झूठ से तोबा की कालू ने

kalu-the-crowनदी किनारे चम्पक वन था। इस जंगल में बहुत से जानवर मिलजुल कर रहते थे। सुख-दुःख में वे सब एक-दूसरे के काम आते थे। उसमें से कालू कौआ बहुत दुष्ट और चालबाज था। वह सभी जानवरों की चापलूसी करके अपना काम चला लेता था। उससे भी बुरी आदत उसकी यह थी कि वह झूठ बहुत बोलता था।

हरियल तोता, लम्बू जिराफ और जंगल के सब जानवर कालू को समझाते कि झूठे और चापलूस प्राणी का समाज में मान-सम्मान नहीं होता। फिर ऐसी आदत कभी-कभी स्वयं के लिए ही मुसीबत का कारण बन जाती है। लेकिन कालू किसी की बात की ओर ध्यान नहीं देता था।

एक बार जंगल में “साक्षरता अभियान’ छिड़ा। जंगल के सब जानवरों ने उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। लम्बू जिराफ, चिम्पू खरगोश, मोटू भालू और फुदकू बन्दर ने घूम-घूम कर जंगल के सब जानवरों को पूरी रुचि से पढ़ाया। जानवरों को पढ़ाई का महत्व समझाया। वन में कालू ही एकमात्र ऐसा प्राणी बचा, जिसने पढ़ना-लिखना कुछ भी नहीं सीखा। जंगल के जानवरों की मेहनत का ही परिणाम था कि जंगल के राजा शेरू ने चम्पक वन को “पूर्ण साक्षर’ वन का खिताब दिया।

एक दिन हरियल तोते और लम्बू जिराफ ने कालू से कहा, “”भैया! तुम भी पढ़ना-लिखना सीख लो। यह तुम्हारे काम आएगा।” कालू का मन पढ़ाई की ओर बिल्कुल न था। वह बात को चतुराई से टाल गया।

चम्पक वन का कोई न कोई जानवर कालू को हरदम पढ़ना-लिखना सीखने को कहता रहता। अब उसको यह बात बुरी लगने लगी। उसने मन ही मन निर्णय लिया कि अब वह इस वन में नहीं रहेगा, उड़कर दूर किसी और वन में जा बसेगा।

अगले दिन कालू जंगल में कहीं दिखाई नहीं दिया। उसका घोंसला खाली पड़ा था। घोंसला छोड़कर कालू उड़ गया था। उड़ते-उड़ते दूर वह श्रीवन में जा पहुंचा। वह एक पेड़ की डाल पर बैठ गया। उस पेड़ पर मोनू कबूतर, गुलगुल गिलहरी और फिसी चिड़िया बैठी थी। कालू को देखकर मोनू कबूतर बोला, “”तुम कहां से आए हो भैया? क्या रास्ता भटक गए हो?”

“”मैं चम्पक वन से आया हूँ।” कालू बोला, “”हमारे वन के सभी प्राणी पढ़ना-लिखना सीख गए हैं। मैंने ही तो चम्पक वन के प्राणियों को साक्षर किया है।” अपनी आदत के मुताबिक कालू ने झूठ बोला।

यह सुनकर पेड़ पर बैठे सभी जानवर बहुत खुश हुए। वे कालू को जंगल के राजा शेर सिंह के पास ले गए। कालू ने सम्पूर्ण साक्षर चम्पक वन के बारे में महाराज शेर सिंह को बताया।

“”क्या तुम श्रीवन के प्राणियों को भी पढ़ना-लिखना सिखाओगे?” महाराज शेर सिंह ने कालू से कहा, “”तुम्हारे रहने तथा भोजन का बन्दोबस्त राजकोष की ओर से कर दिया जाएगा।”

“”हॉं, हॉं, क्यों नहीं!”

महाराज शेर सिंह ने कालू को आज से ही श्रीवन के अनपढ़ प्राणियों को साक्षर करने के लिए नियुक्त कर दिया। कालू को कुछ आता-जाता तो था नहीं, शीघ्र ही उसकी पोल खुल गई। उसकी शिकायत हुई। उसे शेर सिंह के दरबार में उपस्थित होना पड़ा। राजा ने उसे झूठ बोल कर धोखा देने के आरोप में मृत्यु-दण्ड की स़जा सुनाई। जंगल के सभी जानवर कालू के मृत्यु-दण्ड को देखने के लिए एकत्रित हुए।

महाराज शेर सिंह का इशारा पाकर भालू मंत्री कालू की गर्दन मरोड़ने के लिए उठा ही था कि वह एक ़जोरदार उड़ान भरकर आकाश में खो गया।

उड़ता-उड़ता कालू पुनः अपने चम्पक वन में आ पहुँचा। उसे देखकर सभी जानवरों को बड़ी खुशी हुई।

कालू हॉंफते हुए बोला, “”भाइयों! तुम जो मुझे झूठ न बोलने की सीख देते थे, वह ठीक ही थी। आज मैं अपने ही झूठ के जाल में फंस गया था। आज तो मैं बस मरते-मरते बचा हूँ। बड़ी मुश्किल से प्राण बचाकर भाग पाया हूँ। अब मैं आगे से कभी झूठ नहीं बोलूँगा।”

यह कहकर कालू कौए ने सारा वृतांत कह सुनाया। कालू की बात जब खत्म हुई तो सब जानवरों ने देखा, कालू की आँखों में सच्चाई की चमक उभर आई थी।

“”काका! आज से आप मुझे पढ़ाएँगे।” कालू ने लम्बू जिराफ से कहा। सब जानवर बेहद खुश थे।

– राजकुमार जैन “राजन’

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