कहानी – दोगले

dogle-storyवैद जैसे ही कार्यालय में पहुँचा, गिरिधारी ने तपाक से कहा –

तुम दोगले हो!

क्या बकते हो?

कह दिया जैसा देखा वैसा।

तुम्हें जबान सम्हालकर बात करनी चाहिए।

मैं जानता था, तुम सच्चाई बर्दाश्त नहीं कर पाओगे, किन्तु कडुआ सच सहन करने की आदत डाल लोगे तो तुम्हें तकलीफ नहीं होगी, गुस्सा भी नहीं आयेगा।

गिरिधारी की सीख सोलह आने ठीक थी, किन्तु सच स्वीकार कर पाना इतना आसान कहॉं! यह पूर्णतः सच है कि कडुआ सच, असहनीय होता है, तकलीफ देता है, गुस्सा आता है। गुस्सा आना, आदमी की कमजोरी को उजागर करता है। लोग कहते हैं जो कमजोर होता है, वह या तो गुस्सैल हो जाता है या चिड़चिड़ा। जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु उड़ानें भरना चाहता है और परिस्थितियॉं उसका साथ नहीं देतीं, तो उसमें हीन भावनाएँ पैदा होने लगती हैं। वह अन्दर ही अन्दर घुटने लगता है, घुटन की कसक को जब कोई कुरेदने का प्रयास करता है तो उसका आाोश फूट पड़ता है।

तुम अपनी सीख अपने पास रखो, मुझे उपदेश देने की जरूरत नहीं है। वेद ने भड़क कर कहा।

जो चर्चाएँ तुम्हारे बारे में चल रही हैं, वही कह बैठा हूँ। तुम्हें बुरी लगी, अब नहीं बोलूँगा। हॉं, इतना जरूर कहे देता हूँ कि मुझे तो रोक लोगे, एक, दो को भी रोक लोगे, किन्तु सभी का मुँह बन्द नहीं कर पाओगे।

कहने दो मुझे किसी की परवाह नहीं, पीठ पीछे तो लोग राजा को भी गाली देते हैं। वेद ने गिरिधारी को नकारते हुए कहा।

अब वो जमाना गया, जब लोग पीठ पीछे बोलते थे, अब तो लोग मुँह पर कहते हैं, और तुम उनको न रोक पाओगे और न ही  उनका कुछ बिगाड़ पाओगे। हॉं! बेशरम बनकर, गर्दन उठाकर चलने वालों को कोई नहीं रोक पाया है। गिरधारी ने कहा।

हॉं, तुम ही ठीक कहते हो, किन्तु मेरी तुमसे एक प्रार्थना है कि मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। वेद ने झुंझलाकर कहा और आगे बढ़ गया।

सत्ता-परिवर्तन के साथ वेद अपने आपको नई परिस्थितियों के अनुकूल ढालने का प्रयास कर रहा था। वह हर हाल में अपने आपको समयानुकूल रख सकने की कोशिश कर रहा था।

वेद पुरानी सरकार के कई मंत्रियों और विधायकों का विश्र्वसनीय था। वरिष्ठ स्तर पर उसकी बात को गम्भीरता से लिया जाता था। महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पूर्व वेद का मशविरा लिया जाता था। राजनैतिक लोगों को अपने आपको हर परिस्थितियों में ढाल लेने का फन मालूम रहता है, किन्तु वेद कोई नेता तो है नहीं, उसे तो अपनी नौकरी को जीवित रखने के लिए सरकारी रहने की कोशिश करनी है। वह अपने सरकारीपन का निर्वाह करने का प्रयास करता है तो यह कोई गुनाह नहीं है, किन्तु जमाने वाले तो हर एक जगह टांग फॅंसाने की फिराक में रहते हैं।

कल तक गिरिधारी वेद की हॉं में हॉं मिलाता रहता था। वेद ने अनेकों बार गिरिधारी को आड़े वक्त में साथ दिया था, किन्तु मानवीय प्रवृत्ति से प्रेरित गिरिधारी उससे ईर्ष्या पाले बैठा था, जब सत्ता-परिवर्तन हुआ तो वह मुगालते में था कि नयी सरकार तो वेद को ठिकाने लगा ही देगी।

वेद में क्षमता है, योग्यता है, जिसकी वजह से वह लोगों का दिल जीत लेता है, विश्र्वास जीत लेता है। सर्वमान्य सत्य भी है कि योग्यता की सदैव पूजा होती है। वेद को वर्तमान सरकार में भी अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रखने में सफल होता देख उसके सहकर्मी तथा स्वार्थी साथी यदि उदास, हताश एवं दुःखी होते हैं तो इसमें वेद का क्या दोष?

गणतंत्र-दिवस समारोह की झांकी प्रदर्शन की तैयारी चल रही थी। झांकी में सरकार की उपलब्धियों को दर्शाया जाना था। नयी सरकार को बने कुछ ही दिन हुए थे, उपलब्धियॉं हों तो दर्शायी जा सकें।

अधिकारी ऊहापोह की स्थिति में थे, उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। शर्मा जी बोले, मैं चाहता हूँ कि हमें इस संबंध में वेद से परामर्श करना चाहिए। गिरधारी बोला, साहब रहने दें, उसको! कल तक वह पुरानी सरकार का पिट्ठू था, वह तो कहेगा, पिछली सरकार ने यह किया, वह किया, ये योजना, वो उपलब्धि और मारे जायेंगे हम, और आप।

शर्मा जी बोले, ठीक है, वह कहेगा ही, निर्णय तो हमें लेना है। उसके विचारों को जानने में कोई नुकसान नहीं होगा।

किशोर, जाकर वेद जी को बुला लाओ। किशोर वेद को बुलाकर लाया।

नमस्कार साहिब! कहिए साहिब कैसे याद किया? वेद ने कहा।

आइये, वेदजी, दरअसल, 26 जनवरी की झांकी की तैयारी चल रही है। सरकार की उपलब्धियॉं दर्शानी हैं। हम लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि क्या दर्शाएँ।

सर, यह कोई बड़ी समस्या नहीं है, अगर आप कहें तो मैं कुछ सुझाव दूँ। वेद ने बड़ी गंभीरता से कहा।

शर्मा जी ने कहा, अरे भाई, जब हमारे दिमाग में कुछ नहीं सूझा, तभी तो आपको तकलीफ दी है। बताइये क्या सुझाव हैं?

वेद ने कहा, साहब, अभी नयी सरकार की उपलब्धियॉं तो हमारे पास हैं नहीं, मैं चाहता हूँ कि हम इस झांकी में नई सरकार की मंशाएँ दर्शायें।

क्या फालतू बात कर रहा है? गिरिधारी ने कहा, गिरिधारी जी, आप चुप बैठो, वेद ठीक कह रहा है। हॉं, वेद बतलाओ कि हम सरकार की मंशा को कैसे दर्शायेंगे।

बड़ा आसान काम है सर। वेद बोला।

हॉं, हॉं, यह दाल-रोटी तो है, जो गटाक से खा लिया। गिरधारी बोल पड़ा।

गिरधारी तुम चुप बैठो, अगर नहीं बैठ सकते, तो चले जाओ यहॉं से, वेद जरा समझाओ। शर्मा जी ने कहा।

वेद ने कहा, सर, हमारे पास सरकार का चुनावी घोषणा-पत्र है। चुनाव के पूर्व सरकार ने जनता से जो वादे किये थे, उन्हें पूरा करना सरकार का नैतिक दायित्व है। हमारे विभाग से संबंधित जो-जो घोषणाएँ की गयी थीं, उन्हीं में से हम तय कर लें! फिर मंत्री जी से चर्चा कर लें, अगर वे सहमत हों तो।

शर्मा जी बोले, वेद तुम बहुत योग्य हो, तुमने तो हमारी आँखें खोल दी हैं। अच्छा ठीक है, अब आप इसका खाका खींच लो, लंच के बाद फिर चर्चा करेंगे।

शर्मा जी, झांकी का मसौदा लेकर मंत्री जी के कक्ष में घुसे ही थे कि मंत्री जी ने कहा –

हॉं शर्मा जी, कहिए, क्या तय किया आप लोगों ने?

माननीय, अब देखिए आप तो स्वयं ही जानते हैं, हमारी सरकार बने अभी चन्द दिन ही हुए हैं, उपलब्धियॉं तो हमारी हैं नहीं, यदि उपलब्धियॉं दर्शायेंगे तो वे सब पिछली सरकार के खाते में जायेंगी।

फिर?

माननीय, यह मसौदा तैयार किया है अगर आप ठीक समझें तो?

यह तो बहुत अच्छा है। किसने बनाया?

सर, वेद ने?

कौन वेद?

वही है साहब, अपने विरोधियों के आगे पीछे-घूमता रहता था, दोगला है, सरकार बदली तो अपने…। गिरिधारी बोला।

शर्मा जी, मैं वेद से चर्चा करना चाहूँगा, उन्हें बुलवाइये। मंत्री जी ने कहा।

वेद को बुलाकर लाओ। शर्मा जी ने किशोर से कहा।

मैं आ सकता हूँ श्रीमान, मैं वेद हूँ, आपने याद किया?

हॉं, हॉं आइये, वेद जी, झांकी का मसौदा आपने तैयार किया है? मंत्री जी ने पूछा।

वेद ने थूक गुटकते हुए कहा, जी, साहब ने, आदेश दिया था।

बहुत अच्छा लगा। आपकी सोच बहुत अच्छी है। मैं मुख्यमंत्री जी को दिखाकर अन्तिम रूप देना चाहता हूं, फिर भी आप रूपरेखा अनुसार तैयारी शुरू कर दें।

मुख्यमंत्री जी ने मसौदा अनुमोदित कर दिया है। आप लोग वेद के मार्गदर्शन में झांकी को तैयार करने में लग जायें। मैं भी बीच-बीच में देखना चाहूँगा। मंत्री जी ने कहा।

शर्मा जी अपनी सफलता पर बड़े प्रशन्न थे, झांकी प्रदर्शन के पहले ही उत्कृष्ठ मान ली गयी। शर्मा जी ने वेद को पुरस्कृत किये जाने का प्रस्ताव मंत्री जी के पास रखा। मंत्री जी ने सहर्ष स्वीकृति दे दी।

झांकी को प्रथम पुरस्कार मिला, विभाग की ओर से पुरस्कार लेने के लिए वेद का चयन किया गया। पुरस्कार राज्यपाल महोदय के हाथों से प्राप्त कर वेद बहुत खुश हुआ। पुरस्कार तथा स्मृति-चिह्न मंत्री जी को भेंट करते हुए, वेद ने उन्हें कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा, माननीय जी, आपकी कृपा का आभारी रहूंगा, आज आपने मेरा…।

ऐसा नहीं है वेद जी, यह आपकी योग्यता, लगन तथा कर्त्तव्य-निष्ठा का ही फल है। हॉं, यह जरूर सच है कि आपके बारे में, लोगों ने मुझसे बहुत उल्टा-सीदा कहा था। एक बार तो मैं भी लोगों की बात पर भरोसा कर बैठा था, किन्तु जब शर्मा जी ने बतलाया कि झांकी का मसौदा आपने तैयार किया है, तो मुझे उन लोगों की बातें मात्र झूठी ही नहीं, बल्कि द्वेषवश भिड़ाई गयी लगीं। मैं आपको बधाई देता हूँ तथा आशा करता हूँ कि आप भविष्य में भी निष्ठापूर्वक अपनी योग्यता का प्रदर्शन करते रहेंगे। मंत्री जी ने कहा।

धन्यवाद देते हुए वेद ने कहा, श्रीमान्, कुछ लोग काम न करके इन्हीं उल्टी-सीधी हरकतों में लगे रहते हैं। उनकी फितरत को बदल पाना भी कठिन है, जबकि मेरी सोच तो, श्रीमान् जी यह है कि हम कर्मचारी हैं तो हमें अपना काम करना चाहिए। सरकार किसकी है? कौन नेता है? हमें इससे क्या? हम तो कर्मचारी हैं। हम तो सरकारी हैं। हमें तो सरकार के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए। मंत्री जी को धन्यवाद देते हुए वेद ने कहा।

सब वेद की इस उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे।

– डॉ. मोहन आनन्द

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