उधेड़-बुन

ज्ञानवान मनुष्य अपने मन में सोचता है कि अब मैं निरंतर योग का अभ्यास करूंगा, अब मैं खूब दिल लगाकर ईश्र्वरीय सेवा करूंगा अर्थात् अन्य मनुष्यों को भी ईश्र्वरीय ज्ञान तथा योग की शिक्षा देकर शान्ति का रास्ता दिखाऊँगा, अब मैं अमुक-अमुक दैवी-गुण धारण करूंगा, बस अब तो मैं बहुत मधुर स्वभाव वाला बनूंगा; परन्तु माया बिल्ली आकर उसकी यह सारी बुनायी उधेड़ देती है। वह अपने मन में अपने भविष्य के सुन्दर विचारों को बुनने में लगा रहता है, परन्तु माया मौका पाकर उसे उधेड़ देती है।

इसी प्रकार, इस उधेड़-बुन के परिणाम स्वरूप मनुष्य के बहुत से पुरुषार्थ पर पानी फिर जाता है। अतः ज्ञानवान मनुष्य को चाहिए कि वह पुरुषार्थ करते हुए माया बिल्ली से सतर्क रहे ताकि वह उसकी सारी बुनी बुनाई को उधेड़ न जाय। याद रहे कि जैसे कांटे को निकालने के लिये सुई का प्रयोग करना पड़ता है, वैसे ही दूषित संकल्पों को निकालने के लिये शुद्ध संकल्पों को ही प्रयोग में लाना पड़ता है। अच्छे विचार ही मनुष्य के मन की बुराई को हटाने का साधन हैं।

– ब्रह्म कुमारी

You must be logged in to post a comment Login