हमारे पास करने को कोई काम न रहे तो हममें से कई लोग पागल हो जाएंगे। क्योंकि काम तनाव का निदान चा भी है। यह एक थैरेपी भी है।

साइकोलॉजिस्ट मधुमिता सिंह कहती हैं, “”जब आप अपने मन का, योजनाबद्घ ढंग से लक्ष्य निर्धारित करके काम करते हैं और सफल रहते हैं तो यह किसी थैरेपी से कम नहीं होता। क्योंकि आप जैसा चाहते हैं, वैसा कर लेने की वजह से आप संतुष्ट होते हैं और संतुष्ट रहने के कारण रोमांचित भी होते हैं, जो खुशी प्रदान करता है।” विशेषज्ञों के मुताबिक, “”अगर आप अपने काम से खुशी हासिल करना चाहते हैं, रोमांचित होना चाहते हैं तो कुछ बातें सुनिश्र्चित करें। मसलन, जो भी काम करें, कोशिश करें कि अपने मन का करें। काम पूरा होने का दबाव तो हो, लेकिन दहशत न हो। काम व्यवस्थित ढंग से करें और उसका लक्ष्य निर्धारित कर लें। इस तरह व्यवस्थित ढंग से किया गया काम जब पूरा होगा तो वह भरपूर खुशी लाएगा।” कुछ और बातें भी महत्वपूर्ण होती हैं। मसलन, आपके काम का वातावरण अच्छा हो, खुशनुमा हो और निश्र्चित रूप से आपको अपने काम का मेहनताना भी इतना मिलता हो कि आप खुद को शोषित न महसूस करें, तभी काम आनन्द देता है।

अगर आपको काम से हासिल होने वाली खुशी का अंदाजा न लग रहा हो तो किसी ऐसे दिन की कल्पना करें, जब आप ऑफिस में होते हैं और काम की गहमागहमी होती है। आप पर टारगेट को पूरा करने का दबाव होता है और पूरा ऑफिस आपके काम के साथ किसी न किसी रूप में बंधा होता है। उस काम के पूरा होने पर जो खुशी महसूस होती है, उस खुशी की तुलना कभी भी उस दिन से नहीं की जा सकती, जिस दिन आप घर में होते हैं। ज्यादातर समय सोते रहते हैं या मिलने-जुलने वालों से दिनभर मिलते-जुलते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि छुट्टी एक खराब अनुभव है, मगर बिना कुछ किए संतुष्ट होने के मुकाबले कुछ करके संतुष्ट होने का भाव ही अलग होता है।

समीरा भारद्वाज ट्यूटर हैं। 10वीं और 12वीं के बच्चों को मैथेमैटिक्स पढ़ाती हैं। घर में आर्थिक समस्या नहीं है। इसलिए पति और ससुर के कहने पर उन्होंने कुछ महीनों के लिए ट्यूशन पढ़ाना बंद कर दिया। समीरा के मुताबिक, “”वो दिन बेहद बोरियत से भरे थे। मैं लक्ष्यहीन थी। न कुछ खाने का मन करता था और न किसी चीज से खुशी महसूस होती थी। मैं अपने आपको बेहद निरर्थक मानने लगी थी। जब मेरी हालत घर वालों ने देखी और महसूस की कि जब से मैंने काम छोड़ा है, बुझी-बुझी सी रहती हूं, तो घर वालों ने मुझे फिर काम यानी ट्यूशन पढ़ाने की इजाजत दे दी और मैंने महसूस किया कि इसके बाद मैं फिर से खुश रहने लगी हूँ।”

दरअसल, जिन लोगों का काम में मन नहीं लगता या काम से जी चुराने का दिल करता है, उसकी एक नहीं कई वजहें होती हैं। वह मन का काम नहीं कर रहे होते हैं। उनमें अपने काम को लेकर न सम्मान और न ही आत्मविश्र्वास का भाव होता है। इस वजह से वो काम से भागते हैं। काम में बेहद तनाव से गुजरना पड़ता है और यकीन मानें यह तनाव हमेशा नकारात्मक नहीं होता। यही तनाव हमें खुशी देता है। जैसे गरीबी के बिना अमीरी के सुख का एहसास नहीं किया जा सकता, उसी तरह से बिना मेहनत हासिल की गई कोई खुशी अच्छी नहीं लगती। कुछ हासिल करने की संतुष्टि सिर्फ और सिर्फ काम करने से हासिल होती है। यहां तक कि आपको 1 करोड़ रुपये पड़े मिल जाएं तो भी आपको उतनी खुशी महसूस नहीं होगी, जितनी कि मेहनत करके कमाए गये 1 लाख रुपये से महसूस होती है।

दुनियाभर में हुए तमाम अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि जैसे ही कोई व्यक्ति नौकरी से रिटायर होता है, अपने काम से मुक्त होता है, वह अचानक बूढ़ा, थका हुआ और कमजोर दिखने लगता है। जब तक व्यक्ति काम करता है, काम के दबाव में रहता है, तब तक उसे अपने बुढ़ापे के लिए न तो सोचने का वक्त होता है और न ही महसूसने का। नतीजतन, वह जवां दिल होता है। पर जैसे ही काम से वंचित होता है, बुढ़ापा उसे घेर लेता है। इसलिए काम को परेशानी नहीं जीवन की खुशियों का आधार मानना चाहिए।

– दि. नंदन

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