गांधी-युगान्तकारी पुरुष

महात्मा गांधी भारत के सिर्फ राष्टपिता, स्वतंत्रता सेनानी या समाज सुधारक ही नहीं बल्कि विश्र्व के एक युग-पुरुष हैं, जिन्होंने युगान्तकारी परिवर्तन का एक मार्ग बतलाया है। युद्घ से जर्जर समाज को सत्य, अहिंसा का अमोघ अस्त्र दिया है। आज के विश्र्व को एक नया जीवन-दर्शन दिया है तथा समाज एवं राजनीति को एक नया आयाम प्रदान किया है।

महात्मा गांधी का जीवन एक आचार संहिता है, जो व्यक्तिगत, सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन का एक आदर्श पेश करता है। उनके द्वारा प्रतिपादित सत्य, अहिंसा व्यक्तिगत जीवन का, सर्वोदय सामाजिक जीवन का और राम राज्य राजनैतिक जीवन का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। महात्मा गांधी ने पूर्व के महापुरुषों के उपदेशों की भांति सत्य-अहिंसा का सिर्फ उपदेश ही नहीं दिया है, बल्कि अपने सम्पूर्ण जीवन में सत्य और सत्याग्रह का प्रयोग किया। इसलिए उन्होंने अपनी आत्मकथा का नाम “सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ रखा है। बचपन में उन पर सत्यवादी हरिश्र्चंद्र नाटक का प्रभाव पड़ा था और वे सत्यव्रती बन गये। विदेशी शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद उन पर इस नाटक का प्रभाव मिट नहीं सका। 1893 में जब वे अब्दुल्ला सेठ की वकालत के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गये तो वहां गोरों द्वारा रंगभेद की नीति अपनाये जाने के विरोध में सार्वजनिक जीवन में कूद पड़े। उन्होंने जोहान्सबर्ग में रंगभेद नीति के विरोध में सभा आयोजित की और भारतीय प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए 1906 में सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। नेटाल और टान्सवाल में उनका सत्याग्रह आंदोलन पहली बार सफल हुआ और ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा। रंगभेद संबंधी कानून रद्द हुआ।

1914 में महात्मा गांधी जब भारत लौटे तो नरमवादी नेता के रूप में कांग्रेस में प्रविष्ट हुए। उन्होंने लोगों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में 1917 में चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन चलाया, जिसके आगे ब्रिटिश सरकार को झुकना ही पड़ा और सत्याग्रह का प्रयोग सफल रहा।

फिर महात्मा गांधी ने अंग्रेज शासन, साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व एवं जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में 1921 में असहयोग आन्दोलन चलाया, जिसमें विदेशी वस्तुओं एवं शिक्षा के बहिष्कार और स्वदेशी एवं खादी के प्रचार के कार्याम प्रमुख थे। वास्तव में यह आन्दोलन सिर्फ ब्रिटिश विरोधी नहीं, बल्कि भारत की गरीब जनता की आर्थिक आजादी का एक मार्ग था, जिससे विदेशी या स्वदेशी पूंजीपति आम लोगों का शोषण नहीं कर सकते थे।

इसके बाद 1929-30 में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन, डांडी मार्च चलाए और नमक कानून तोड़ना सत्याग्रह का तीसरा चरण था, जिसका परिणाम गांधी इनरविन पैक्ट और 1935 का सुधार अधिनियम था। चौथा सत्याग्रह था 1940 का व्यक्तिगत सत्याग्रह और अंतिम आंदोलन था भारत छोड़ो आंदोलन, जिसका प्रतिफल था भारत की आजादी।

इस प्रकार महात्मा गांधी का सम्पूर्ण जीवन सत्य का प्रयोग है। उन्होंने सत्य, अहिंसा का राजनीति में प्रयोग कर राजनीति का आध्यात्मिकरण किया, दो-दो विश्र्व युद्घों से त्रस्त विश्र्व को अहिंसा का एक नया मार्ग बतलाया, विश्र्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त किया तथा मार्क्सवाद का विकल्प शांतिपूर्ण साम्यवाद यानी सर्वोदय समाज का आदर्श दिया। महात्मा गांधी ने नयी समस्याओं का पुराना समाधान दिया, सभी देश-काल की समस्याओं का शाश्र्वत समाधान दिया, इसलिए उनके द्वारा स्थापित सत्य, अहिंसा, शांति, नीति और सत्याग्रह आज भी प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेंगे। उनकी अर्थ-नीति शोषण से गरीब को बचाने तथा आर्थिक आजादी को जीतने का मार्ग है।

अहिंसा, हिंसा की ज्वाला मिटाने के लिए पानी के समान है और शांति नीति निरस्त्रीकरण एवं विश्र्व-शांति का एकमात्र निदान है। इस तरह महात्मा गांधी एक युग-पुरुष हैं, जिन्होंने युद्घ जनित समाज को शांति का नया पैगाम एवं सत्य, अहिंसा का अमोघ अस्त्र दिया है।

-प्रो.तारकेश्र्वर प्र. सिंह

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