कंधमाल का धधकता दावानल

उड़ीसा के कंधमाल जिले में पिछले दिनों हुई विश्र्व हिंदू परिषद के नेता लक्ष्मणानन्द सरस्वती और उनके चार सहयोगियों की हत्या ने जिस सांप्रदायिक दावानल को जन्म दिया है, सरकार और उसकी मशीनरी उसे शांत और नियंत्रित कर पाने में असफल सिद्घ हो रही है। हत्या के शुरुआती दौर में सरकार की ओर से बयान आया था कि यह कुकृत्य नक्सलियों ने किया है। अलावा इसके एक नक्सली ग्रुप ने इसकी जिम्मेदारी भी आगे बढ़ कर ओढ़ ली थी। लेकिन संघ परिवार और उसके विहिप जैसे आनुषंगिक संगठनों के गले के नीचे यह बात नहीं उतरी। उनके निशाने पर फिलहाल वे ईसाई मिशनरियॉं हैं जो कथित तौर पर हिन्दू आदिवासियों को बहका-फुसला कर अथवा प्रलोभन देकर ईसाई बनाने की मुहिम चला रही हैं। संघ परिवार यह तो मानने को तैयार है कि हत्यारे नक्सली हो सकते हैं, लेकिन वे यह कत्तई नहीं कुबूल करते कि विहिप नेता लक्ष्मणानन्द से उनका कोई सीधे तौर पर झगड़ा या विरोध था। अतः वे यह ़जरूर मानते हैं कि नक्सलियों से सांठ-गांठ कर ईसाई मिशनरियों ने ही लक्ष्मणानन्द को ठिकाने लगवाया है। उनके इस तरह सोचने का आधार यह है कि कंधमाल में लक्ष्मणानन्द एक मुहिम के तहत मिशनरियों के इस तरह के इरादों का सिाय विरोध कर रहे थे और इसके चलते पिछले साल जून के महीने में भी उन पर जानलेवा आामण किया गया था।

अब यह कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि हत्या का कारण वह सच है जो सरकार बता रही है या वह सच है जो विहिप बता रही है। क्योंकि घटना के संबंध में अभी आधिकारिक तौर पर तहकीकात चल रही है। ़गौरतलब है कि सरकार में भाजपा के लोग भी शामिल हैं जिनकी ऩजदीकियॉं विहिप के साथ छिपी नहीं हैं। लेकिन सरकार में रहते हुए भी वे दंगाईयों की हिमायत करने से परहेज नहीं कर रहे। जहॉं तक सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी बीजू जनता दल और उसके मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का सवाल है, दंगाईयों के प्रति शुरुआती दौर में वे भी कोई कड़ा कदम इस वजह से नहीं उठा सके क्योंकि वे अपने भाजपा के सहयोगियों को नारा़ज करना नहीं चाहते थे। ले-देकर प्रदेश की सरकार तब जागी है जब दगाईयों ने सांप्रदायिकता की इस चिंगारी को ज्वाला का रूप दे दिया। वर्तमान में पूरे कंधमाल जिले में कर्फ्यू लागू है और दंगाईयों के खिलाफ शूट एट साइट का हुक्म भी दे दिया गया है। लेकिन यह तब हुआ है जब लोग डर कर अपना घर-बार छोड़ कर जंगल में पनाह लेने को मजबूर हुए हैं।

वैसे तो इस मामले में उड़ीसा का यह आदिवासी इलाका हमेशा से संवेदनशील रहा है, लेकिन सरकार ने कभी इसको प्राथमिकता के साथ सामान्य स्थिति में लाने का प्रयास नहीं किया। जबकि सांप्रदायिक हिंसा का सबसे वीभत्स रूप वर्षों पहले इसी इलाके में तब प्रकट हुआ था जब तथाकथित तौर पर विहिप के ही एक कार्यकर्त्ता ने ऑस्टेलियाई मिशनरी के ग्राहम स्टेंस को उसके बच्चों सहित बंद कार में जला कर मार डाला था। बाद में घटना के मुख्य आरोपी दारा सिंह को विहिप कार्यकर्त्ता मानने से विहिप नेतृत्व ने इन्कार कर दिया था। एक बार फिर उसी इलाके में वही पटकथा नये रूप में प्रस्तुत की गई जब नृशंसता पूर्वक एक अनाथालय को आग के हवाले कर दिया गया। इतना ही नहीं इस प्रयास में एक नन को जलती आग में बलपूर्वक ढकेल कर जिन्दा जला दिया गया। यह आग अब गॉंव-गॉंव फैल चुकी है और हिन्दू तथा ईसाई आदिवासी एक-दूसरे के जान के दुश्मन बन गये हैं। बर्बर अराजकता का यह दौर बदस्तूर जारी है और कर्फ्यू आयद करने के बावजूद सरकार दंगाईयों के हौसलों को नियंत्रित नहीं कर पा रही है।

शांति-व्यवस्था की स्थिति इस कदर संगीन हो चुकी है कि प्रांतीय सरकार ने केन्द्रीय सरकार के नुमाइन्दे और गृह-राज्यमंत्री श्री प्रकाश जायसवाल को भी संवेदनशील क्षेत्र का दौरा करने से रोक दिया। यह हो सकता है कि देर-सबेर कुछ और जान-माल का नुकसान हो जाने के बाद स्थिति सामान्य हो जाय। लेकिन इस तरह की घटनायें जिन बीजों से अंकुरित होती हैं, उन बीजों को आ़िखर कैसे मिटाया जा सकेगा। यह कोई नहीं कह सकता कि ईसाई मिशनरियॉं दूध की धुली हैं और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष वे उन कार्यों में लिप्त नहीं हैं जिनका आरोप उन पर लगाया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि अगर वे धर्मांतरण का खेल नाजाय़ज तरीके से खेल रही हैं तो क्या उसके प्रतिकार का एकमात्र रास्ता वही है जो कथित तौर पर हिन्दूवादी संगठन प्रदर्शित कर रहे हैं? यह सही है कि ईसाई मिशनरियॉं इस तरह का घिनौना कृत्य बहुत दिनों से करती आ रही हैं और कई राज्यों में इसके खिलाफ कानून पास हो जाने के बावजूद छिपे तौर पर उनका प्रयास निरंतर जारी है। लेकिन उनका विरोध उस रूप में कत्तई नहीं होना चाहिए जिस रूप में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद देखने में आया है। हत्या, तोड़-फोड़, आगजनी और लूटपाट की संस्कृति से हिन्दुत्व का कभी कोई नाता नहीं रहा है। अगर इस संस्कृति को हिन्दुत्व के साथ जोड़ा गया तो शायद ही कोई हिन्दू गर्व के साथ अपने को हिन्दू कह सके। ाूरता और नृशंसता सिर्फ हिन्दुत्व ही नहीं, मानवीय आचरण के भी विरुद्घ है।

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