यह जुमला सुबह अक्सर घरों में सुनाई दे जाएगा। आज बच्चे ने फिर से बिस्तर गीला कर दिया। सुबह ही नहीं, कभी-कभी तो आधी रात के बाद बच्चे को जगाकर उल्टा-सीधा कहा जाता है। जैसे- अब काफी बड़े हो गए हों, शर्म भी नहीं आती। ये ऐसे नहीं मानेगा इसका बिस्तर ही जमीन पर या बाथरूम में लगा दो, कपड़े उतार कर नंगा खड़ा कर दो। यह तो बाहर कहीं ले जाने लायक भी नहीं है आदि। इतना ही नहीं, ठण्डे मौसम में उसे निर्वस्त्र कर पिटाई भी कर दी जाती है। कभी-कभी तो हद पार कर उसे रात में ही नहला दिया जाता है। बच्चा डरा-सहमा हुआ मां-बाप की अदालत में दया की भीख मांगने की मुद्रा में चुपचाप खड़ा रहता है। उसके कोमल मस्तिष्क पर अनेक भाव आते-जाते रहते हैं, ऐसे में उसे दुनिया में कोई भी अपना नजर आता प्रतीत नहीं होता तथा वह अपने को नितान्त अकेला महसूस करता है।
पिटाई होने पर पहले से डरा हुआ बार-बार क्षमा याचना कर “अब नहीं करूंगा’ का करुणगान भी करता जाता है, लेकिन मां-पिता पर उस गान का जरा भी प्रभाव नहीं पड़ता और उनका धपूर्ण व्यवहार लगातार चलता रहता है।
आओ जानें बच्चे से ऐसा शर्मिन्दगी वाला कार्य क्यों हो जाता है?
यह सब कुछ बच्चा जान-बूझकर नहीं करता, ऐसा अंजाने में ही हो जाता है। वह मन से यही प्रयास करता है कि उसकी सुबह औरों की भांति खुशनुमा हो, लेकिन फिर भी वही झिड़कियों से ही प्रारम्भ होती है सुबह अर्थात् “बैड मार्निंग’।
मूत्र थैली (यूरीनरी ब्लैडर) में पेशाब की निश्र्चित मात्रा सदैव बनी रहती है, उससे अधिक मात्रा होने पर उसे उत्सर्जित करने हेतु तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) के माध्यम से मस्तिष्क को सूचना दी जाती है। तत्पश्र्चात मूत्र त्यागा जाता है। यह िाया दिन-रात चलती रहती है। परिस्थितिवश कभी रात में, कभी दिन में त्यागने की गिनती कम व अधिक होती रहती है। सामान्यतः रात में या दिन में सोते समय इच्छा होने पर आंख खुल जाती है तो हम पेशाब करने चले जाते हैं, लेकिन कुछ लोगों में विशेषकर बच्चों में होश संभालने से पूर्व या उसके पश्र्चात मस्तिष्क द्वारा मूत्र थैली तक सूचना न पहुंचने के कारण बिस्तर गीला करने की आदत बीमारी का रूप ले लेती है। ऐसा करने से पूर्व वे जाग नहीं पाते।
कई बार तो पहली नींद पर, कभी एक बार जागने पर, कभी मध्य रात्रि से पहले, कभी मध्य रात्रि के बाद, कभी स्वप्न सहित तो कभी बिना स्वप्न के भी पेशाब निकल जाता है। स्वप्नग्रसित वह देखता है कि घोर दोपहरी हो रही है। वह बाथरूम में पेशाब कर रहा है। उत्तेजित, भयानक, आग, पानी बहना आदि स्वप्न देखने से भी ऐसा सम्भव हो सकता है।
कारण
- माता-पिता या पारिवारिक सदस्यों का बच्चे के प्रति नकारात्मक, मार-पीट या प्रताड़ना वाला व्यवहार अहम् भूमिका निभाता है।
- पेट में कीड़े, जो सोते समय मूत्र थैली को चिड़चिड़ा देते हैं।
- ठण्ड व नमी (बरसात) का मौसम
- गर्म मौसम में भी कूलर या ए सी कमरे में सोने पर।
- गर्भवती महिलाओं में गर्भाशय बढ़ने से मूत्र थैली पर दबाव से भी सम्भव है।
- बुजुर्गों में पौरुष ग्रन्थि (प्रौस्टेट ग्लैण्ड) के बढ़ने व उसकी मूत्रीय थैली के दबाव से भी अनायास मूत्र निकल सकता है।
- किसी बीमारी या अत्यधिक स्राव से उत्पन्न कमजोरी भी कारण हो सकती है।
- थकान के कारण आई गहरी निद्रा से भी सम्भव है।
- किसी कारण से कई रातों में जागने के पश्र्चात बेहोशी जैसी नींद आने पर भी बिस्तर गीला हो सकता है।
- तेज ज्वर जैसे- म्यादी, खसरा आदि में भी मानसिक स्थिति सही न होना अनायास मूत्र उत्सर्जन का कारण बन सकता है।
ऐसे में क्या करें
इस समस्या में मनोवैज्ञानिक पद्घति (साइकोथैरेपी) काफी सिद्घ हो सकती है। ऐसा करने से पूर्व स्वयं अपने को संभालकर तैयार करना होगा। यह भी मन में विचार पैदा करना होगा कि यह लाइलाज नहीं। थोड़ा शान्त, सहयोगी, आत्मविश्र्वास व सकारात्मक व्यवहार सफलता दिला सकता है। इससे सम्बन्धित वार्ता किसी बाहर वाले या अविश्र्वसनीय व्यक्ति से न करें। अन्य हमउम्र वाले बच्चों के सामने तो बिलकुल भी नहीं। बच्चे का हौसला अफजाई कर उसके साथ मित्रवत व्यवहार करें। स्वयं को यह दृढ़ निश्र्चय हो जाना चाहिए कि बच्चा स्वयं जान-बूझकर नहीं कर रहा है। ऐसा होने पर उसे भी ग्लानि होती है। ऐसे में आप उसे प्रताड़ित करेंगे तो समस्या का “नकारात्मक बिन्दु’ ही पोषित होगा। ऐसा करने से उसकी व्याधि में बढ़ोतरी ही होगी। सोने से पूर्व प्रेरणादायक वार्ता करें, न कि उसे चेतावनी देकर सुलाएं। उससे क्रोधपूर्ण बात न कहें। जैसे- तुम्हें अंधकार युक्त कोठरी में बन्द कर देंगे, कल तुम्हारे स्कूल जाकर मैडम तथा दोस्तों को बता देंगे, तुमको घर से बाहर निकाल देंगे, डॉक्टर के पास जाकर इंजेक्शन लगवाएंगे, झोली वाले बाबा से पकड़वाएंगे आदि।
ऐसे व्यवहार से हो सकता है वह रातभर जागता ही रहे। उसकी नींद पूरी न होने से अनेक शारीरिक व मानसिक विकार पैदा हो सकते हैं। बार-बार दिए तानों से अपने को उपेक्षित व अकेला अनुभव कर वह कोई अनुचित कदम उठाने को मजबूर हो सकता है।
दिन में उसके साथ शान्त व्यवहार में काउन्सिलिंग करें। पूछें कोई स्वप्न तो नहीं देखता। यदि हां तो वह कैसा होता है? हो सकता है टी.वी. पर देखे भयानक सीरियल व पिक्चर भी इसका कारण हों। ऐसी स्थिति में उसे टी.वी. देखने पर सख्ती से पाबन्दी न लगाएं, बल्कि ऐसी पिक्चर व सीरियल की जगह मनोरंजक व ज्ञानवर्धक पिक्चर आदि देखने के लिए बिना दबाव से प्रेरित करें, अवश्य सफलता मिलेगी।
यदि कीड़ों के लक्षण लगें तो चिकित्सक से सम्पर्क करें। गर्भवती महिलाओं को समझाएं तथा कारण भी बताएं। उन्हें यह भी बताएं कि समस्या अस्थाई है। प्रसव पश्र्चात् स्वयं ही ठीक हो जाएगी। बुजुर्ग व्यक्तियों को भी इसका सामना करने की प्रेरणा कारण सहित दें। उधर, पौरुष ग्रंथी का भी इलाज कराएं। उन्हें यह भी जानकारी दें कि पौरुष ग्रंथी ठीक होने पर बिस्तर भी गीला नहीं होगा।
कमजोरी तथा थकान के कारणों को ढूंढ़ें। कारण निवारण से कमजोरी-थकान तो दूर होगी ही, बिस्तर भी सूखा रहेगा “एक तीर से दो शिकार’।
ऐसे बच्चों को कूलर व ए.सी. कमरे में सोने से कारण सहित मना कर देना चाहिए।
ठण्ड तथा बरसाती मौसम में बच्चे को पहले से ही सजग कर कारण सहित बातचीत कर प्रेरित करें।
सोने से पूर्व पेय पदार्थ जैसे – जल, साफ्ट डिंक्स, लस्सी, नीबू पानी आदि के सेवन को प्यार से मना करें।
बिस्तर सूखा रखने के लिए बिस्तर पर प्लास्टिक या रबड़ सीट न बिछाएं। हां इससे बिस्तर तो बच जाएगा, लेकिन बच्चे अन्य विकारों का शिकार बन जाएंगे। बच्चे के स्वास्थ्य के सामने बिस्तर की कोई कीमत नहीं।
गीले-बदबूदार कपड़ों को सुबह ही बच्चे को धोने के लिए विवश न करें। हो सकता है अपनी गलती मानकर भय के कारण वे ऐसा करें, लेकिन समझाकर मना कर दें। उसके सामने ऐसे कपड़े धोते समय भी ऐसा प्रदर्शन न करें कि जिससे उसे और अधिक दुख हो।
होम्योपैथी में ऐसी समस्या का समाधान है। होम्योपैथ से उपरोक्त कारणों व लक्षणों सहित काउन्सिलिंग कर स्थाई इलाज कराया जा सकता है। ऐसा कर बच्चों-बड़ों की बैड-मॉर्निंग, गुड-मार्निंग बन सकती है।
– डॉ. एस. के. गौड़
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