नेल्सन मंडेला – रंग भेदी विरोध के महान योद्धा

दक्षिण अफ्रीका के अश्वेतों में नेल्सन मंडेला को वही सम्मान हासिल है जो भारत में महात्मा गांधी को। गोरों के रंगभेदी अत्याचारों से पीड़ित अश्वेतों को बराबरी और सम्मान दिलाने का मंडेला ने जो अथक संघर्ष किया है, उसकी मिसाल राजनीतिक इतिहास में यदाकदा ही मिलती है।

मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका के ट्रंसकेई राज्य के म्वेजो गांव में 18 जुलाई, सन् 1918 को हुआ था। उनके पिता थेंबू खोसा कबीले के मुखिया थे। 7 साल की उम्र में मंडेला पढ़ने के लिए स्कूल गए। उस समय उनका नाम रोलिहलाहला था। मगर मेथेडिस्ट अध्यापक ने उनके नाम के पहले नेल्सन शब्द जोड़ दिया। अतः उनका नाम नेल्सन रोलिहलाहला मंडेला हो गया। स्थानीय स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद मंडेला अश्वेत बच्चों के लिए तय प्रमुख स्कूल में गए। इसके बाद उन्होंने फोर्ट हेयर यूनिवर्सिटी कॉलेज में पढ़ाई की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए विटवाटरसैंड यूनिवर्सिटी गए जहां से उन्होंने लॉ की पढ़ाई पूरी की। जब वह फोर्टहेयर यूनिवर्सिटी कॉलेज में बीए की पढ़ाई कर रहे थे तब उनकी मुलाकात ओलिवर तांबो से हुई। जो उनके राजनीतिक रूझान का कारण बने। तांबो और मंडेला पहली मुलाकात के बाद से ही हमेशा के लिए एक दूसरे के दोस्त बन गए। 21 मार्च, 1960 को दक्षिण अफ्रीका की श्वेत सरकार ने सार्पविले में जबरदस्त नरसंहार को अंजाम दिया। यह दक्षिण अफ्रीका के इतिहास में हुए भयानक नरसंहारों में से एक था। इसके बाद से दक्षिण अफ्रीका में उथल-पुथल मच गई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस नरसंहार में 69 लोग मरे थे और 400 से ज्यादा गंभीर रूप से घायल हुए थे। मगर वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा थी। जबकि लोग विरोध प्रदर्शन अहिंसक तरीके से कर रहे थे। इसके बाद पूरे दक्षिण अफ्रीका में इमरजेंसी लागू कर दी गई। इस आंदोलन में नेल्सन मंडेला की भी जबरदस्त भूमिका थी। यह प्रदर्शन दरअसल उस कानून के विरोध में किया गया था, जिसके मुताबिक अश्वेत लोगों को श्वेत आबादी में घूमते समय हर वक्त अपने पास “पासबुक’ लेकर चलना होता था। तमाम दूसरे लोगों के साथ मंडेला ने भी इस कानून का जमकर विरोध किया और इस रंगभेदी कानून का विरोध करने के लिए अपने पास के साथ तमाम दूसरे अश्वेतों के पास को सार्वजनिक रूप से आग लगाई। सन् 1956 से लेकर 1961 तक उन पर लंबा मुकदमा चला और सार्पविले नरसंहार के बाद तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा उनकी राजनीतिक पार्टी “अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस’ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गौरतलब है कि उन दिनों मंडेला एएनसी की सशस्त्र शाखा के मुखिया थे। उन्हें 5 अगस्त, 1962 को गिरफ्तार कर लिया गया और तभी शुरुआत  हुई उनके लंबे राजनीतिक कैदी जीवन की। वह जेल में सबसे ज्यादा लंबे समय तक रहने वाले राजनेता हैं। 5 अगस्त, 1962 से 1990 तक वह जेल में रहे। पूरे 27 साल। 11 फरवरी, 1990 में दक्षिण अफ्रीका सरकार ने उन्हें तब जेल से रिहा किया जब उस पर पूरी दुनिया का राजनीतिक व कूटनीतिक दबाव बढ़ गया। मई, 1994 में वह दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। इसके पहले 1993 में उन्हें श्वेत नेता और तत्कालीन दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति एफ.डब्ल्यू. डी. क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। सन् 1961 में उन्होंने अपनी दोस्त विनी के साथ शादी की। जब मंडेला जेल में थे तो यह उनकी पत्नी विनी ही थीं, जो उनकी रिहाई के लिए पूरी दुनिया में अलख जगा रहीं थीं। लेकिन 1990 में जब वह जेल से बाहर आए तो दोनों के संबंध अच्छे नहीं रहे और 1996 में अंततः दोनों ने तलाक ले लिया। नेल्सन मंडेला ने अपना ज्यादातर कैदी जीवन अत्यधिक सुरक्षित रोबेन द्वीप की जेल में बिताया। लेकिन 1985 में उन्हें केपटाउन के अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया क्योंकि वह कई तरह की बीमारियों से पीड़ित हो चुके थे। यहां से उन्हें फिर दोबारा रोबेन द्वीप की जेल में नहीं भेजा गया बल्कि कम सुरक्षित जेलों में रखा जाने लगा। 27 साल तक जेल में रहने के बाद जब वह रिहा हुए तो भारत सरकार ने उन्हें हिन्दुस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान  “भारत-रत्न’ दिया। 1995 में मंडेला बतौर दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि बनकर आए। यह उनका दूसरा भारत दौरा था।

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