औरंगजेब द्वारा बनाया गया इकलौता मंदिर

झज्जर जिले के महाभारतकालीन कस्बे बेरी से 12 किलोमीटर दूर गांव माजरा दूबलधन में बेरी-दादरी सड़क मार्ग पर एक बड़ा ही मनोहारी सरोवर है, देवालय। नाम के अनुरूप ही यहां अनेक देवी-देवताओं तथा संत-महात्माओं के मंदिर तथा समाधियां बनी हुई हैं। इस सरोवर का महाभारत काल से ही विशेष महत्व रहा है। इसी सरोवर के किनारे पाण्डु-पुत्र महाबली भीमसेन के पौत्र तथा महाबलशाली घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने कठोर तपस्या कर सिद्घि प्राप्त की थी। मानवता की भलाई के लिए उसने अपना शीशदान कर दिया और महाभारत युद्घ के निर्णायक बने। महाराजा युधिष्ठिर ने उनके धड़ की अंत्येष्टि इसी सरोवर के किनारे करके मंदिर व समाधि का निर्माण करवाया। बर्बरीक की तपोस्थली होने के कारण इसे “सिद्घेश्र्वरधाम’ के नाम से भी जाना जाता है।

इसके साथ-साथ संत शिरोमणि गरीबदास, बाबा दूधाधारी, मेहरगिरि महाराज, शिव शंकर, गैबी महाराज तथा बाबा मोहनदास के अति प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। लोकमान्यता के अनुसार गांव के चारों तरफ 82 धूणे (साधुओं की तपस्थली) थे।

बाबा मोहनदास की देश-विदेश में 365 बड़ी तथा 52 छोटी गद्दियां बनी हुई हैं, जिनका प्रमुख केंद्र भाड़ावास (रेवाड़ी) में है। यहां सभी गद्दियों से कुछ न कुछ राशि आती थी। भाड़ावास महंत के अनुसार देश-विभाजन के समय तक लाहौर गद्दी के महंत परमेश्र्वरदास चढ़ावा लेकर हर वर्ष यहां आते थे। बाबा मोहनदास जी किस समय गांव में आये, इसका निश्र्चित समय ज्ञात नहीं है। परंतु लोकमान्यता के अनुसार बाबा जी संवत् 1546 में भाड़ावास रेवाड़ी से आये थे। 40 वर्ष तक गांव में रहे तथा बाद में यहीं पर शरीर छोड़ा और देवलोक चले गये।

बाबा मोहनदास के शिष्यों में अनेक राजा-महाराजा भी रहे हैं, जिनमें राजा मान सिंह, शिवाजी, अकबर, गुरु गोबिंद सिंह तथा औरंगजेब के नाम उल्लेखनीय हैं। बताया जाता है कि मुसलमानों के आगमन के साथ ही मूर्तियों तथा मंदिरों को तोड़ने का काम शुरू हो गया, जो औरंगजेब के समय शिखर पर पहुंच गया था। लेकिन मंदिर को तोड़ने वाले मुगल सम्राट औरंगजेब ने ही बाबा मोहनदास के मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर के पुनर्निर्माण के समय यहां से मुगलकाल के अंतिम बड़े बादशाह औरंगजेब के सिक्के मिले, जो उनके द्वारा मंदिर निर्माण की सत्यता का प्रमाण हैं। इन सिक्कों पर “जद… चुमी… औरंगजेब आलम जेब अर रहमान’ पहले तथा दूसरे सिक्के पर उल्टी तरफ लिखा है। “अकबरा-बाद अमीर अल-1118 हिजरी’ लिखे ये सिक्के औरंगजेब के शासन के अंतिम वर्षों में अकबराबाद यानी आगरा से जारी किये हैं। एक और सिक्के पर दूसरी तरफ “जलुस ममनत मानुस सन 11… जरब…’ लिखा है। यह औरंगजेब शाहआलम (1707-1712) का लगता है। राजा मान सिंह ने भाड़ावास मंदिर में 352 कमरों का निर्माण करवाया, जिनके अवशेष आज भी विद्यमान हैं। बाबा मोहनदास ने नेपाल, पाकिस्तान समेत कई देशों का भी भ्रमण किया तथा वहां उनके नाम से आज भी गद्दियां स्थापित हैं। अब तो मंदिर का जीर्णोद्घार कर दिया गया है। पूरा मंदिर परिसर संगमरमर के सफेद पत्थरों से निर्मित है। मंदिर में 91 फुट ऊंचा शिवालय बना है, जिस पर अनेक देवी-देवताओं के शिल्प बने हैं। शिवालय के साथ ही एक गुंबद बना है, जिसके नीचे बाबा की प्रतिमा रखी गई है। इसके सामने गैबी नामक राक्षस की समाधि भी बनी हुई है, जिसमें सवा पाव खांड श्रद्घालुओं द्वारा चढ़ाई जाती है। बताया जाता है कि यह छोटी-सी कुण्ड रूपी समाधि कभी भी नहीं भरती है। एक बार बौंद के एक अहंकारी सेठ ने उसे भरने के लिए इसमें नौ मन खांड चढ़ा दी थी, परंतु यह तब भी नहीं भरी। आज यह समाधि संगमरमर की बनी हुई है। पहले यह चूने तथा गोल लखोरी ईंटों से बनी थी। बाबा जी की समाधि के पश्र्चिम में बाबा जी का तपोवृक्ष (वट वृक्ष) सदियों से ज्यों का त्यों खड़ा है।

– कुणाल शर्मा “महेंद्र’

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