ऋषि-मुनियों की पुण्यधरा है ऋषिकेश

rishikeshचारों ओर फैली हुई हरियाली, अपरिमित सघन वन-राशि एवं स्वच्छ दूधिया जल, गहरी नीलिमा के साथ निर्मलता का अहसास कराती पुण्यमयी पवित्र सलिला भागीरथी गंगा तथा उसके चारों ओर फैली हुई अलौकिक सुषमा पुंज से आच्छादित शिवालिक पर्वत श्रेणियां सुरम्य वातावरण की सृष्टि कर पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकृष्ट करती हैं। यहीं स्थित है ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि ऋषिकेश। हरिद्वार से उत्तर दिशा में मात्र 24 किलोमीटर दूर ऋषिकेश उत्तराखण्ड की यात्रा का प्रवेश द्वार है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जाने वाले तीर्थ-यात्री इसी रास्ते से जाते हैं। हरिद्वार में ऋषिकेश के लिए हर आधे घण्टे में बस-सेवा उपलब्ध रहती है, साथ ही रेल द्वारा भी ऋषिकेश के लिए फेरे लगते हैं।

रैम्य नामक महर्षि ने अपनी इन्द्रियों को वश में करने हेतु यहां घोर तपस्या की थी, ऐसा माना जाता है। इसी कारण इस स्थान का नाम “ऋषिकेश’ पड़ा।

स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने आम्र शाखा पर बैठे हुए रैम्य ऋषि को दर्शन दिए थे। उस समय भगवान के भार से आम्र शाखा कुबड़ी हो गई थी, इस कारण इस स्थान का नाम “कुब्जाभ्रक’ भी पड़ा। ऋषिकेश में भगवान राम तथा उनके भाई लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न ने भी तपस्या की थी।

सभी सम्प्रदायों के साधुओं का यहां जमावड़ा देखा जा सकता है। इसके अलावा अनेक विदेशी अपने मन की शान्ति के लिए ऋषिकेश में साधनारत देखे जा सकते हैं। कुल मिलाकर ऋषिकेश वह स्थान है, जहां शांति की खोज में तथा पर्वतीय क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाने के लिए हजारों-हजारों लोग प्रतिवर्ष आते हैं।

ऋषिकेश को हम तीन भागों में बांट सकते हैं। उसका कारण प्रशासकीय इकाई है, लेकिन इसको तीन भागों में विभक्त करने पर भी इसका धार्मिक आस्तत्व प्रभावित नहीं होता और न ही पर्यटकीय महत्व कम होता है। ऋषिकेश का एक भाग देहरादून जिले में आता है और दूसरा टिहरी गढ़वाल में। ऋषिकेश का यह भाग “मुनी की रेती’ के नाम से जाना जाता है, जो चन्द्रभागा नदी के पार वाला क्षेत्र है। राम झूले के उस पार स्वर्गाश्रम, गीता भवन, परमार्थ निकेतन वाला क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल के प्रशासन क्षेत्र में आता है। अनेक मंदिरों, मठों, आश्रमों का नगर ऋषिकेश एक प्रकार से ज्ञान-गंगा का प्रवाह है। गीता भवन वाला क्षेत्र तो आठों पहर भक्ति रस में डूबा रहता है। प्रवचनों, सत्संग के प्रति अगाध स्नेह रखने वाले भक्तों का सैलाब गंगा के उस पार देखा जा सकता है।

ऋषिकेश के कुछ दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं

नीलकण्ठ महादेव लक्ष्मण झूले से लगभग आठ किलोमीटर दूर भगवान शंकर का यह प्रसिद्ध मंदिर है, जहां पैदल व वाहन इत्यादि साधनों के द्वारा जाया जा सकता है। मणिकूट पर्वत पर लगभग 1500 वर्गफीट की ऊंचाई पर यह मंदिर अवस्थित है। सावन एवं भादो में यहां भक्तगणों का तांता लगा रहता है। अब तो मंदिर के पास धर्मशालाएं भी हैं, जहां यात्री चाहें तो रात्रि में विश्राम कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर लगभग तीन सौ वर्ष पुराना है। पहले यहां साधु-महात्मा ही निवास करते थे, बाद में प्रसिद्धि के कारण जनसाधारण भी इसकी ओर उन्मुख हुआ।

लक्ष्मण झूला ऋषिकेश से 5 किलोमीटर आगे यह स्थान अवस्थित है। यहां एक झूला है, जो लोहे के मोटे रस्सों से बंधा है। पुलनुमा यह झूला, गंगा के एक छोर से दूसरे छोर तक ले जाता है। पूर्व में यह झूला लक्ष्मण जी द्वारा निर्मित था। कालान्तर में अर्थात सन् 1939 में इसे नया स्वरूप दिया गया। लोहे के मजबूत रस्सों, एंगलों, चद्दरों आदि में बंधा व कसा हुआ यह झूला (पुल) गंगा के प्रवाह से 70 फुट ऊंचा अवस्थित है। झूले (पुल) पर जब लोग चलते हैं तो यह झूलता हुआ प्रतीत होता है।

भरत मंदिर नगर के बीचोंबीच बाजार के एक किनारे पर यह मंदिर अवस्थित है, जो भगवान राम के भाई भरत को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भरत ने यहां तपस्या की थी। मंदिर बौद्ध शैली में बनाया गया है। यह मंदिर ऋषिकेश के प्राचीन मंदिरों में से एक है।

त्रिवेणी घाट भरत मंदिर के आगे बाजार के अन्त में यह घाट अवस्थित है। यह गंगा के तट पर स्थित है। कुब्जाभ्रक नाम से यह स्थान प्रसिद्ध है। यहां पर्वतों के तीनों स्रोतों से जल आकर कुण्ड में इकट्ठा होता है। धार्मिक मान्यतानुसार यह जल गंगा, यमुना, सरस्वती नदियों के साक्षात स्वरूप के रूप में अवस्थित है। भक्तगण बड़ी श्रद्धा से यहां स्नान करते हैं। ऋषिकेश के सभी घाटों में इस घाट का अधिक महत्व है।

राम झूला शिवानंद आश्रम के सामने एक झूलेनुमा पुल बना हुआ है, जिसे राम झूले के नाम से जानते हैं। स्वर्गाश्रम क्षेत्र में जाने हेतु यह गंगा के उस पार से इस पार ले जाने वाला शॉर्टकट रास्ता है। यह पुल भार भी झेल सकता है। दुपहिया वाहन तो इसके ऊपर से अक्सर निकलते देखे जा सकते हैं। जब हम इसके ऊपर चलते हैं तो यह हमें झूलता हुआ महसूस होता है। हिचकोले खाते हुए, इस झूले के ऊपर से नीचे बह रही गंगा का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।

परमार्थ निकेतन- गीता भवन के पास यह स्थित है। आश्रम परिसर लम्बा-चौड़ा तथा मनोहारी है। इसके भीतर प्रवेश करते ही बायीं ओर बड़ी सुन्दर मूर्तियां पौराणिक कथाओं के आधार पर बनाई गई हैं। दायीं ओर देवताओं की विशाल मूर्तियों का परावर्तित प्रतिबिम्ब उनके चारों ओर लगे दर्पणों में देखकर मन हर्षित हो उठता है। इस आश्रम में भी प्रवचनों का दौर चलता रहता है। संस्कृत के माध्यम से इस आश्रम द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती है।

गीता भवन भक्ति-भाव का यह सागर सन् 1944 में अवतीर्ण हुआ। ज्ञान की गंगा का यहां प्रवाह आठों पहर चलता रहता है। यहां भक्तगणों के लिए निःशुल्क ठहरने की सुविधा है। कमरे के भीतर  बिछावन, बर्तन, बिजली, पानी सब भक्तगणों के लिए निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। महीनों रहने वाले भक्तगण चाहें तो अपना खाना पकाने की व्यवस्था स्वयं कर सकते हैं। इसके लिए उचित दर पर गैस सिलेण्डर इत्यादि भवन द्वारा मुहैया कराया जाता है। यदि भक्तगण बनी-बनाई रसोई खाना चाहें तो गीता भवन संख्या एक व तीन में यह व्यवस्था भी सुलभ है। बिना लाभ-हानि के मूल्य पर यहां भक्तगणों को भोजन उपलब्ध कराया जाता है। इसके अलावा गीता भवन की ओर से मिठाई व नमकीन की दुकान भी बिना लाभ-हानि के संचालित की जा रही है। लाखों लोग प्रतिवर्ष यहां पुण्य कमाने की दृष्टि से आते हैं। गीता भवन में रहने के लिए भक्तगणों से सात्विकता की अपेक्षा रखी गई है। ऐसा कौन होगा, जो इस ज्ञान के सागर में डुबकी लगाना नहीं चाहेगा?

ऋषिकेश में अनेक मंदिर व मठ हैं। सबका वर्णन किया जाना यहा संभव नहीं है। मगर उक्त स्थानों के अलावा सत्यनारायण मंदिर, स्वर्गाश्रम, शिवानन्द आश्रम, काली कमलीवाला पंचायती क्षेत्र देखने योग्य है, जिनकी जीवन पद्धति, सिद्धांत, जनकल्याण का भाव, भक्ति प्रवाह अतुलनीय है। ऋषिकेश कुल मिलाकर आत्म चेतना का केन्द्र है, जो न केवल ज्ञान और भक्ति का अलख जगाता है बल्कि भविष्य का पथ प्रदर्शक भी है।

चारों ओर फैली हुई हरियाली, अपरिमित सघन वन-राशि एवं स्वच्छ दूधिया जल, गहरी नीलिमा के साथ निर्मलता का अहसास कराती पुण्यमयी पवित्र सलिला भागीरथी गंगा तथा उसके चारों ओर फैली हुई अलौकिक सुषमा पुंज से आच्छादित शिवालिक पर्वत श्रेणियां सुरम्य वातावरण की सृष्टि कर पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकृष्ट करती हैं। यहीं स्थित है ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि ऋषिकेश। हरिद्वार से उत्तर दिशा में मात्र 24 किलोमीटर दूर ऋषिकेश उत्तराखण्ड की यात्रा का प्रवेश द्वार है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जाने वाले तीर्थ-यात्री इसी रास्ते से जाते हैं। हरिद्वार में ऋषिकेश के लिए हर आधे घण्टे में बस-सेवा उपलब्ध रहती है, साथ ही रेल द्वारा भी ऋषिकेश के लिए फेरे लगते हैं।

रैम्य नामक महर्षि ने अपनी इन्द्रियों को वश में करने हेतु यहां घोर तपस्या की थी, ऐसा माना जाता है। इसी कारण इस स्थान का नाम “ऋषिकेश’ पड़ा।

स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने आम्र शाखा पर बैठे हुए रैम्य ऋषि को दर्शन दिए थे। उस समय भगवान के भार से आम्र शाखा कुबड़ी हो गई थी, इस कारण इस स्थान का नाम “कुब्जाभ्रक’ भी पड़ा। ऋषिकेश में भगवान राम तथा उनके भाई लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न ने भी तपस्या की थी।

सभी सम्प्रदायों के साधुओं का यहां जमावड़ा देखा जा सकता है। इसके अलावा अनेक विदेशी अपने मन की शान्ति के लिए ऋषिकेश में साधनारत देखे जा सकते हैं। कुल मिलाकर ऋषिकेश वह स्थान है, जहां शांति की खोज में तथा पर्वतीय क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाने के लिए हजारों-हजारों लोग प्रतिवर्ष आते हैं।

ऋषिकेश को हम तीन भागों में बांट सकते हैं। उसका कारण प्रशासकीय इकाई है, लेकिन इसको तीन भागों में विभक्त करने पर भी इसका धार्मिक आस्तत्व प्रभावित नहीं होता और न ही पर्यटकीय महत्व कम होता है। ऋषिकेश का एक भाग देहरादून जिले में आता है और दूसरा टिहरी गढ़वाल में। ऋषिकेश का यह भाग “मुनी की रेती’ के नाम से जाना जाता है, जो चन्द्रभागा नदी के पार वाला क्षेत्र है। राम झूले के उस पार स्वर्गाश्रम, गीता भवन, परमार्थ निकेतन वाला क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल के प्रशासन क्षेत्र में आता है। अनेक मंदिरों, मठों, आश्रमों का नगर ऋषिकेश एक प्रकार से ज्ञान-गंगा का प्रवाह है। गीता भवन वाला क्षेत्र तो आठों पहर भक्ति रस में डूबा रहता है। प्रवचनों, सत्संग के प्रति अगाध स्नेह रखने वाले भक्तों का सैलाब गंगा के उस पार देखा जा सकता है।

– पवन कुमार कल्ला

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