सावन अति मनभावन

वर्षा की रिमझिम फुहार हरी चूनर ओढ़े धरती पर पड़ती है तो लगता है कि इस पर किसी ने मोती जड़ दिए हैं। बागों में पक्षियों का कलरव, आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल मन में नयी उमंग पैदा करते हैं। बाग-बगीचों, चौबारों और घरों में झूले पड़ जाते हैं। वातावरण में वर्षा, संयोग-वियोग, हंसी-मजाक भरे गीत […]

सागर कय्यामी की टिप्पणी

ऐसी कोई मिसाल जमाने ने पायी हो हिन्दू के घर में आग खुदा ने लगाई हो बस्ती किसी की राम ने आकर जलाई हो नानक ने राह सिर्फ सिखों को दिखाई हो राम व रहीम व नानक व ईसा तो नर्म हैं चमचों को देखिये तो पतीली से गर्म हैं साम्प्रदायिक दृष्टि से देश को […]

मेघों के बरसने की कामना

बरसो मेघ, जल बरसो, इतना बरसो तुम जितने में मौसम लहराए, उतना बरसो तुम बरसो प्यारे धान-पात में, बरसो अंगारों में फूला नहीं समाए सावन मन में दर्पण में मेघों के बरसने की कामना लिए किसानों की आँखें आसमान की ओर टिकी हुई हैं। सुबह-शाम वे बादलों की ओर ताके जा रहे हैं कि कब […]

घनश्याम अग्रवाल की कविता

आ़जादी की वर्षगांठ मनाने की तैयारियॉं चल रही हैं। अब इसमें कितना जोर और कितना शोर है, यह नहीं कहा जा सकता। कुछ कार्यालयों में तिरंगे फहराए जाएँगे। कहीं लाउड स्पीकर से वतन की पुकार के गीतों का शोर होगा, तो कहीं भाषण होंगे, लेकिन सही अर्थों में आ़जादी की उपलब्धियों एवं देश की मौजूदा […]

रूमानी ग़जल

रंजिश ही सही दिल को दुःखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ कुछ तो मेरे पिन्दारे मुहब्बत का भरम रख तू भी कभी मुझ को मनाने के लिए आ किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से खफ़ा है तो जमाने के लिए आ किसी भी […]

खेले जइबै सावन में कजरिया

छप्पर की मुंडेर से गिरती पानी की टप-टप बूंदें, छत के पनालों से बहती पानी की मोटी धार, अपने सीने में घुटनों पानी समेट लहलहाते खेत, सौन्दर्य बिखेरती- इठलाती नदियॉं, ताल-तलैयों में अठखेलियॉं करते बच्चे और पानी में गोते लगाते मस्त मवेशी। सच में आ गया है सावन झूम के। ज्येष्ठ-आषाढ़ की तपती धरती पर […]

आज कविता की ज़रूरत किसको है

खाली व़क्त में फटी-पुरानी कविताओं की मरम्मत करते हुए कवि क्या सोचता है? यही कि आज कविता की ज़रूरत किसको है। वह कुछ देर अपने बच्चों के लिए पिता की भूमिका निभाते हुए सरल शब्दों की खोज करता है। वह कभी अपने पिता की ऩकल था तो कभी अपने पुरखों की परछाई और कभी अपनी […]

फिर उसने मुड़कर नहीं देखा

विकास की गति को कुछ शब्दों में बताने के लिए अकसर यह कहा जाता है कि …फिर उसने मुड़कर नहीं देखा, लेकिन कवि एक ऐसा जीव है, जिसका रचनात्मक संसार पीछे मुड़कर देखने से ही तामीर होता है। इसीलिए वह भूत को वर्तमान से जोड़ने का काम करता है। जब वह वर्तमान से भूत की […]

तरबूज

आ गई गर्मी, देखो भैया, सूख गये सब ताल-तलैया। लू चल रही है तेज, सूख गये हरे-भरे खेत, पर एक खुशी खूब आई, गर्मी अब तरबूज लाई। मोटे, गोल, हरे-हरे लाल-लाल रस भरे। मुन्ना राजा खा रहा है, मुन्नी को भी भा रहा है। नहीं दांतों की दादी को फिा, करती तरबूज खाने का जिा। […]

उफ! ये गर्मी

उफ! ये गर्मी सब पर भारी, दहक उठी है धरती सारी। गर्म हवा ने तीर चलाए, हरे-भरे पेड़ मुरझाए। अकड़ रहे हैं सूरज राजा, ठंडी हवा का बज गया बाजा। बड़ी तेज आती है धूप, गुस्साया सा उसका रूप। नदियों में कम हो गया पानी, तालों पर दिखती वीरानी। नलों से पानी न आता, पानी […]