जीवन गीता

स्वामी रामकृष्ण परमहंस के समय दक्षिणेश्र्वर में श्री प्रताप हाजरा नाम के एक सज्जन रहते थे। उन्होंने अपना जीवन साधुओं जैसा बना रखा था। वे कभी-कभी स्वामी रामकृष्ण परमहंस से मिलने आते थे और सत्संग का लाभ लेते थे। एक बार वे स्वामीजी के साथ कोलकाता गए थे। जब वहॉं से लौटे, तो अपनी धोती वहीं एक भक्त के घर भूल आए। स्वामी रामकृष्ण को जब यह पता चला कि हाजरा जी वहॉं कुछ भूल आए हैं तो उन्होंने हाजरा जी से कहा, “ऐसे भुलक्कड़ स्वभाव के कारण तो तुम कभी-कभी भगवान को भी भूल जाते होंगे। जो प्रतिदिन के सांसारिक कार्यों में असावधान है वह अध्यात्म क्षेत्र में सावधान होगा, इसमें संदेह है।’ हाजरा जी स्वामी जी के कहने का अर्थ समझ नहीं सके। उन्होंने अपनी सफाई देते कहा, “क्या बताऊं महाराज, भगवान के भजन में लीन रहने के कारण मुझे कुछ याद ही नहीं रहता। भगवान से मेरी इतनी प्रीत है कि संसार में क्या हो रहा है, इसकी तरफ ध्यान ही नहीं जाता।’

स्वामी रामकृष्ण परमहंस, हाजरा जी की झूठी आत्मप्रशंसा समझ गए। वे मन ही मन दुःखी होकर सोचने लगे कि ये साधु तो बन गए हैं, लेकिन अपनी आत्मप्रशंसा के भाव को नहीं भूल सके। स्वामी जी बोले, “हाजरा तू धन्य है, जो थोड़े से जाप से ही इतना पहुँच गया कि सांसारिक विषयों की याद ही नहीं रहती। एक मैं तुच्छ प्राणी हूँ जो दिन-रात भगवान के चरणों में ही ध्यान दिए रहता हूँ, फिर भी आज तक न कभी अपना बटुआ कहीं भूला हूँ और न ही धोती। तब हाजरा जी को अपनी भूल का भान हुआ। वे स्वामी जी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे। अपनी गलती को छुपाकर कोई भी सामान्य नहीं रह सकता है। गलती को छुपाने के लिए कई बार मनुष्य उन तथ्यों की सहायता भी लेने लगता है जो सामान्यतया उसे सही ठहराते हैं, लेकिन यदि गहराई से देखा जाए तो ऐसे तथ्य किसी काम के नहीं होते।

You must be logged in to post a comment Login