तुलसी

विष्णु-पूजा के लिए परम श्रेष्ठ एवं पवित्र एक पौधे का नाम है तुलसी। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार तुलसी नामक गोलोकवासी देवी राधा की सखी थी। किन्तु किसी कारणवश राधा के शापवश वह पृथ्वी पर राजा धर्मध्वज की पुत्री के रूप में जन्मी। तुलसी तथा शंखचूड़ तप करके दंपति बन गये। शंखचूड़ ने सारे संसार को वश में कर लिया तथा इंद्र-पद पर आसीन हो गया। इस पर दुःखी देवताओं ने शिवजी की शरण ली। पर तुलसी के पातिव्रत्य के कारण शिवजी भी शंखचूड़ का कुछ नहीं बिगाड़ सके। इस पर भगवान विष्णु ने शंखचूड़ के रूप में तुलसी से संयोग करके उसका पातिव्रत्य नष्ट किया और शंखचूड़ का वध करके देवताओं का दुःख दूर किया। इससे क्रोधित तुलसी ने विष्णु को शाप दिया कि तुम पत्थर बन जाओ। तुरंत विष्णु शालग्राम के रूप में परिणत हो गये। साथ ही तुलसी को वरदान दिया कि “”तुम मेरी प्रिया बनोगी”। राधा के शाप से तुलसी मुक्त हो गयी। उसने अपना पूर्व रूप प्राप्त कर लिया। देवी का शरीर ही गलकर गंडकी बना और उसके केश ही तुलसी के पौधे बने। हिन्दू घरानों में घर के सामने तब से तुलसी की पूजा करने की प्रथा चल पड़ी। देवी तुलसी भगवान की सबसे प्यारी पत्नी थी।

एक पौराणिक कथा के अनुसार सत्यभामा भावी जीवन में भी कृष्ण को पति के रूप में पाना चाहती थी। उसने नारद से इसके लिए उपाय मांगा। नारद ने कहा कि वह कृष्ण को उन्हें (नारद को) दान में दें। सत्यभाषा ने ऐसा ही किया। जब अन्य पत्नियों को यह बात मालूम हुई, तब उन्होंने जाकर नारद से कृष्ण को वापस मांगा। नारद ने कृष्ण को इस शर्त पर वापस देना स्वीकार किया कि वे कृष्ण के वजन-भर सोना दें। पत्नियों ने तुला पर अपना-अपना सोना चढ़ा दिया, पर वह कृष्ण के वजन के बराबर नहीं था। तब रुक्मिणी तुलसी का एक पत्ता ले आयी और सोना हटाकर उसे तुला पर रखा, तो वह कृष्ण से भी भारी दिखाई दिया। अतः यह सिद्घ हुआ कि तुलसी कृष्ण की प्रियतमा पत्नी हैं। कार्तिक मास की पूर्णिमा को तुलसी का जन्म हुआ था। उस दिन विशेष रूप से तुलसी की पूजा की जाती है। शालग्राम पर तुलसीदल चढ़ाये जाते हैं, जो दोनों की अभिन्नता का द्योतक है। वैष्णव भक्त तुलसी की कंठीमाला पहना करते हैं।

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