पूरी दुनिया में बढ़ रहा है फिटनेस का फीवर

Fitness Fiver growing all over worldसौ साल पहले हम फिटनेस को लेकर इस कदर चिंतित नहीं हुआ करते थे, जैसे कि आज हैं। उस समय दुनिया की आबादी का शारीरिक आकार अपने दायरे में था। हालांकि लोग उस समय फिट और स्वस्थ रहने के लिए वर्कआउट नहीं करते थे, बल्कि इसके लिए वह अपनी लाइफस्टाइल पर ही निर्भर रहते थे। समुद्रतटीय शहरों में चौड़े कंधे वाले मजदूर जहाजों में लदान करते या उन्हें उतारने का काम सूरज की किरणों के फूटने के पहले से शुरू करते और सूरज ढलने तक बिना किसी क्रोन या कंटेनर उठाने वाले दूसरे तकनीकी उपकरणों के करते रहते। इमारतों को बनाने वाले मजदूर, किसान, सड़क और रेल की पटरियां बिछाने वाले मजदूर दिन-रात मेहनत करते, पसीना बहाते इससे उनकी मसल्स मजबूत रहतीं।

जो लोग घरों में रहते थे, उनकी भी जीवन-शैली ऐसी थी, जो उन्हें स्वस्थ बनाये रखती थी। मसलन, साफ-सफाई, कपड़ों की धुलाई, खाना बनाना और घर के तमाम दूसरे काम। जिसमें ढोर-डंगरों की देखभाल से लेकर घर की देखभाल तक शामिल था। उन दिनों जीवन इतना तनाव से भरा नहीं था और न ही लोग इस कदर आरामपरस्त थे कि उन्हें अपने को फिट रखने के लिए चार किलो का ठोस मेटल उठाना पड़ता। वह पसीने बहाने का स्वर्णिम युग था और लोग बिना किसी अतिरिक्त कोशिश और ख्याल के अपनी इन मेहनतकश आदतों के चलते शेप में रहते थे। तब फिटनेस कोई समस्या नहीं थी और न ही कोई मुद्दा। उन दिनों घरों के अंदर के जिम नहीं थे, जिनमें बिना एक कदम चले सैकड़ों और मीलों कदम चलने की कवायद की जाती है। ट्रेडमिल के बारे में उन दिनों कोई कुछ नहीं जानता था।

लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। दुनिया में सबसे बड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्या इन दिनों फिटनेस की है। इस समस्या का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाले साहित्य में अपने आप से खुद को फिट रखने वाला साहित्य है। ऐसा हो भी क्यों न? आजकल दिन लेटे हुए शुरू होता है और बैठे हुए गुजर जाता है। कभी कार में, कभी ऑफिस में, कभी सोफे पर, कभी स्कूल में, कभी खाने की मेज पर। यहां तक कि अगर हम फिट रहने के लिए वर्कआउट करने जाते हैं तो वह भी अक्सर कार में बैठकर ही जाते हैं।

शब्दशः पुरानी ऊर्जा-संतुलन का समीकरण-कैलोरी। यह पूरी तरह से गड़बड़ा गया है। यही कारण है कि शरीर द्वारा ली जा रही अतिरिक्त कैलोरी आज स्वास्थ्य संबंधी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। दुनिया में जिस तरह मोटापा बढ़ रहा है खासकर विकसित दुनिया में, वह एक चिंता का विषय है। पिछले दो दशकों में तो यह चिंता लगातार खतरनाक दुश्र्चिंता में बदली है। यही वजह है कि आजकल सबसे ज्यादा स्वास्थ्य संबंधी विशेषज्ञों की बातें सुनी जा रही हैं या फिर हम कह सकते हैं कि लोग डरकर सुनने की कोशिश कर रहे हैं। यह अलग बात है कि उन पर अमल फिर भी नहीं कर रहे हैं। पारंपरिक साहित्य आज की तारीख में स्वास्थ्य संबंधी साहित्य से प्रतिस्पर्धा करके पिट रहा है। दैनिक अखबार, राजनीतिक पत्रिकाएं यहां तक कि तकनीकी और विशेषज्ञतापूर्ण जानकारियां देने वाली पत्रिकाएं भी आज स्वास्थ्य संबंधी साहित्य जरूर छापती हैं। शायद यह पाठकों द्वारा उनके प्रकाशकों पर बनाये गये दबाव का परिणाम है।

दरअसल इसकी वजह यह है कि हम ज्यादा खाते हैं और खाये हुए को बिल्कुल न के बराबर जलाते हैं। खाने में हम सिर्फ फैट या वसा ही नहीं बड़ी तादाद में कार्बोहाइड्रेट भी खा रहे हैं और कहना चाहिए हर चीज ढेर सारी तादाद में। लेकिन असली समस्या यह है कि खाये हुए को निकाल बिल्कुल नहीं रहे यानी जितना खा रहे हैं, उसके मुकाबले कसरत बिल्कुल नहीं कर रहे हैं। नतीजा यह है कि मोटापा हर गुजरते दिन के साथ महामारी में तब्दील होता जा रहा है। अमेरिका इसकी मिसाल है और कहना गलत न होगा कि अमेरिकी जीवन-शैली ही इस मोटापे के केन्द्र में है- ज्यादा खाना, कम से कम शारीरिक गतिविधियां करना।

दरअसल पिछले कुछ सालों से अल्कोहल, फास्टफूड और भरपूर खुराक लेना दुनिया के ज्यादातर समृद्ध शहरों की आदत में शुमार हो गया है। विकास का मतलब हो गया है शरीर को अधिक से अधिक शारीरिक गतिविधियों से दूर रखना। लोग अंगुलियां हिलाने का भी अब काम नहीं करना चाहते। हर काम या तो वह उच्च तकनीक के जिम्मे छोड़ना चाहते हैं या फिर अपना विकल्प ढूंढ़ रहे हैं, मसलन- रोबोट। जो उनके बदले में काम करे और इंसान सिर्फ और सिर्फ उपभोग करे। हम लगातार इस बात की अवहेलना कर रहे हैं या सचमुच भूल रहे हैं कि हमें शारीरिक गतिविधियों की नितांत आवश्यकता होती है।

यह एक गैर-जरूरी जीवन-शैली के अनुसरण करने का नतीजा है। लोग अपने आपको ज्यादा से ज्यादा सुख और सुविधाओं में रखकर फिर इसकी भरपाई फिटनेस के प्रति सजगता दिखाकर या महज कुछ देर फिट रहने के लिए पसीना बहाकर पूरी करना चाहते हैं। लेकिन यह समझ भी दुनिया को तब आयी है, जब ज्यादातर लोग मोटापे का शिकार होने लगे हैं यानी उनका वजन मानक वजन से काफी ज्यादा बढ़ चुका है और अब उनकी निषियता का स्तर यह है कि इसे सिर्फ बीमारी या भयावह समस्या ही कह सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अब दुनिया के ज्यादातर लोग इस बात को भलीभांति जान गये हैं कि मोटापे के खतरे क्या हैं। मोटापा डायबिटीज, हार्ट अटैक, हाई ब्लडप्रेशर, कुछ निश्र्चित तरह के कैंसर जैसी बीमारियों का वाहक है और इन सबसे बचने का उपाय दवाइयां नहीं, शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त रहना होता है।

सवाल है एक्सरसाइज या कसरत हमें किस तरह से सहायता करती है? इसकी शुरुआत से ही हृदय को आश्र्चर्यजनक फायदा होता है। लिपिड प्रोफाइल बेहतर होती है, हृदय संबंधी रोगों के खतरे कम होते हैं और हार्ट अटैक के बाद शरीर के सुचारु रूप से काम करने में भी यह जबरदस्त फायदा पहुंचाती है। कुल मिलाकर कसरत शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में, शरीर को स्वस्थ बनाये रखने में, विशेषकर हड्डियों को मजबूत रखने में फिर चाहे आप जवान हों या बूढ़े अथवा अधेड़, सबके लिए लाजवाब है। ऊपर बताये गये फायदों के अलावा कसरत ब्लड-प्रेशर को नियंत्रित करती है, हाइपरटेंशन को कम करती है, तनाव को घटाती है और एंग्जायटी से राहत देती है। इस सबके अलावा बुढ़ापे में कसरत शरीर के विभिन्न अंगों को सुचारु रूप से चलते रहने में मदद करती है। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि शारीरिक सिायता कैंसर रोकने में भी मददगार होती है। विशेषकर ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में। इसके अलावा हार्मोन के स्तर को भी यह प्रभावित करती है और आंत्र संबंधी समस्याओं से भी शारीरिक सिायता में निजात दिलाती है।

अगर पिछले कुछ सालों में मोटापे ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है तो इसीलिए क्योंकि मोटापे से होने वाली तमाम समस्याओं को हम स्पष्ट रूप से देख रहे हैं। हालांकि फिटनेस इतना आसान नहीं है और न ही एक बार फैल चुके शरीर को दोबारा से आकार में ला पाना ही आसान है। इसीलिए विशेषज्ञों का मानना है कि फिटनेस सिर्फ थुलथुलपन से निजात दिलाने का जरिया नहीं है। यह स्वस्थ रहने का साधन है। स्वास्थ्य संबंधी विशेषज्ञ फिटनेस को सात विभिन्न कारकों के रूप में देखते हैं। ये हैं- शारीरिक संरचना, हृदय तंत्र, शरीर की लोच-लचक, गतिशील रहने की क्षमता, मांसपेशियों की मजबूती, संतुलित तोंद और विभिन्न शारीरिक गतिविधियों में शरीर का सहजता से सहयोग।

हम इन मापदंडों पर कितना खरा उतरते हैं, हमारे फिट होने की कसौटी यही है। दो साल पहले अमेरिकी सरकार ने एक राष्ट्रीय फिटनेस सर्वे कराया था, स्कूली बच्चों पर जो कि पिछली सदी के अस्सी के दशक के शुरुआत में हुए एक सर्वे के बाद दूसरी बार हुआ सर्वे था। लेकिन इस सर्वे में सिर्फ शरीर के वजन और एक्सरसाइज हैबिट पर ही तथ्य इकट्ठे किए गये। मगर इतने सीमित सरोकार वाले सर्वे ने भी अमेरिकी सरकार की नींद उड़ा दी। इस सर्वे से जो निष्कर्ष निकल कर आये, वह कतई अच्छे नहीं थे बल्कि भयानक रूप से खतरनाक थे। बाद में इस सर्वे से प्रेरित होकर विश्र्व स्वास्थ्य संगठन ने एक वैश्र्विक फिटनेस तथ्यों को एकत्र करने का काम किया और इन तथ्यों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चौंका दिया।

भारत हो या पाकिस्तान, सिंगापुर हो या हांगकांग और फिर चाहे इंग्लैंड या अमेरिका ही क्यों न हो। जो लोग एक्सरसाइज नहीं करते, कसरतों से दूर रहते हैं, उसके लिए उनके पास एक ही बहाना होता है समय का अभाव। भारत जैसे देश में युवाओं और छात्रों के लिए एक और समस्या है। उन्हें पढ़ने और कॅरिअर के दबाव के कारण एक्सरसाइज़ का समय ही नहीं मिलता और माहौल भी नहीं। लेकिन एक खुशखबरी भी है। वह यह कि ग्लोबल हो रही टी.वी. कल्चर के कारण लोगों को मोटापे के नुकसान और खतरे शिद्दत से महसूस होने लगे हैं। फिर मीडिया का भी इस जनजागरण में महत्वपूर्ण योगदान है। बड़े पैमाने पर सभी तरह के मीडिया माध्यम फिट रहने के महत्व को रेखांकित करने लगे हैं। जिस कारण लोगों में स्वास्थ्य के प्रति चेतना बढ़ी है, वह जानने तो लगे हैं कि स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही का मतलब है अपनी जिंदगी से खिलवाड़। यह बात अलग है कि अभी ज्यादातर लोग इस सबसे मानसिक रूप से ही चिंतित हैं। इस चिंता को कसरत के रूप में अभी बड़े पैमाने पर नहीं ढाला गया।

फिटनेस की कमी के चलते स्वास्थ्य पर मंडराते संकट को देखते हुए, अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग ने आम अमेरिकियों के लिए एक जरूरी खान-पान संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस गाइडलाइन में भी नियमित रूप से एक्सरसाइज़ करने की अनुशंसा की गयी है। अमेरिकियों को इस गाइडलाइन में 30 मिनट प्रतिदिन मॉडरेट इंटेंसिटी वाली शारीरिक गतिविधि का सुझाव दिया गया है। यह सुझाव सप्ताह में सभी दिनों के लिए है। अगर आप अपना वजन नियंत्रित करना चाहते हैं तो इसके लिए सप्ताह के सभी दिन 30 मिनट की बजाए 60 मिनट एक्सरसाइज करनी होगी और अगर आप अपना वजन घटाना चाहते हैं तो आपको अपने नियमित एक्सरसाइज़ का समय प्रतिदिन 60 की बजाए 90 मिनट करना होगा। ये तीन श्रेणियां इस गाइडलाइन में बतायी गयी हैं।

अगर आपको यह बात कंफ्यूज़ करती है कि मॉडरेट क्या है तो नोट कर लें। हर दिन 3 से 3.5 मील यानी 5 से 6 किलोमीटर की तेज रफ्तार से वाकिंग मॉडरेट फिजिकल एक्टिविटी के दायरे में आती है। अगर इस वाकिंग के दौरान आप सहजता से बातचीत नहीं कर पाते और आपका दिल लगातार तेज-तेज धड़कने लगता है, तो इसका मतलब है कि आप मोटापे की तरफ बढ़ रहे हैं और जल्द ही सिर के ऊपर से पानी गुजर जायेगा। बहरहाल, पूरी दुनिया में मोटापा एक समस्या बन गया है और इस समस्या ने ही फिट रहने के महत्व को स्थापित किया है।

 

–     डॉ. बी.बी. गिरि

You must be logged in to post a comment Login