दोहरी फॉंस

दोपहर का वक्त था। घर के सब काम निपटाकर कर जावित्री ने लच्छो से कहा, “”बेटी, तू अन्दर से किवाड़ बंद कर ले, मैं माधौलाल के घर मातम में जा रही हूं। आजकल जमाना ठीक नहीं है। शाम तक तेरे बापू लौट आयेंगे। मैं खुद ही दिन डूबने से पहले आ जाऊंगी।”

लच्छो जावित्री की सबसे छोटी लड़की थी। जिसकी उम्र सोलह साल पार कर गई थी। उससे बड़ी चार लड़कियों की शादियां हो गई थीं और वे अपनी-अपनी ससुराल में थीं। जावित्री लच्छो की शादी के लिए भी चिंतित थी, पर अभी कोई संयोग न बन पाया था। इसकी सबसे बड़ी वजह यह भी थी कि उसकी खेती पहले से आधी रह गई थी। बेटा शहर में पढ़ता था। इस बुरी हालत में भी यह परिवार गांव में अपना सिर ऊंचा किये था।

यह बात गांव के मुखिया रामरिख सिंह को अखरती थी। पिछली बार के चुनाव में रामस्वरूप ने उनकी बात नहीं मानी थी। इसलिए वे इस परिवार का मान-मर्दन करना चाहते थे। उन्होंने इस काम के लिए अपने कुछ आदमियों को तैनात कर रखा था।

रामरिख सिंह और उनके साथियों की नियत की भनक जावित्री को लग गई थी। इसलिए वह भरसक सतर्क रहती थी। उसने लच्छो का घर से आना-जाना भी प्रायः बन्द कर दिया था।

लच्छो में जवानी की उठान का तेवर था। वह अपनी मां को भीरू समझती थी। मां की इस बात से उकताकर लच्छो ने कहा, “”मां तू जा। कोई फिकर मत कर । तू इतना क्यों डरती है? कोई लूटेरों का गांव है क्या?”

“”हां-हां, ठीक है। फिर भी खुद होशियार रहने में क्या हर्ज है?” कहकर जावित्री घर से बाहर निकली।

जावित्री को मन में कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। उसके घर के सामने की परछती में दो-तीन अनजान लफंगे भद्दे इशारे करके हंस रहे थे। उसका जी कचोट उठा, पर संयम रखते हुए वह कदम बढ़ाकर चली गई।

उसे यह ढांढस था कि दिन में कोई ऐसी-वैसी बात नहीं हो सकती और वह अंधेरा होने से पहले हर हालत में लौट आयेगी।

मजूरी से फुर्सत पाकर सत्तर साल का बूढ़ा रामस्वरूप पहले शराबखाने गया। वहां उसने थोड़ी सी शराब पी। उसकी देह टूट रही थी। शराब के दो-चार घूंट पीने पर उसे थोड़ी फुर्ती महसूस हुई । कुछ-कुछ सुरूर आने पर वह चिंता-मुक्त भी हो गया। तब तक झुटपुटा होने लगा था। वह एक निश्र्चित लय पर अपने कदम बढ़ाता हुआ घर पहुंचा। घर में अंधेरा था। उसने जावित्री और लच्छो को कई आवाजें दीं। पर किसी का कोई जवाब नहीं मिला।

उसने पड़ोस में कई लोगों से पूछा, पर किसी ने कुछ नहीं बताया। तब वह लौटकर घर के अन्दर गया। जेब से माचिस निकालकर कुप्पी जलाई। रोशनी में उसने जो दृश्य देखा, उससे उसका सुरूर गायब हो गया और बदन में ऊपर से नीचे तक कंपकंपी की लहर दौड़ गई।

लच्छो जमीन पर मृत पड़ी थी। उसके कपड़े तार-तार होकर फट गये थे। शरीर एकदम निर्वस्त्र और जगह-जगह से नोंचा हुआ था। गला कटकर एक ओर लटक गया था। उसके शरीर और जमीन पर खून ही खून था।

रामस्वरूप अपनी लाडली बेटी की यह हालत देखकर बिलख उठा। उसने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया। कुछ क्षण बाद उसके आंसू सूख गये और मन में आाोश घुमड़ने लगा। लच्छो की लाश को छोड़कर वह बाहर निकला और गली में आकर अनाप-शनाप बकने लगा।

इधर रामरिख सिंह के यहां उसके नाती के अन्नप्राशन का उत्सव था। लोग वहां एकत्र थे। सबको हलुआ, पूड़ी, मिठाई और पकवान खिलाये जा रहे थे। रामरिख सिंह खुद सबकी देखभाल कर रहे थे। लोग स्वाद ले-लेकर रामरिख सिंह की तारीफ कर रहे थे।

महेश और हरी कुछ हड़बड़ाये से वहां पहुंचे और रामरिख सिंह को इशारे से एकान्त में ले जाकर बोले, “”सरकार, हमने अपना काम कर दिया। वह साला बुढ़ा रामस्वरूप बहुत हायतौबा मचा रहा है। लोग-बाग इकट्ठे हो रहे हैं। शायद पुलिस भी जल्दी पहुंच सकती है।”

रामरिख सिंह की आंखें खुशी से चमक उठीं। उन्होंने मूंछों पर ताव देते हुए कहा, “”तुम लोग घबराओ मत। कहीं कुछ नहीं होगा। लोग यहां माल उड़ा रहे हैं, वहां कौन होगा? हां यह बताओ तुम लोगों ने क्या किया है? फिर मैं सब इंतजाम किये देता हूं।”

महेश ने बताया, “”सरकार, जैसे ही वह बुढ़िया गई, लच्छो के किवाड़ बंद करने के पहले ही हम भीतर घुस गये। हरी ने अपने गमछे से आनन-फानन में उसका मुंह बांध दिया। उसने खूब उठा-पटक की, पर मैंने साली को जमीन पर पटक दिया। कपड़े फाड़कर फेंक दिये और इज्जत उतार ली। बाद में उसके बयान से खतरा था, सो छुरे से उसका गला काट दिया। न रहे बांस और न बजे बांसुरी। मरने से पहले हरी ने भी इच्छा पूरी कर ली। मनोहर को हमने बाहर देखभाल के लिए छोड़ दिया था। इस तरह बिना किसी रुकावट के हमने अपना काम कर लिया और आराम से चले आये।”

“”किसी को कुछ पता तो नहीं चला?” रामरिख सिंह ने पूछा।

“”नहीं। कोई चश्मदीद गवाह नहीं है।” महेश ने उत्तर दिया।

“”अच्छा, तुम लोग खाओ-पियो और मौज करो। मैं वहां जाकर देखता हूं।” कहकर रामरिख सिंह वारदात की जगह की तरफ चले। कुछ लोग उनके साथ हो गये।

धीरे-धीरे पूरे गांव में यह खबर फैल गई। खुसफुसाहट होने लगी, पर प्रत्यक्ष कोई कुछ न बोला।

रामरिख सिंह ने वहां जाकर जो नजारा देखा, उससे उसकी बांछें खिल उठीं। उसने तुरंत थाने में खबर देने के लिए अपना आदमी दौड़ाया और लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा, “”भाई, आप लोग शान्त रहें और पुलिस के आने तक यहां से कोई न जाये।”

थोड़ी देर में दरोगा दो कांस्टेबलों के साथ आ पहुंचे। उन्होंने रामरिख सिंह की ओर तिरछी नजर से देखकर पूछा, “”क्या मामला है मुखिया जी।”

रामरिख सिंह ने उत्तर दिया, “”मामला तो साफ-साफ आपके सामने है दरोगा जी। यह रामस्वरूप बूढ़ा होने पर भी बड़ा कमीना और ढोंगी है। यह शराब पीकर अपने घर आया। इसे पता था कि इसकी औरत माधोलाल के यहां मातम में गयी है। अंधेरे में इसने अपनी ही लड़की के साथ मुंह काला किया और गला काटकर उसकी हत्या कर दी।”

रामस्वरूप रामरिख सिंह की बात सुनकर सन्न रह गया। वह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि कोई उस पर इतना बड़ा कलंक लगा सकता है।

दरोगा का इशारा पाकर कांस्टेबलों ने रामस्वरूप को गिरफ्तार कर लिया। दरोगा ने रामस्वरूप की ओर हिकारत से देखते हुए पूछा, “”क्यों बे, मजा लेना था तो लेता रहता। अपना ही माल था। उसे मार क्यों डाला?”

रामरिख सिंह ने भी तुरंत कहा, “”दरोगा जी इसने अपनी लड़की को मारकर एक साथ अपने दो काम सिद्घ किये हैं। राज खुलने का सबूत तो मिट ही गया, उसकी शादी करने की जिम्मेदारी से भी छुट्टी पा ली। और देखो, पुलिस से तहकीकात कराने के लिए खुद पाक-साफ बना खड़ा है। ताकि कोई शक न कर सके। लेकिन इसे ध्यान नहीं है कि कपड़ों में उसी की बेटी का खून लगा है।

दरोगा जानता था कि लच्छो के साथ बलात्कार और कत्ल चाहे जिसने किया हो, परंतु घर के अन्दर की वारदात का कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं है, क्योंकि बार-बार पूछने पर भी किसी ने कुछ नहीं बताया। इसके अलावा रामरिख सिंह कोई मामूली आदमी नहीं था। मंत्री की तो बात क्या, मुख्यमंत्री तक उसकी बात मानते हैं। इसलिए रामस्वरूप का शराब के नशे में होना और उसके कपड़ों पर खून लगा होना उसके खिलाफ मामला बनाने के लिए काफी था। रामरिख सिंह की बात भी दरकिनार नहीं की जा सकती।

सब सोच-समझकर दरोगा लच्छो की लाश और रामस्वरूप को अपने साथ ले गये । जावित्री को लौटने में कुछ देर हो गई। जब वह लौटकर आयी, तब तक वह सारा खेल हो चुका था। सारी वारदात जानकर वह फूट-फूटकर रोने लगी।

कुछ औरतें आपस में खुसर-फुसर करने लगी। एक ने कहा, “”यह तो बहन दोहरा जुल्म है। एक तो बेटी को मार डाला, दूसरे बेटी के बाप को ही पकड़ ले गये।”

दूसरी बोली, “”रामस्वरूप तो बेचारा गऊ है। उस पर झूठा इलजाम लगा दिया है। यह भी नहीं सोचा कि बाप-बेटी का क्या रिश्ता होता है? भला सोचो, रामस्वरूप सत्तर साल का बूढ़ा, जिसके सत्ताईस पोते-पोतियां और नाती-नातिन हों, भला वह अपनी लड़की के साथ ऐसा कर सकता है?”

“””अरे चुप कर। कोई सुन लेगा, तो फालतू का बखेड़ा होगा।” एक औरत ने टोका। जावित्री रोते हुए थाने की ओर चल पड़ी।

पुलिस ने दूसरे दिन पोस्टमार्टम के बाद लच्छो की लाश जावित्री को सौंप दी। उसने रामस्वरूप को नहीं छोड़ा और उसे रिमांड पर रखकर इस बात पर दवाब डाला कि वह जुल्म इकबाल कर ले।

जावित्री ने इस अन्याय के खिलाफ कई जगह गुहार लगाई। कई संगठनों के नेताओं ने पुलिस विभाग में दवाब डाले। एस.पी.ने सी.आई को जांच के काम पर लगा दिया। जैसे ही इस मामले का सुराग मिलना शुरू हुआ। एस.पी. और सी.आई. दोनों का टान्सफर हो गया।

रामरिख सिंह ने सीधे गृहमंत्री को फोन किया, “”यह क्या तमाशा है? आपके एस.पी. और सी.आई. लोगों के बहकावे में आकर ऊटपटांग काम कर रहे हैं और मेरे आदमियों को परेशान कर रहे हैं।”

गृहमंत्री ने रामरिख सिंह को आश्र्वास्त किया, “”आप चिंता न करें, मैं अभी सब ठीक कर देता हूं।”

इसके बाद आई.जी. ने उन पुलिस अधिकारियों का टान्सफर कर दिया। जो लच्छो का मामले की तह में जाने की कोशिश कर रहे थे और जिनके खिलाफ रामरिख सिंह ने शिकायत की थी।

रामस्वरूप अब भी पुलिस रिमांड में है और पुलिस उससे जुर्म इकबाल कराने की जुगत में लगी हुई है।

– डॉ. परमलाल गुप्त

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