टेसी थॉमस – आग्न पुत्री की ऊँची छलांग

देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी योग्यता, बौद्धिक क्षमता, परिश्रम व लगन की बदौलत भारतीय महिलाओं द्वारा अपनी विशिष्ट पहचान बनाने एवं उनका लोहा मनवाने के उपरांत अब देश की “रक्षा क्षमता’ जैसी अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील परियोजना की बागडोर एक 45 वर्षीया महिला वैज्ञानिक टेसी थामस को सौंपा जाना उनके साथ-साथ समूचे समाज के लिए महत्वपूर्ण संदेश भी है।

डॉ. टेसी थामस भारतीय नारी की नयी परिभाषा गढ़ने जा रही हैं। देश के पूर्व राष्ट्रपति एवं मिसाइलमैन के रूप में अपनी पहचान बना चुके डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के बाद अब उन्हें देश की “प्रथम मिसाइल वुमन’ की पहचान मिलने जा रही है। यह उन लोगों के लिए भी एक सबक है, जो भारतीय महिलाओं को दूसरे दर्जे की शख्सियत के रूप में निरूपित करते थकते नहीं । 45 वर्षीया महिला टेसी थामस को दो हजार किलोमीटर रेंज वाली मिसाइल “अग्नि दो’ के उन्नत संस्करण के लिए परियोजना निदेशक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा रही है।

इतिहास गवाह है कि भारतीय महिलाओं में प्रतिभा एवं क्षमता किसी अन्य देश की महिलाओं से रंच मात्र भी कम नहीं है। देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी से लेकर देश की प्रथम महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी, भारतीय मूल की कल्पना चावला, गार्गी, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसी तमाम विभूतियों के नामों की एक लंबी फेहरिस्त इस सूची में शामिल है।

इनमें श्रीमती इंदिरा गांधी को भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में एक कुशल राजनीतिक एवं विश्र्व की सर्वाधिक शक्तिशाली महिला प्रधानमंत्री के रूप में जाना जाता है। इसी प्रकार अन्य कई महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अद्भुत क्षमताओं का परिचय देकर देश का नाम रौशन कर अपने नाम का परचम लहराया है।

“अग्निपुत्री’ के नाम से विख्यात टेसी थामस को डॉ. अब्दुल कलाम के साथ भी काम करने का गौरव प्राप्त है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन डी.आर.डी.ओ. में गत 20 वर्षों में कुल दो सौ महिला वैज्ञानिक कार्यरत रहीं। डॉ. टेसी थामस अग्नि परियोजना के साथ विगत 20 वर्षों से संबद्ध रही हैं। वर्तमान में तीन हजार किलोमीटर रेंज वाली “अग्नि-दो’ मिसाइल परियोजना की एसोसिएट परियोजना निदेशक के पद पर सुशोभित डॉ. टेसी थामस से अग्नि-तीन मिसाइल के संदर्भ में इसकी विफलता का पहले ही विश्र्लेषण कर लिया था। इसके तमाम विवरणों से पता चला है कि मिसाइल के परीक्षण में कुछ त्रुटियां रह गयी थीं। परन्तु उन पर नियंत्रण पा लिया गया था और “अग्नि-तीन’ मिसाइल की परीक्षण उड़ान कामयाब रही।

उनके कार्यस्थल पर उन्हें “महिला’ कह कर संबोधित करने वालों को वह तीखे अंदाज में कहती थीं कि वह (टेसी थामस) यहां केवल और केवल एक वैज्ञानिक हैं, न कि कोई महिला। उन्हें स्त्री-पुरुष में भेदभाव से बेहद नफरत है। इस महत्वपूर्ण मुकाम तक पहुँचने के लिए टेसी को 20 वर्षों का लंबा सफर तय करना पड़ा। उनका अपने कार्य के प्रति समर्पण, सच्ची लगन और श्रद्धा संपूर्ण महिला समाज के लिए एक आदर्श साबित होगा।

यद्यपि इस समय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) में 95 से अधिक महिलायें कार्यरत हैं, किन्तु थामस उनमें से प्रथम सौभाग्यशाली महिला हैं, जिन्हें इस अत्यंत महत्वपूर्ण मिसाइल परियोजना की “परियोजना निदेशक’ बनने का गौरव प्राप्त हुआ।

“अग्नि परियोजना’ से इस समय लगभग बीस महिला वैज्ञानिक जुड़ी हुई हैं। मिसाइल के प्रति थामस का आकर्षण तब पैदा हुआ, जब केरल में वह स्कूल की शिक्षा ग्रहण कर रही थीं। अपने स्कूल के दिनों में तिरुवअनंतपुरम स्थित रॉकेट स्टेशन के बारे में वह काफी बातें सुनती रहती थीं। तभी से उनकी रुचि इस परियोजना के प्रति बढ़ती गयी। उस समय “अपोलो मून मिशन’ के प्रति भी उनका आकर्षण पैदा हुआ था। उन्होंने बताया कि वह अपने अंतर्मन में हमेशा ही रॉकेट और मिसाइल के साथ जुड़ने की बात सोचती रहती थीं।

अग्नि-तीन परियोजना की सहायक निदेशक रहीं डॉ. टेसी को देश की “मिसाइल महिला’ या “अग्निपुत्री’ कहलाने का गौरव भले ही अब मिला है, किन्तु वह 1988 से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में कार्यरत हैं। वह मिसाइलों के क्षेत्र में पुणे विश्र्वविद्यालय से एम.टेक तक की पढ़ाई कर अपनी लगन एवं क्षमता का सबूत पेश कर चुकी हैं। उन्हें अग्नि मिसाइलों की गाइडेंस प्रणाली का डिजाइन बनाने की जिम्मेदारी के लिए चयनित किया गया है।

गत सप्ताह अग्नि-तीन के परीक्षण के मौके पर उड़ीसा के तटवर्ती व्हीलर द्वीप स्थित परिक्षण स्थल पर डॉ. टेसी के साथ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की अलग-अलग प्रयोगशालाओं से जुड़ी सात महिलाओं की मौजूदगी से स्पष्ट है कि मिसाइलों के विकास जैसे दुरूह तथा अत्यंत विशिष्ट क्षेत्र में महिलाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

टेसी की तरह इनके पति के पास भी “गाइडेड मिसाइल’ टेक्नोलॉजी की मास्टर डिग्री है। भारतीय नौसेना में वह इस समय कैप्टन के पद पर कार्यरत हैं।

टेसी थामस को मिसाइल वुमन के महत्वपूर्ण मुकाम तक पहुंचाने में उनके निजी समर्पण का भी विशेष योगदान है। उनके लिए विज्ञान महज एक कॅरियर ही नहीं, अपितु खास प्रतिबद्धता है। इसका बड़ा उदाहरण तो यही है कि उन्होंने अपने पुत्र का नाम भी हल्के लड़ाकू विमान “तेजस’ के नाम पर रखा है। अधिकांश कामकाजी महिलाओं की भांति थामस भी अपनी दिनचर्या सुबह चार बजे से शुरू करती हैं। उनका सभी युवा महिलाओं को यह संदेश है कि वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता बनने के लिए स्कूल स्तर से ही विज्ञान का चयन एवं अध्ययन करना चाहिए।

टेसी थामस को इस महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी देकर भारत सरकार ने सिर्फ थामस का ही नहीं, बल्कि देश की समूची नारी जाति का सम्मान बढ़ाया है। इस नियुक्ति से अब यह बात भी निर्मूल साबित हो गयी है कि भारत की नारी अब वह पुरातन समय की नारी नहीं रही, जिसके बारे में पूर्व के विद्वानों एवं कवियों ने कहा है कि नारी तो केवल अबला होती है। समूचे विश्र्व को यह सीधा एवं स्पष्ट संदेश है कि भारतीय नारी एक साधारण नारी न होकर अब “मिसाइल वुमन’ हो गयी है। भारत सरकार एवं उनके सलाहकारों को इसके लिए “साधुवाद’ कहा जाना चाहिए।

– वीरेन्द्र सिंह

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