दस लाख से जबानी गुणा

बाबा ने मुझे बुलाते ही एक पहेली सुनाई, “मेरे जीवन को घंटों में मापा जा सकता है। मैं नष्ट होकर ही सेवा करती हूं। जब पतली होती हूं तो मेरी रफ्तार ते़ज होती है। जब मोटी होती हूं, तो रफ्तार धीमी होती है। लेकिन हवा से मेरी हमेशा की दुश्मनी है। मैं क्या हूं?’

“यह तो बहुत आसान पहेली है।’

“तो जवाब दो।’

“मोमबत्ती।’

“शाबाश।’

“लेकिन बाबा, आज आप सवाल से पहेली की ओर क्यों आ गये?’

“सवाल भी करेंगे।’

“तो यह भूमिका थी?’

“कुछ-कुछ।’

“चलिए, सवाल कीजिए। आज मैं बहुत तैयारी से हूं।’

“अच्छा! अभी परख लेते हैं।’

“जी, मालूम कीजिए।’

“एक ची़ज का भार 89.4 ग्राम है। अगर वह ची़ज हमारे पास दस लाख है, तो उनका वजन टन में कितना होगा?’

“यह तो काग़ज-कलम लाकर कैलकुलेट करना होगा।’

“नहीं।’

“क्यों?’

“सवाल की शर्त है कि ़जबानी ही इसका हल निकाला जाए।’

“लेकिन ऐसा करना तो संभव नहीं है।’

“तुम तो बहुत तैयारी से आयी थीं।’

“लेकिन इतने मुश्किल सवाल का अंदाजा तो नहीं था।’

“बहुत जल्दी हिम्मत हार जाती हो।’

“आप ही बताएं, मेरे बस की नहीं है।’

“हार मान ली?’

“जी।’

“89.4 ग्राम वाली ची़ज के अगर दस लाख पीस लिए जाएंगे, तो टन में उनका भार 89.4 टन होगा।’

“यह कैसे?’

“89.4 ग्राम को दस लाख से गुणा करना है।’

“यानी 100र्0े1000 से।’

“हां, और यह काम दो चरणों में किया जाएगा।’

“पहला?’

“89.4 ग्राम – 1000 – 89.4 किलोग्राम क्योंकि किलोग्राम ग्राम से 1000 गुना अधिक होता है।’

“दूसरा चरण?’

“89.4 किग्रा – 1000 –  89.4 टन क्योंकि एक टन एक किलोग्राम से 1000 गुना अधिक होता है। इसलिए जो वजन हम तलाश रहे हैं वह 89.4 टन होगा।’

“यह तो बहुत आसान था।’

“मैं तो तुम से कह ही रहा था।’

“लेकिन इसमें जो टिक छिपी थी, वह मैं नहीं समझ पायी।’

“दिमाग पर जोर देना था न।’

“आइंदा ध्यान रखूंगी।’

“बेस्ट ऑफ लक फॉर नेक्स्ट टाइम।’

– कुंवर चांद खां

 

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