अंग्रेजी का भूत

नेेहा के बच्चे कॉन्वेन्ट स्कूल में पढ़ते थे। वह बच्चों को लेने के लिए स्कूल जाया करती थी। बच्चों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने में भाषायी समस्या न हो, इसलिए वह उन्हें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा रही थी। हमारे देश में अंग्रेजी की अहमियत अंग्रेजों के देश से भी ज्यादा है। घर में वह बच्चों के साथ मातृभाषा में ही बातचीत करती थी ताकि बच्चे अपनी भाषा व अपने संस्कारों से जुड़े रहें।

एक दिन वह स्कूल पहुंची। वहां दो मारवाड़ी भाइयों को आपस में बात करते हुए देखा। एक ने दूसरे के बच्चों से मारवाड़ी में पूछा, “”बेटा, आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है?” बच्चे के जवाब देने से पहले ही उसके पिता ने बड़े गर्व से कहा, “”इन्हें मारवाड़ी नहीं आती है।”

– सरिता सुराणा “जैन’

 

स्वतंत्रता समारोह

15 अगस्त का दिन था। जी हां, इस दिन प्रत्येक भारतवासी का मन एक मीठी खुशी से भर जाता है। एक अधिकारी के होनहार बच्चे भी खुशी-खुशी समारोह में भाग लेने के लिए तैयार हो रहे थे। उनके हमउम्र घरेलू नौकर प्रेम ने कहा, “”बीबी जी, मुझे भी स्वतंत्रता-समारोह देखने के लिए छुट्टी दे दो न।”

“”नहीं, आज घर में काम बहुत है।” स्वतंत्र भारत का परतंत्र बच्चा विवशता के आंसू पीकर रह गया। अधिकारी के बेटे ने देश के बाल श्रमिकों की दशा पर एक करुण कविता पढ़ी और उस अधिकारी ने भाषण देते हुए कहा, “”साथियों, मजदूरों की आजादी के बिना हमारी आजादी अधूरी है। बच्चे देश का धन होते हैं। इनके बलिष्ठ कंधे ही देश की पतवार संभाल सकेंगे। हमें इनकी कोमल भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए।” इतना कहते ही उस अधिकारी का कंठ अवरुद्घ हो गया। उधर, प्रेम 15 अगस्त के अवसर पर आने वाले अतिथियों की सेवा में फंसा बैठा था।

– “इन्द्रा बंसल’

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