एक कला है

आज के प्रतिस्पर्धी दौर में शिक्षा व कौशल जितना ही महत्वपूर्ण है आपका व्यक्तित्व। इसलिए सफलता के लिए व्यक्तित्व का विकास आवश्यक हो जाता है, लेकिन होता यह है कि जो शारीरिक या मानसिक चीजें हम सामान्य रूटीन के तौर पर करते रहते हैं, वह हमारी आदतें बन जाती हैं। अक्सर इन आदतों के कारण हम नकारात्मक सोच की जंजीर में बंध जाते हैं। इसलिए सकारात्मक सोच के लिए निरंतर प्रयास जरूरी हो जाता है। यह भी व्यक्तित्व विकास से ही संभव हो सकता है। अतः यहां हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि आप अपने व्यक्तित्व का विकास किस तरह से करें ताकि आपके अंदर साहस, आशावाद, सकारात्मक सोच आदि विकसित हो जाए और आप निराशा के दौर को आसानी से पार कर सकें।

“”जिस बात को करने में आपको डर लगता है, उसे करने के अनुभव से आपके अंदर ताकत, साहस और विश्र्वास जागृत होता है। इसलिए आपको वह चीजें करनी चाहिए, जिनके बारे में आप सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते।” ऐसा एलिनोर रूजवेल्ट का कहना है।

दरअसल जिस चीज से आप डरते हैं या सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते, उसे करने से उक्त गुण तो विकसित होते ही हैं, साथ ही अन्य गुण भी आप में आ जाते हैं, जैसे-िाएटिविटी, संयम, दया, सहनशीलता, निर्णय लेने की क्षमता स्वीकार करना, बर्दाश्त करना, सहयोग करना, जिज्ञासु होना और साहसिक होना। जब आप निरंतर चुनौतियों का सामना करते हैं तो इन गुणों का आपके अंदर आना स्वाभाविक है। साहस का अर्थ ही यह है कि वह काम करना, जो आप सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते। एक ऐसा काम करना जो लगता है कि नहीं किया जा सकता। अपने सुरक्षित व आरामदायक माहौल को छोड़कर चुनौतियों को स्वीकार करना और उनका सामना करना ही साहस है। साहस ही आपको सफलता के पायदान पर चढ़ाता है। याद रखें, जीवन बहुत छोटा है, उसे साहस के साथ न जीकर बर्बाद नहीं किया जा सकता।

यह हो सकता है कि जो काम आप नहीं कर सकते, वर्षों तक कोशिश करने के बाद भी आपको यह एहसास हो कि आप उसे नहीं कर सकते या जिस किस्म की आप सफलता चाहते हैं, वह आपके हाथ न लगे। लेकिन ऐसा करने से आपको जीवन का उद्देश्य मिल जाता है। आप अध्ययन, अनुभव, आत्म-मूल्यांकन, गलतियों से सीखने की प्रिाया से अपने आपको खोज लेते हैं। आपको मालूम हो जाता है जीवन में आपके लिए क्या महत्वपूर्ण है। उद्देश्य के तहत जीना ही जीना कहलाता है। इसी में आपको आनंद आने लगता है। आप किस चीज के लिए पैदा किए गये हैं? इसका उत्तर पाने के लिए जो समय और पैसे का निवेश आप करते हैं, वह ही महत्वपूर्ण होता है। जब आप अपने जीवन का उद्देश्य पा लेते हैं तो आप समय को बर्बाद करने से बच जाते हैं। जीवन का उद्देश्य जानने से आपका साहस जागृत हो जाता है और फिर आप साहस के साथ ही जीवन गुजारते हैं।

अक्सर असफल होने पर लोगों के मुंह से यही निकलता है कि “”मैं जो भी करता हूं, उसमें गड़बड़ हो ही जाती है।” यह कुंठा और निराशावाद के शब्द हैं। यह सही है कि जब चीजें गड़बड़ा जाती हैं तो अपने पर गुस्सा आता है। लेकिन यह सोचना कि हर चीज आपके लिए हमेशा गलत होती है, ठीक नहीं है। ऐसा सोचने से आपने अपने व्यक्तित्व विकास के लिए जो वर्षों से काम किया है, उसमें जो निवेश किया है, वह सब एकदम से शून्य हो जाता है और आप अपने आपको “पीड़ित’ समझने लगते हैं। ऐसा लगने लगता है जैसे आप “पीड़ित मुहल्ले’ की प्रॉपर्टी के वारिस हों। लेकिन क्या जरूरी है कि आप वहीं रहें? क्या कोई वहां रहता है? नहीं।

आपने यह तो सुना ही होगा “अच्छे की उम्मीद करो, लेकिन खराब के लिए भी तैयार रहो।’ क्या आप वास्तव में अच्छे की उम्मीद करते हैं? या आप इस इंतजार में बैठे हैं कि आपके साथ कुछ गड़बड़ हो और फिर आप कहें, “”मेरे साथ हमेशा ही उल्टा होता है।” आप दरअसल खराब की ही उम्मीद कर रहे हैं और खराब की तैयारी कर रहे हैं।

हम एक साथ अच्छे और खराब की उम्मीद नहीं कर सकते। हमें इनमें से एक का चयन करना होगा। इसलिए जब आप अच्छे होने की उम्मीद का चयन कर लेंगे, तो आपको एहसास हो जायेगा कि एक बाधा आपके संपूर्ण उद्देश्य का अंत नहीं है। इसका अर्थ सिर्फ इतना-सा है कि आपको थोड़ी-सी मेहनत और करनी होगी या अपने लक्ष्य को हासिल करने में थोड़ी और देर लगेगी। इससे क्या फर्क पड़ता है! आप जब आशावादी होंगे तो सफल भी होंगे। लेकिन गलत की उम्मीद करेंगे तो मुसीबत में भी पड़ेंगे। इसलिए हमेशा सोचें कि जो कुछ हो रहा है, अच्छा हो रहा है। भले ही मैं अपना लक्ष्य हासिल करूं या न करूं तो भी सब कुछ अच्छा ही हो रहा है।

सच्चाई यह है कि सकारात्मक सोच होने से प्रयासों में निरंतरता व दृढ़ता आ जाती है। क्या ही अच्छा हो कि हम हमेशा के लिए अपनी नकारात्मक सोच पर विराम लगा दें और फिर इसके बारे में कभी चिंता न करें। लेकिन बदकिस्मती से ऐसा नहीं होता है। हम अपनी सामान्य प्रिायाओं को आदत में तब्दील कर लेते हैं। इसलिए नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाने के लिए हमें निरंतर कोशिश करते रहना है।

ऐसा करने के दो महत्वपूर्ण तरीके हैं-नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच से बदल दो। इसके लिए प्रैक्टिस करनी होगी। आप जब भी नकारात्मक सोच के शिकंजे में फंसें, तो उससे बाहर निकलने का प्रयास करें। यह जानने की कोशिश करें कि नकारात्मक सोच का शिकार आप किस समय होते हैं। यह कोई मुश्किल काम नहीं है। जब भी कोई नकारात्मक वाक्य आपके दिमाग में आये या ़जबान पर तो फौरन ही उस सोच पर प्रश्नचिह्न लगा दें। क्या यह वास्तव में सही है? क्या यह वास्तव में आपके व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित करता है? अगर वास्तव में ऐसा है भी तो आप किसी और चीज का चयन कर सकते हैं। आप किस किस्म की बात पैदा करना चाहते हैं? इसके बाद सकारात्मक वक्तव्य का गठन करें, जिससे नकारात्मक वक्तव्य रद्द हो जाए। जब भी आप नकारात्मक दौर से गुजरें तो इसी अंदरूनी प्रिाया को दोहराएं। नकारात्मक सोच पर सवाल उठायें और उसे सकारात्मक सोच से बदल दें।

पहले-पहल आपको सकारात्मक सोच पर विश्र्वास नहीं होगा, लेकिन जब आप बार-बार इसे दोहराएंगे तो आप उसमें विश्र्वास करने लगेंगे। ध्यान रहे कि आपकी नकारात्मक सोच का पैटर्न वर्षों की सोच के कारण बना होता है, इसलिए इसे बदलने में समय लगेगा। यह एक यात्रा है, जिसमें एकदम से मंजिल पर नहीं पहुंचा जा सकता। हर चीज का सफर करते हुए ही लक्ष्य हासिल होता है।

जीवन में निराशाएं हाथ लगती ही हैं। लेकिन उनका सामना करने का एक बेहतरीन तरीका यह है कि उन्हें स्वीकार कर लो और अपने हालात व निराशाओं के खिलाफ निरंतर संघर्ष करते रहो ताकि कुंठा, कड़वाहट और थकान से बचे रहो। फिलहाल आप किसी भी किस्म की कठिनाइयों से संघर्ष कर रहे हों, वह गुजर ही जाएंगी, यह बात हमेशा ध्यान रखें। मुश्किलें हमेशा कायम नहीं रहतीं। कभी-कभी अवसर संघर्ष का रूप धारण करके सामने आता है।

– नरेन्द्र कुमार

You must be logged in to post a comment Login