डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू. रिश्वत.कॉम

अभी भी बड़े-बड़े तीसमारखाओं को किसी दफ्तर में काम करवाने जाने का नाम सुनते ही दादी-नानी याद आ जाती है, क्योंकि “दफ्तर’ है ही ऐसा शब्द। यमराज के बाद किसी से जनता डरती है तो बस दफ्तर से। बेचारी जनता, निरीह जनता! इस लोक में भी डर, उस लोक में भी डर। दफ्तर की परिभाषा- जहॉं पर काम करवाने के लिए पहले कोई मुर्गी को दाना खिलाए, अंडा आये न आये, यह उसकी किस्मत। हाथी का पेट कभी भरा है क्या?

सच मानिए, आजकल जनता और जनसेवक का संबंध बहुत नाजुक हो गया है। जन्म प्रमाण-पत्र से लेकर मृत्यु प्रमाण-पत्र तक। उन्होंने प्रमाण-पत्र दिया तो आप नौ महीने नरक में रहकर भी पैदा नहीं हुए। उन्होंने प्रमाण-पत्र नहीं दिया तो आप… नरक में भी प्रमोशन लेते रहे, अपने से पीछे वालों की गालियां सुनते रहे। ऐसे में रिश्र्वत सब समस्याओं का समाधान है। कब, कहां और किसे रिश्र्वत देने की जरूरत पड़ जाए, राम जाने। इसलिए, घर से निकलते हुए कपड़े पहनना भूल जाइए तो भूल जाइए, पर जेब में पांच-सात सौ डालना मत भूलिएगा।

खुदा कसम, रिश्र्वत लेने-देने के बीच आज भी बड़े संकट हैं। हालांकि बड़े हल हो चुके हैं, पर क्या करें भाई साहब! रिश्र्वत लेने और देने के बिना गुजारा भी तो नहीं। हम रिश्र्वत क्यों लेते हैं? क्योंकि वे देते हैं। वे रिश्र्वत क्यों देते हैं? क्योंकि हम लेते हैं। जनता और सरकार के बीच रिश्ते प्रगाढ़ करने के लिए जो कभी लोक संपर्क विभाग बना था, वह अब मरणासन्न है। जनता और सरकार के बीच जो थोड़ा-बहुत रिश्ता बचा है, वह रिश्र्वत के कारण ही बचा है। यदि जनता और सरकार रिश्र्वत देना और लेना बंद कर दे, तो सरकार और जनता के बीच जो थोड़ा-बहुत संवाद हो रहा है, मेरी समझ में वह भी खत्म हो जाये। ऐसे में रिश्र्वत भ्रष्टता है क्या? निर्णय सुधीजनों के हाथों है। रिश्र्वत आज एक टेंड है, अन्य टेंडों की तरह। अब आप लेते हुए शरमाते हैं तो जंगली हैं। आप देते हुए शरमाते हैं तो गधे हैं।

लेकिन कुछ बंधुओं की इस समस्या के मद्देनजर मैंने रिश्र्वत को ऑनलाइन कर दिया है। कुछ बंधुओं की तरह, असल में रिश्र्वत देते हुए मुझे भी बहुत तकलीफ होती थी। खैर, लेने लायक तो मां-बाप ने बनाया ही नहीं। उनको जितनी गालियां दूं, कम हैं। रिश्र्वत देते हुए सालों होने के बाद भी डरता था, शरमाता था, घबराता था। दस बार जेब से नोट निकालता था, पंद्रह बार जेब में डाल लेता था। सामने बैठे सरकार बड़े गुस्सा होते थे और जब हड़बड़ी में देता था, तो सरकार भी हड़बड़ा जाते थे। दोनों के बीच एक चुप्पी, डर! न रिश्र्वत देकर भी रिश्र्वत का फल मिलता था, न रिश्र्वत लेकर भी उन्हें रिश्र्वत लेने का मजा आता था।

फिर मैंने सोचा, बहुत सोचा। हफ्तों सोचता रहा, सोचने के बाद इस सोच पर पहुंचा कि सरकार और जनता की इन परेशानियों को खत्म करने के लिए क्यों न नेक काम करूं? वैसे भी परम्परागत रिश्र्वत देने और लेने के तरीके अब बेमानी हो गये हैं।

अब आप बस, घर बैठकर माउस क्लिक कीजिए और किसी भी विभाग के किसी भी दफ्तर में बैठे सरकार साहब को मनचाही रिश्र्वत सप्रेम भेंट कर डालिए। बिना किसी घबराहट के, बिना किसी हड़बड़ाहट के।

गये बंधुओं अब वे दिन, जब रिश्र्वत के लेन-देन की सेटलमेंट में घंटों लग जाते थे। रिश्र्वत देने के लिए सुरक्षित लोकेशन की तलाश में हफ्तों लग जाते थे। अब ये सब आउटडेटिड समझिए, पूरे कपड़ों की तरह। रिश्र्वत देने वाले सज्जन न केवल अब इस वेबसाइट के जरिए संबंधित विभागों की सरकारों को बेहिचक रिश्र्वत भेज सकेंगे, अपितु रिश्र्वत देने का समय, स्थान, अमाउंट निश्र्चय कर पाएँगे, पूरी सरलता से, वह भी घर बैठे-बैठे। इस वेबसाइट के थ्रू भाई लोग रिश्र्वत की अपनी पसंद अपने सेवक को बता सकते हैं। लेने और देने में बिल्कुल पारदर्शिता। बीच में कोई बिचौलिया नहीं। न लेने वाला डरे, न देने वाला। जीरो परसेंट टांजेक्शन लॉस।

इस रिश्र्वत वेबसाइट की विशेषता बंधुओं यह है कि इसमें रिश्र्वत में वैराइटी है। आप रिश्र्वतखोर की मनपसंद वस्तु पसंद कर उसे भेज सकते हैं। मैंने रिश्र्वत देने वालों की सुविधा के लिए हर आइटम के साथ कीमत भी दी है ताकि रिश्र्वत देने वाले को अपने जेब का भी ख्याल रहे। इस तरह आप पूरी सुरक्षा के साथ ऑनलाइन रिश्र्वत भेज सकते हैं। जब देश ने अन्य क्षेत्र में तकनीक में इतनी तरक्की की है तो रिश्र्वत की तकनीकों में तरक्की क्यों नहीं?

इस ऑन लाइन वेबसाइट के माध्यम से आप सरकार के सामने सुरा से सुंदरी तक सभी प्रस्तुत कर सकते हैं। निःसंकोच।

मेरी इस समाजोपयोगी खोज का आप पूरा इस्तेमाल कर लाभान्वित होंगे, पूरी आशा है। दोनों चेहरों पर मुस्कुराहट बनी रहे, बस मैं यही चाहता हूँ।

– डॉ. अशोक गौतम

You must be logged in to post a comment Login